अखिलेश यादव के पीडीए नारे को मात देने RSS की बड़ी रणनीती
एक तरफ जहां योगी का नारा बटोगे तो कटोगे, विपक्ष के लिए सिरदर्द बन चुका है , वहीं यूपी में समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव का पीडीए यानी पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक नारा बीजेपी के लिए लगातार खतरा बना हुआ है। माना जा रहा है इसी नारे के चलते अखिलेश लोकसभा में बड़ी संख्या में सीटें हासिल करने में कामयाब हो गए थे और इस वर्ग के लोगों ने जमकर समाजवादी पार्टी को वोट दिया था , पर अब बीजेपी इसको लेकर काफी सतर्क दिख रही है। यूपी में नौ सीटों पर उपचुनाव हैं और योगी सरकार के साथ RSS के तमाम नेता कार्यकर्ता पीडीए नारे को हिंदत्व के मुद्दे से मात देने की रणनीति के तहत जबरदस्त काम कर रहे हैं। योगी का साथ देने के लिए यहां rss काफी सक्रिय दिख रहा है। RSS नहीं चाहता इन चुनाव में लोकसभा चुनावों की भांति पिछड़ों -दलितों के वोट बैंक में सामजवादी ज्यादा सेंध लगाए।
संघ के बड़े बड़े नेता यूपी में डेरा डाले हैं और लगातार उपचुनाव उपचुनाव की तैयारियों पर चर्चाएं हो रही हैं, काम हो रहा है। RSS के अरुण कुमार इस समय यूपी में भाजपा के पालक अधिकारी का दायित्व निभा रहे हैं। कहा जा रहा है कि उपचुनाव के अंतिम दिनों में RSS के तमाम कार्यकर्ता मुख्य संघर्ष वाली चार सीटें जीतने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा रहे हैं। यह सीटें है करहल, कुंदरकी, सीसामऊ और कटेहरी । वैसे बीजेपी के लिए युपी उपचुनाव में अच्छी जीत हासिल करने के साथ महाराष्ट्र और झारखंड में भी सरकार बनाने की बड़ी चुनौती है और शायद इसलिए संघ के हिंदुत्व के एजेंडे को इन दिनों मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी आगे बढ़ा रहे हैं और लगातार जनता से इसी एजेंटे पर वोट मांग रहे हैं।
योगी का नारा बटोगे तो कटोगे —- अपनों का ही किनारा
महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में बीजेपी के सामने भी कईं बड़ी चुनौतियां मुंह फाड़े खड़ी है। सबसे बड़ी चुनैती तो सीएम चेहरे को लेकर ही है क्योंकि एकनाथ शिंदे से लेकर अजीत पवार गुट के लोग सिर्फ अपने नेता को इस कुर्सी पर देखना चाहते हैं, किसने कितनी सीट जीती उन्हें इससे मतलब नहीं है। दूसरी तरफ उनके संगठन महायुति में भी विचारों की भिन्नता के चलते दरार खुलकर सामने आनी शुरू हो गई है। अजित पवार की अगुवाई वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी बीजेपी से दूर होती दिख रही है। कारण सिर्फ अपने वोट बैंक बचाने का ही है। बीजेपी महाराष्ट्र में खुलकर हिंदुत्व का कार्ड खेल रही है। पर यहां पर यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के बयान बंटेंगे तो कटेंगे से अजित पवार ने खुलकर किनारा किया है। उन्होंने साफ कहा कि वे इसका समर्थन नहीं करते हैं और महाराष्ट्र में ऐसा नहीं चलता। जहां अजित पवार की पार्टी के उम्मीदवार हैं उन्होंने साफ तौर पर कहा है कि वहां उन्हें पीएम, गृह मंत्री और यूपी सीएम के प्रचार की जरूरत नहीं है। दरअसल अजित पवार को पता है कि उनका वोट बैंक वही है जो शरद पवार का है। वो वोट बैंक मुस्लिम और क्रिश्चियन का है। जहां जहां से अजित पवार की पार्टी चुनाव लड़ रही है ,वहां वे तभी जीतेंगे जब उन्हें मुस्लिम और क्रिश्चियन वोट मिलेगा।
ऐसे में महायुति के साथी अजित पवार और उनकी पार्टी एनसीपी के नेता खुलकर बीजेपी नेताओं के बयानों को विरोध कर रहे हैं और उनसे किनारा कर रहे हैं। साथ ही जरूरत पड़ने पर महायुति से अलग होने की बात भी कर रहे हैं। महायुति की यह दरार इसलिए ज्यादा उभरी है क्योंकि बीजेपी जैसे जैसे हिंदू वोट बैंक को एकजुट करने की कोशिश कर रही है, वैसे अजित पवार की दिक्कत बढ़ रही है। सबके सामने अपना वोट बैंक बचाने की मजबूरी है। 288 विधानसभा सीटों वाले महाराष्ट्र में 20 नवंबर को वोटिंग होनी है।
बीजेपी और अजीत पवार के बीच damage control अब हो गया beyond control
महाराष्ट्र में बीजेपी और अजीत पवार की पार्टी के बीच कुछ ठीक नहीं चल रहा है, यहां तक चर्चा हो रही है कि दोनों के बीच जो डैमेज कंट्रोल हो चुका है वह अब बियॉन्ड कंट्रोल यानी नियंत्रण से बाहर हो चुका है। हाल यह है कि चुनाव प्रचार में भी बीजेपी अपनी सीटों पर बढ़ चढ़कर प्रचार कर रही है और अजीत पवार के कार्यकर्ता बिल्कुल अलग थलग अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं लेकिन इन सब के बीच यह बात को साफ है कि इस समय बीजेपी को अजीत पवार की इतनी जरूरत नहीं है जितनी पवार को बीजेपी की है। क्योंकि महाराष्ट्र चुनाव बीजेपी हमेशा ही शिव सेना के साथ मिलकर लड़ती आई है फर्क इसलिए नहीं पड़ता क्योंकि टूट चुकी शिवसेना का एक बड़ा मजबूत हिस्सा एकनाथ शिंदे के रूप में बीजेपी के साथ ही खड़ा है। पर दूसरी तरफ लोकसभा में कुछ खास ना कर पाने वाली अजीत पवार की पार्टी के लिए विधानसभा के यह चुनाव उनके आस्तिव बचाने की लड़ाई बन चुके हैं। इस चुनाव में यदि अजीत पवार कुछ खास नहीं कर पाते तो उनका राजनीतिक अस्तित्व खत्म हो जाएगा। यह बात बीजेपी जानती है इसलिए वो भी अजीत पवार को कोई ज्यादा भाव नहीं दे रही है।
वैसे इस समय महायुति गठबंधन में बीजेपी ही सबसे बड़ी पार्टनर है। बीजेपी 149 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। अजित पवार की एनसीपी 59 सीटों पर, एकनाथ शिंदे की शिवसेना 81 सीटों पर चुनाव लड़ रही है।