आजकल अखिलेश को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है कि इतने अनुभवी, कद्दावर , समाजवादी पार्टी के मुखिया और राजनीति में अपना एक अलग स्थान रखने वाले इस नेता को क्या होता जा रहा है और वो क्यों ऐसे बयान देने लगे हैं जो सच्चाई से दूर मनगढंत ज्यादा लगने लगे हैं और आम जनता के पल्ले ही नहीं पड़ता कि आखिर अखिलेश कहना क्या चाहते हैं। जी हां हाल ही में अखिलेश ने यह बयान दिया कि महाकुंभ के दौरान आदित्यनाथ योगी को पीएम का चेहरा घोषित करने की तैयारी की गई थी पर ऐसा हुआ नहीं। अब इस बयान से एक तरफ बीजेपी नेताओं में परेशानी है वहीं आम जनता हैरान है कि अखिलेश यह क्या कह रहे हैं । क्या एक पार्टी कुँभ में अपनी अगला पीएम घोषित करेगी, इससे पार्टी को क्या लाभ पहुंच सकता है। और अगर पार्टी करती भी है तो इससे अखिलेश को क्या परेशानी है। और जिस तरह से अखिलेश बार बार कुंभ में हुई मौतों का मुद्दा उठा रहे हैं चर्चाएं तो यह भी चल निकली हैं कि यूपी की राजनीती में पैठ बनाए रखने के लिए अखिलेश के पास कोई मुद्दा ही नहीं बचा है, योगी ने उन्हें चारों खाने चित कर रखा है और ऐसे में मीडिया की सुर्खियों में रहने के लिए अखिलेश यो तो उंट पटांग बयान दे रहे हैं या बार बार गड़े मुर्दें उखाड़ने में लगे हैं , पर अखिलेश को समझना चाहिए आज की जनता पहले वाली जनता नहीं रही है उसे पता चलता है कि राज्य के क्या मुद्दे हैं और क्या बकवास
Bihar की राजनीती क्यों भाए खाकी को

बिहार की राजनीती पर नजर डालें तो एक तरफ राजनीतिक दलों के परिवारों का यहां की राजनीति में दबदबा बना रहता है और दूसरी तरफ बिहारी राजनीति पुलिसकर्मियों को भी बहुत लुभाती है। हाल फिलहाल में यहां रेलवे महानिरीक्षक पद से इस्तीफा देकर IPS Mohammad Nurul Hoda वीआईपी पार्टी में शामिल हो गए , होदा 1995 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं। वैसे इससे पहले भी पुलिस अधिकारियों की एक लंबी लिस्ट हैं जिन्होंने पुलिस सर्विस छोड़कर राजनीति में हाथ अजमाने के लिए विभिनन दलों का हाथ थाम लिया है। जैसे कि 2024 में शिवदीप वामनराव लांडे ने आईजी पद से त्यागपत्र देकर अपनी हिंद सेना का गठन किया। , तमिलनाडु के पुलिस महानिदेशक पद से रिटायर हुए करुणा सागर ने 2020 के चुनाव में rjd ज्वाइन कर ली थी। पूर्व केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह ने 2024 को आसा का गठन किया। jdu सरकार में शिक्षा मंत्री सुनील कुमार ने भी डीजी पद से रिटायर होने के बाद नीतिश का हाथ थाम लिया था। इससे पहले पटना के एसएसपी रहे डॉ. अजय कुमार ने कांग्रेस का हाथ थाम लिया था। बिहार पुलिस में महानिदेशक गुप्तेश्वर पांडेय और पूर्व डीजीपी डीपी ओझा भी राजनीति में आए पर सफलता नहीं मिली। इसके अलावा निखिल कुमार, ललित विजय पुलिस अधिकारियों ने खाकी छोड़कर राजनीति की राह पकड़ ली है।
यह बात अलग है कि पुलिसवालों के ये नए दल बिहार की राजनीति में अपना दमखम इतनी जल्दी दिखा पाएगें या नहीं क्योंकि बिहार के चुनाव होने में कुछ ही महीने बचे हैं और इन पुलिस वालों के पास जनता के बीच अपनी छवि रौबदार पुलिस वाले से विनम्र – दमदार नेता बनाने के लिए बहुत ही कम समय ही बचा है। वैसे आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि पिछले सात महीनों में बिहार में चार नए दलों का गठन हो चुका है, और लगातार नई पार्टियां बनने की कवायद जारी है, जो सभी विधानसभा चुनाव में उतरेंगी। अब पार्टी चाहे पुलिस वाले की हो या किसी नेता , चाहे कोई सीट ना ले पाएं पर वोट तो काटेंगे ही, जिसका डर बीजेपी, congress jdu को सता रहा है।
