कुमारी शैलजा दलितों का बड़ा चेहरा- झुकना ही पड़ा Congress को
हरियाणा में इन दिनों विधान सभा चुनावों की लहर चल रही है। प्रदेश के सभी प्रमुख राजनैतिक दल अपनी अपनी ताकत आजमा रहे हैं। कांग्रेस का दावा है कि वह सरकार बना रही है।
ऐसे में पार्टी के प्रमुख दलित चेहरे कुमारी शैलजा के बगावती तेवरों ने पार्टी आलाकमान की नाक में दम कर रखा है। मौके का फायदा उठाने की ताक में लगी भाजपा ने जब शैलजा को पार्टी में शामिल होने का प्रस्ताव पेश किया तो कांग्रेस नेतृत्व के होश ठिकाने आ गए। स्थानीय नेतृत्व ने आनन फानन में सोनिया, प्रियंका और राहुल गांधी की शरण लेनी पड़ी। तब कहीं जाकर शैलजा को मनाया गया। बदले में क्या सौदेबाजी हुई यह तो फिलहाल सामने नहीं आया है।
जाट लाबी के प्रमुख भूपेंद्र सिंह हुड्डा की नकेल कस दी
लेकिन इतना अवश्य है कि जाट लाबी के प्रमुख भूपेंद्र सिंह हुड्डा की नकेल कस दी गई है जिससे कांग्रेस की जीत की सूरत में उनके निर्विवाद मुख्यमंत्री बनने की डगर आसान नहीं है।
ऐसा इसलिए है क्योंकि भाजपा ने हरियाणा दो विधान सभा चुनाव गैर जाट वर्ग के मतदाताओं के समर्थन से जीते हैं जो कुल मिलाकर जाटों से ज्यादा तादाद में है। इसीलिए शैलजा को मनाया गया है। आलाकमान का शैलजा के सामने घुटने टेकने की यह बडी वजह है।
लंबा सफर राजनीतिक सफल है
कांग्रेस नेतृत्व की पहली पंक्ति के नेताओं में शुमार शैलजा ने अपना राजनीतिक जीवन महिला कांग्रेस से शुरू किया और 1990 में इसकी अध्यक्ष बनीं। 24 सितंबर 1962 को जन्मी कुमारी शैलजा पहली बार 1991 में सिरसा से चुनाव जीत कर लोक सभा पहुंची थी। वे 1996 में यहीं से दूसरा चुनाव जीती थीं। तीसरी बार शैलजा ने अंबाला से लोक सभा चुनाव जीता था जबकि 2019 में यहां से चुनाव हार गई। चौथी बार वे 2024 फिर सिरसा से जीतकर लोक सभा पहुंची हैं।
मंत्री पद की भी जिम्मेदारी निभाई
शैलजा 2014 से 2020 तक अपने गृह प्रदेश हरियाणा से राज्य सभा सांसद भी रहीं। उनको कांग्रेस के शीर्ष नेताओं में इसलिए भी गिना जाता है क्योंकि वे उत्तर भारत और खासकर हरियाणा में कांग्रेस का सबसे बड़ा दलित चेहरा हैं। प्रदेश के दलितों के बीच शैलजा की लोकप्रियता का आंकलन इस वास्तविकता से किया जा सकता है कि उन्होंने हरियाणा में मायावती को पैर तक रखने नहीं दिए। वे 1991 में हरियाणा के सिरसा से 10वीं लोकसभा के लिए चुनी गईं। नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार में वे केंद्रीय शिक्षा और संस्कृति राज्य मंत्री थीं । 1996 में हरियाणा में कांग्रेस की हार के बावजूद , वे 11वीं लोकसभा के लिए फिर से चुनी गईं । उन्होंने 14वीं लोकसभा के लिए चुने जाने के बाद अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों और शिखर सम्मेलनों में सक्रिय रूप से भाग लेना शुरू किया । उन्हें 2005 में राष्ट्रमंडल स्थानीय सरकार फोरम के शासी बोर्ड के सदस्य के रूप में चुना गया था। उन्होंने राष्ट्रमंडल संसदीय संघ जैसे अन्य संगठनों के साथ जुड़ना जारी रखा और मानव बस्तियों पर राष्ट्रमंडल सलाहकार समूह का भी नेतृत्व किया।शैलजा मई 2004 में केन्द्रीय शहरी रोजगार एवं गरीबी उन्मूलन मंत्री के रूप में कार्यभार संभालने के बाद शैलजा ने अपने कार्यालय में कार्यभार संभाला।वे 2004 में मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार में आवास और शहरी गरीबी उन्मूलन के लिए केंद्रीय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) के रूप में भी शपथ ली । अंबाला से 15वीं लोकसभा के लिए चुने जाने के बाद शैलजा को मनमोहन सिंह की दूसरी कैबिनेट में पर्यटन मंत्री नियुक्त किया गया ।
विवादों का भी शिकार बनी शैलजा
मार्च 2011 में, शैलजा को पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय द्वारा एक याचिका पर नोटिस जारी किया गया था जिसमें उन पर “जालसाजी, आपराधिक धमकी, मनगढ़ंत कहानी और आपराधिक साजिश रचने” का आरोप लगाया गया था। याचिकाकर्ता, अधिवक्ता बीएस चाहर ने आरोप लगाया है कि शैलजा, जो ” मिर्चपुर मामले में जाट नेताओं के खिलाफ़ बाल्मीकि समुदाय के नेताओं और सदस्यों को भड़काने में सहायक थी “, ने विचाराधीन कैदियों पर दबाव डालकर और उन्हें “रिक्त और गैर-न्यायिक कागजात” पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर करके मुकदमे से खुद को बचाने की कोशिश की।
कांग्रेस के अहम पदों पर काम करती रही
शैलजा ने बाद में 2012 में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री के रूप में शपथ ली। मई 2014 में अपना कार्यकाल पूरा होने तक वह पाँच साल तक पद पर रहीं, इस अवधि के दौरान उन्होंने महिलाओं के सशक्तिकरण और हाशिए पर पड़े समुदायों के अधिकारों से संबंधित मुद्दों पर काम किया।शैलजा 2014 में अपने गृह राज्य हरियाणा से राज्यसभा के लिए चुनी गईं।
उन्होंने अंबाला से 2019 के भारतीय आम चुनावों में असफलतापूर्वक चुनाव लड़ा, लेकिन भारतीय जनता पार्टी के रतन लाल कटारिया से हार गईं । इसके बाद, उन्होंने राज्य की राजनीति में नए सिरे से रुचि व्यक्त की और अक्टूबर में होने वाले विधानसभा चुनावों से ठीक पहले सितंबर 2019 में उन्हें हरियाणा प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष नियुक्त किया गया ।
हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी के प्रचार अभियान से गायब क्यों
सिरसा से सांसद कुमारी शैलजा पिछले कुछ समय से से हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी के प्रचार अभियान से गायब हैं, जिससे राजनीतिक हलकों में हलचल मच गई है क्योंकि वे राज्य के कई विधानसभा क्षेत्रों में प्रभाव रखती हैं.कांग्रेस महासचिव शैलजा को हल ही में पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे द्वारा घोषणापत्र जारी किए जाने के कार्यक्रम में शामिल नहीं हुईं और हाल ही में वे ज़मीनी स्तर पर प्रचार भी नहीं कर रही हैं. इसके अलावा, एक्स पर सक्रिय रहने वाली शैलजा ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर केवल दो बार पोस्ट किया है.
बाद में उन्होंने 18 सितंबर को कांग्रेस द्वारा हरियाणा के लिए सात गारंटियों का स्क्रीनशॉट और एक दिन बाद बिहार में दलितों के घरों में आगजनी की घटनाओं का वीडियो पोस्ट किया. उन्होंने 19 सितंबर को अपनी पोस्ट में लिखा, “बिहार के नवादा में 80-दलितों के घरों में आगजनी और गोलीबारी की घटना दर्शाती है कि आज भी दलित समाज में हाशिए पर है.”
राज्य के लिए कांग्रेस की रणनीति तय करने में कभी अहम भूमिका निभाने वाली शैलजा के इस महत्वपूर्ण मोड़ पर पीछे हटने से कांग्रेस में अंदरूनी कलह की अटकलें तेज़ हो गई हैं. उनकी चुप्पी पार्टी की चुनावी संभावनाओं पर नकारात्मक असर डाल सकती है, जिससे पार्टी वोटों को एकजुट करने में विफल हो सकती है.
कांग्रेस पार्टी द्वारा दरकिनार महसूस कर रही थी शैलजा
कुमारी शैलजा कथित तौर पर कांग्रेस पार्टी द्वारा दरकिनार महसूस कर रही थीं, क्योंकि उनके और रणदीप सुरजेवाला के नेतृत्व वाले खेमे ने विधानसभा चुनाव के लिए 90 में से केवल 13 टिकट हासिल किए, जिनमें मौजूदा विधायकों के टिकट भी शामिल हैं.हरियाणा में 90-विधानसभा सीटों में से 17 सीटें एससी उम्मीदवारों के लिए आरक्षित हैं और शैलजा का सिरसा और फतेहाबाद विधानसभा सीटों पर काफी प्रभाव है.शैलजा ने अपने खेमे के लिए 30 से 35 सीटों का अनुरोध किया था. हालांकि, कांग्रेस आलाकमान ने भूपेंद्र सिंह हुड्डा खेमे को 72 टिकट आवंटित किए।
शैलजा पर जातिवादी टिप्पणी घटना ने तूल पकड़ लिया
टिकट वितरण के आखिरी दिन नारनौंद में कांग्रेस प्रत्याशी जस्सी पेटवाड़ के नामांकन कार्यक्रम के दौरान एक कांग्रेस कार्यकर्ता ने शैलजा पर जातिवादी टिप्पणी की। घटना ने तूल पकड़ लिया और व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए. शैलजा पर की गई टिप्पणी से दलित समुदाय काफी आहत हुआ।कांग्रेस पार्टी के भीतर सीएम की कुर्सी के लिए जंग भी छिड़ गई। भूपेंद्र हुड्डा के गुट ने जहां भूपेंद्र हुड्डा के गुट ने जहां ‘हरियाणा मांगे हिसाब’ अभियान शुरू किया, वहीं कुमारी शैलजा ने ‘कांग्रेस संदेश यात्रा’ की घोषणा की थी।
हरियाणा कांग्रेस में युद्ध विराम की स्थिति चुनाव परिणामों के बाद फिर से युद्ध में तब्दील हो सकती है
27 जुलाई को शैलजा ने अपने अभियान की शुरुआत करने के लिए सोशल मीडिया पर एक पोस्टर शेयर किया. उनके इस कदम से विवाद शुरू हो गया क्योंकि पोस्टर में रणदीप सुरजेवाला और बीरेंद्र सिंह को प्रमुखता दी गई थी और भूपेंद्र हुड्डा और उदय भान को नहीं दिखाया गया।बहरहाल, हरियाणा कांग्रेस में युद्ध विराम की स्थिति बनी हुई है जो चुनाव परिणामों के बाद फिर से युद्ध में तब्दील हो सकती है बशर्ते कांग्रेस को बहुमत हासिल हो जाए तब। यह सच है कि भाजपा ने पिछले दस सालों में राज भले ही ढंग से नहीं किया हो पर उसने जाट बाहुल्य के मिथक को अवश्य तोड़ा है।