केजरीवाल ने कैसे दे डाली राहुल गांधी को पटखनी
जब से शरद पवार के घर विपक्षी गठबंधन के कई नेताओं की बैठक हुई और उसमें आप और कांग्रेस ने नेता भी शामिल थे तो अटकले लग रही थी कि शायद दिल्ली चुनाव में आप और कांग्रेस के बीच साथ लड़ने की बात बन जाए, फिर राहुल गांधी ने जिस तरह न्याय यात्रा का बहिष्कार किया जिसका मकसद ही आप के खिलाफ दिल्ली में चुनावी माहौल बनाना था, उसके बाद लगने लगा था कि राहुल केजरीवाल के साथ लड़ने को तैयार बैठे हैं पर पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल ने हाल ही में साफ साफ कह दिया की आप कांग्रेस के साथ चुनाव में कोई गठबंधन नहीं करने वाली है। जानकारों का मानना है कि केजरीवाल मंझे हुए खिलाड़ी हैं और उन्हें पता लग चुका है कि कांग्रेस का साथ दिल्ली में काम में नहीं आने वाला, इससे पहले केजरीवाल को हरियाणा, महाराष्ट्र में कांग्रेस की जरूरत थी पर उस समय कांग्रेस ने उन्हें घास नहीं डाली अब केजरीवाल की बारी है और उन्होंने भी कांग्रेस से पूरी दूरी बना कर रख ली है।
उन्होंने एक पोस्ट तक डाल दिया है जिससे कांग्रेस किसी भी तरह के मगालते में नहीं रहे , केजरीवाल ने एक्स पोस्ट पर लिखा लोकसभा चुनाव में आप-कांग्रेस मिलकर लड़े थे पर हार मिली थी तो अब दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस संग गठबंधन नहीं। सबको बता है कि कांग्रेस पिछले दो चुनाव से दिल्ली में बिल्कुल flop रही है और केजरीवाल को लगता है कि अगर गठबंधन हुआ तो कांग्रेस को फायदा मिल सकता है आप को नुकसान
ममता अखिलेश और राहुल क्यों आ गए एक मंच पर
क्या कांग्रेस , आम आदमी पार्टी , टीएमसी या बहुजन समाजवादी पार्टी या लेपट पार्टियां नहीं चाहती की अलग अलग चुनावों के दौरान देश का खर्च होने वाला करोड़ों रूपया बचाया जा सके, देश में विकास का काम चलता रहे, कोई चुनाव उसे प्रभावित ना कर पाए, बीजेपी के साथ कईं और दलों के नेताओं के बीच यह चर्चा जोर पकड़ रही है , कारण है जब हाल ही में, एक देश, एक चुनाव पर समिति की अध्यक्षता करने वाले पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने कहा कि परामर्श प्रक्रिया के दौरान 32 राजनीतिक दलों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया, जबकि 15 पार्टियों ने विरोध जताया। कोविंद ने यह भी कहा कि विरोध करने वाले 15 दलों में कई ऐसे हैं जिन्होंने अतीत में कभी न कभी एक साथ चुनाव कराने का समर्थन किया था। आपको बता दें कि विरोध करने वालों में कांगेस और आप सबसे बड़ी पार्टियां हैं। जबकि इसको लेकर समाजवादी पार्टी का कहना था कि अगर एक साथ चुनाव होते हैं तो क्षेत्रीय दल चुनावी रणनीति और खर्च के मामले में नेशनल दलों के साथ मुकाबला नहीं कर पाएंगे। वैसे यह बात किसी से छुपी नहीं है कि देश में कोई महीना या साल ऐसा जाता हो जब कोई बड़ा छोटा चुनाव ना चल रहा होता हो ऐसे में ना केवल इन चुनावों को कराने में बहुत ज्यादा पैसा लगता है बल्कि जब राज्यों के अलग अलग चुनाव होते हैं तो वहां चल रही विकास की गतिविधियों पर भी ब्रेक लग जाता है। अब एक नेशन एक इलेक्शन का विरोध करने वाले दलों को यही देखना होगा कि इस process के लाभ ज्यादा हैं या हानि