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क्या कर्नाटक में भी हरियाणा, राजस्थान, छतीसगढ़ के हालात बन रहे हैं —Congress सरकार गिर सकती

कर्नाटक में बहुत कुछ चल रहा है और सबके सामने भी है, जिस तरह से कांग्रेस अपने ही बिछाए जाल में वहां फंस गई है। इससे पहले भी कांग्रेस ने कई स्टेट्स में ऐसा किया है कि दो लोगों को, दो तरफ के गुटों को सत्ता देने का वादा किया पर जब बारी आई तो वादा पूरा ही नहीं कर सकी । इसमें जो भी झगड़ा हुआ वो अब कर्नाटक में भी देखने को मिल रहा है। एक तरफ सीता रमैया के समर्थक हैं, दूसरी तरफ डी शिव कुमार के समर्थक हैं। हमने वरिष्ठ संवाददाता विनोद शुक्ला से इस बारे में विस्‍तृत बातचीत की। विनोद शुक्ला कहते हैं कि यह पार्टी की स्ट्रेटजी हो सकती है कि चुनाव कैसे जीता जाए लेकिन चुनाव के बाद जो डिफरेंट ग्रुप्स हैं पार्टी के उन लोगों को मैनेज करके रखना, उनको एक साथ बांध करके रखना ये भी सेंट्रल लीडरशिप की जिम्मेदारी होती है लेकिन जिस तरह से पिछले दिनों में कांग्रेस लगातार चुनाव एक के बाद एक हारती रही है उसको जो मौका मिलता है उसको उसी समय भुनाने की कोशिश करती है। अब कर्नाटक में यही हुआ, चुनाव जीतने के चक्कर में एक सीक्रेट डील हुई थी, जब चुनाव हुआ था तो डी के शिव कुमार प्रदेश अध्यक्ष थे। कर्नाटक प्रदेश अध्यक्ष तो चुनाव उनके नेतृत्व में लड़ा गया तो उनका दावा ये था कि कायदे से उनका ये मुख्यमंत्री पद का दावा था। लेकिन जी मुख्यमंत्री बनाया गया सीधा रमैया को। अब ये डील हुई थी उस समय ऐसा डी के शिव कुमार का दावा है कि ढाई साल सीधा रमैया साहब मुख्यमंत्री रहेंगे। ढाई साल बाद शिवकुमार को जिम्मेदारी दी जाएगी। अब यह ढाई साल 1 दिसंबर को पूरा हो रहा है और इसके चलते शिवकुमार अपने ढाई साल मांग रहे हैं और यही कर्नाटक में कलह का कारण बन चुका है।

प्रशन -यहां पर यह देखा जा रहा है कि शिवकुमार पावरफुल है और सिद्दरमैया भी पावरफुल है। कांग्रेस कहीं ना कहीं दोनों से ही डरती है

उतर —कोई भी पॉलिटिकल पार्टी या संगठन जो है वो दो तरह से चलता है। विशेष रूप से अगर पॉलिटिकल पार्टी की बात करें पहला सपोर्ट बेस दूसरा फाइनेंसेस। तो अगर सपोर्ट बेस की बात करें तो जिस समुदाय से सीद्धारमैया साहब आते हैं वो ओबीसी वर्ग है वो एक बड़ा समुदाय है उसको अगर आप नाराज कीजिएगा तो आप चुनाव हार जाइएगा दूसरा डी के शिव कुमार की पकड़ बहुत मजबूत है अध्यक्ष लंबे समय से रहे हैं अभी भी वो अध्यक्ष और उप मुख्यमंत्री दोनों हैं। प्लस जितने चुनाव का खर्चा ना केवल कर्नाटक का बाकी बहुत सारे उस कांग्रेस का खर्चा वो वाहन करते हैं। बिज़नेसमैन है। तो ये दो चीज़ हैं। तो अब ये इसमें बैलेंस कर पाना कांग्रेस लीडरशिप के लिए मुश्किल हो रहा है। उनके लिए वो जो एक कहावत है ना डीप इन द डेविल , वैसी स्थिति है। एक तरफ खाई है दूसरी तरफ कुआं है।

प्रश्न—जिस तरह के हालात चल रहे हैं। आपको लगता है कि कर्नाटक में इसका फायदा बीजेपी उठा लेगी?

उतर—-अगर ऐसी ही लड़ाई चलती रही तो निश्चित तौर पर बीजेपी को फायदा होगा। और वैसे कर्नाटक में बीजेपी अब तक कई बार वह सत्ता में रही है। लेकिन अब तक कभी भी सिंपल मेजॉरिटी उसको अपने दम पर नहीं मिली है। मतलब आधे से एक ज्यादा। वो हमेशा अल्पमत की सरकार रही है और उसने सरकार चलाया है। इंडिपेंडेंस और बाकी लोगों के सपोर्ट में। कांग्रेस वहां हमेशा से मजबूत रही है। लेकिन जिस तरह की लड़ाई चल रही है प्लस बहुत सारे इस तरह के डिसीजंस हुए हैं जहां पर हिंदू कम्युनिटी को इंटग्नाइज किया गया है। उसके कारण वहां रिसेंटमेंट है। सैलरी को लेकर के फाइनेंससेस को लेकर के बहुत सारी दिक्कतें हो रही है। तो वो सब उनके खिलाफ जा रही है। उस पर से अगर ये लड़ाई जिस तरह से चल रही है वो निश्चित तौर पर बीजेपी चांसेस हो सकते हैं।

प्रश्न — अगर हम अब कर्नाटक से थोड़ा अलग जाएं और छत्तीसगढ़ की बात करें तो छत्तीसगढ़ में जो हुआ वहां भी कांग्रेस ने इसी तरह की स्ट्रेटजी अपनाई थी। भूपेश बघेला थे उनको मुख्यमंत्री बना दिया। लेकिन उप मुख्यमंत्री सिंह देव से वहां भी वादा किया गया था और वो बार-बार कह रहे थे कि अब मेरी बारी है मुझे मुख्यमंत्री बनाया जाए और अंदरूनी लड़ाई इतनी ज्यादा बढ़ी कि इलेक्शन हुए और कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। तो जो छत्तीसगढ़ में हुआ वही कर्नाटक में देखने को मिल रही है।

उतर —जो छत्तीसगढ़ वाला मामला है जब 2023 में विधानसभा के चुनाव हो रहे थे तो सबसे मजबूत स्थिति में यह बताया जा रहा था कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस है वो जी जाएगी। लड़ाई वहां पर शुरू हुई थी जब भूपेश बघेल और टी एस सिंह देव के बीच मामला चला था वो लगातार ये दावा कर रहे थे कि ढाई साल ढाई साल का समझौता हुआ है और अब मुझे सत्ता दी जाए। लेकिन उस सत्ता का हस्तांतरण नहीं किया गया और भूपेश बघेल ने केंद्रीय नेतृत्व से बात करके किसी तरह से उनको उप मुख्यमंत्री पद का लॉलीपॉप दे दिया था।उन्होंने उसी पर समझौता कर लिया लेकिन उसका परिणाम ये हुआ कि केवल कांग्रेस आई पर टीएस सिंहदेव साहब अपना अंबिकापुर से चुनाव 94 वोटों से हार गए। उसमें भूपेश बघेल पर आरोप लगता है कि उन्होंने ऐसा किया। तो ऐसी ही स्थिति अगर रही कर्नाटक में तो कर्नाटक में मुश्किल हो जाएगा इसलिए कि संगठन में शिव कुमार डी के शिव कुमार बहुत मजबूत है। जी तो ये ये स्थिति है और कांग्रेस लगातार इस तरह के कॉन्फ्लिक्ट्स का खामियाजा भुगतती आ रही है

प्रश्न —-अगर हरियाणा की बात करें तो वहीं भी कांग्रेस ने कईं नेताओं को वादों में घेरा और क्या इसी कारण जबरदस्त हार का सामना करना पड़ा। क्योंकि लगता यही है कि गांधी परिवार कहने को ठीक बॉस है और घूमते हैं राहुल गांधी भी हो प्रियंका गांधी भी हो लेकिन इंटरनल जो नेता है जो नेता होते हैं राज्य के वो उनकी बात इतनी ज्यादा मानते नहीं वो चलाते अपनी और हरियाणा में देखने को मिला और जो शैलजा के बीच और जो दूसरे जो हमारे हुड्डा साहब थे लगातार उनके बीच जो कलह चलती राहुल गांधी ने बीच बचाव करने की, स्टेज पर भी दोनों के हाथ मिलवा दिए। लेकिन अंदरूनी कलह इतनी ज्यादा थी और हरियाणा भी उनको लूज़ करना पड़ा। तो आपको लगता है क्या ऐसा है कि कहने को आलाकमान है और सब कहते हैं नहीं हमने आलाकमान पे छोड़ दिया। लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं होता है।सब अपनी मन की मर्जी करते हैं।

उतर—कांग्रेस की जो वर्किंग है , वो थोड़ा सी फोल्टी हो गई है। इधर जो उनका केंद्रीय नेतृत्व है उसतक पहुंचने में सबको आती है जैसे राहुल गांधी को एक्सेस करना है तो उसके लिए आपको केसी वेणुगोपाल के माध्यम से जाना पड़ेगा, सोनिया गांधी तक पहुंचना तो इंपॉसिबल है तो उन परिस्थिति में जो भूपेंद्र सिंह हुड्डा और शैलजा और इनके बीच का जो तालमेल था वो नहीं बैठ पाया और भूपेंद्र सिंह हुड्डा की सारी बात मान ली गई टिकट डिस्ट्रीब्यूशन से लेकर के चुनाव तक , अब पश्चिम यूपी राजस्थान का इलाका जो हरियाणा से जुड़ा हुआ है और हरियाणा यहां पर जाट और दलित की बहुत बड़ी राइवलरी है और भूपेंद्र हुड्डा और शैलजा दोनों जाट और दलित नेता है। उस राइवलरी ने भी नुकसान किया। जैसे ही लगा कि उनको मुश्किल मतलब शैलजा को इग्नोर किया जा रहा है तो अह दलित वोटर अलग हो गए और इस तरह के और बहुत सारे फ़ैक्टर्स हैं। लेकिन कुल मिलाकर के राइवलरी ज्यादा जिम्मेदार है। दो नेताओं की राइवलरी जिसको फिक्स किया जाना चाहिए और ये जिम्मेदारी जो होती है वो टॉप लीडरशिप की होती है जो वो कर नहीं पाए क्योंकि टाप लीडर तक पहुंचना ही मुशिकल है। सबने अपने मन की चलाई और हरियाणा हार गए। दूसरा कांग्रेस इस समय अपने दम पर चुनाव नहीं जीत पा रही है। रीजनल नेताओं को पता है कि कांग्रेस को जीतने के लिए उनपर डिपेंडेंसी है, इसलिए वो मनमानी करते हुए नजर आते हैं।

प्रश्न —अगर राजस्थान में भी देखें वहां भी सचिन पायलट को राहुल और सोनिया सभी CM बनाना चाहते थे, वो प्रियंका के भी क्लोज थे और अशोक गहलोत को कांगेस दिल्ली लाना चाहती थी पर अशोक गहलोत ने क्या गेम खेला। ऊपर से वो कहते रहे जो आलाकमान कहेगी वहीं करेंगे पर करी अपने अपनी मनमर्जी

उतर —राजस्थान का केस क्लासिक केस है जो बताता है रीजनल क्षेत्र डिफाइन सेंट्रल लीडरशिप। अशोक गहलोत पर यह दबाव बनाया गया कि मुख्यमंत्री का पद छोड़ दीजिए। सचिन पायलट को दे दीजिए। वहां भी वैसा ही हुआ था जैसा कर्नाटक में हुआ। उनकी सचिन पायलट प्रदेश अध्यक्ष थे। उनकी अध्यक्षता में चुनाव जिताया गया। लेकिन अशोक गहलोत ने अपनी राजनीति करके वहां के मुख्यमंत्री बन गए। अशोक गहलोत को कांग्रेस का मैजिशियन बोला जाता है हर तरह से। मतलब वो पार्टी को भी मैनेज कर लेते हैं और लोगों को भी जनता को भी मैनेज कर लेते हैं। तो वो उनको ऐसा ऐसा कहा जाता है। अब बन तो गए लेकिन इस बाद में समझौता नहीं हो पाया और लगातार विवाद चलता रहा। यहां तक कि सचिन पायलट पर अशोक गहलोत की सरकार ने ही सेडिशन का केस किया था। अशोक गहलोत मुख्यमंत्री बने रहना चाहते थे और वही हुआ। पर इसका परिणाम ये हुआ कि वहां जाट और बाकी ओबीसीका मामला फंसा और जाट अलग हुआ कांग्रेस से। इसमें एक और महत्वपूर्ण बात यही रही कि इन सबके बावजूद इन सबके बावजूद बीजेपी जिस तरह की जीत वहां उम्मीद कर रही थी कह रहे कि वो 150 के आसपास जाएगी वैसा नहीं होने पाया उसमें उसमें भूमिका अशोक गहलोत की थी रीजनल लीडरशिप पावरफुल थी। कहने का मतलब है कि अभी कर्नाटक की कांग्रेस की सेंट्रल लीडरशिप कोई निर्णय नहीं ले पाती , स्ट्रांग नहीं रही है, कर्नाटक को ही देखिए क्राइसिस हैं पर देखिए गांधी परिवार का कोई आदमी सामने नहीं दिख नहीं रहा है। कांग्रेस इस बात को जितना टाल सकती है टाल रही है , क्योंकिं उसे पता है कि कोई भी डिसीजन हो , चाहे डी के शिव कुमार को मुख्यमंत्री बनाया जाए चाहे सीधा रमैया को वो मुख्यमंत्री पद से हटाया जाए दोनों परिस्थिति में कांग्रेस का नुकसान ही होना है तो इस मामले में कांग्रेस कोशिश करेती रहेगी कि जितना टाल सकते हो टालते रहो।

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