क्या भूतपूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी की बेटी चली BJP में
मोदी के साथ प्रणव मुखर्जी के थे अच्छे संबंध
हाल ही में पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी की बर्थ एनिवर्सरी पर उनकी पुत्री शर्मिष्ठा मुखर्जी ने प्रणव मुखर्जी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संबंधों को लेकर के बहुत सारी बातें की जो चर्चा का विषय है। यह बातें होने लगी हैं कि जिस तरह से वह प्रधानमंत्री के प्रणव मुखर्जी के संबंधों को लेकर बातें बता रही थी उससे इशारा देने की कोशिश हो रही थी कि वो भाजपा में आना चाहती है। शर्मिष्ठा मुखर्जी ने बताया की जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुन के आए थे तो उन्होंने किस तरह से फोन करके उनसे बात किया था और उनके मार्गदर्शन की बात कही थी उनके पैर छुए थे यह सारी बातें हो रही हैं फिर आगे उन्होंने यह सब भी कहा कि ऐसा नहीं है कि यह जो उनके संबंध हैं यह उनके 2014 के चुनाव जीतने के बाद शुरू हुए थे। शर्मिष्ठा मुखर्जी का दावा है कि प्रधानमंत्री मोदी और प्रणव मुखर्जी के संबंध उन दिनों के हैं जब वह संघ के प्रचार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक हुआ करते थे और गुजरात से दिल्ली आया करते थे तब भी वह प्रणव मुखर्जी से मिला करते थे और उनका आशीर्वाद और उनका मार्गदर्शन लिया करते थे । अब यह अपने आम में बड़ी बात है और यह सब बातें कहते हुए उन्होंने बोला कि इसमें से वह कुछ अपनी तरफ से नहीं कह रही हैं जो भी वह कह रही हैं वह प्रणव मुखर्जी की डायरी में उपलब्ध है । वहां से देख करके पढ़ करके वह यह बातें कह रही हैं।
मोदी की तारीफ की तो राहुल गांधी के राज में नहीं मिलेगा टिकट
तो अब इस चर्चा के क्या मायने हैं ,शर्मिष्ठा मुखर्जी 2015 का दिल्ली विधानसभा का चुनाव लड़ी थी और वह हार गई थी । तीसरे नंबर पर आई थी उनको 6500 के आसपास वोट मिले थे, कांग्रेस की हालत खराब थी और तब आम आदमी पार्टी की आंधी थी, तो क्या अब शर्मिष्ठा मुखर्जी विधानसभा के चुनाव में दिल्ली में अपनी दावेदारी प्रस्तुत करना चाह रही हैं अब प्रधानमंत्री की तारीफ करने वाले व्यक्ति को तो कांग्रेस टिकट देगी नहीं, कम से कम राहुल गांधी के राज , में या जब तक राहुल गांधी की कांग्रेस में पकड़ है । यह हो सकता है कि क्या शर्मिष्ठा मुखर्जी भी भारतीय जनता पार्टी के शरण में आने के लिए तैयार बैठी हैं और किसी ऐसे मौके का तलाश कर रही हैं जब उनको इस तरह का ऑफर मिले और बोला जाए कि आप भारतीय जनता पार्टी जवाइन कीजिए और भारतीय जनता पार्ट जवाइन करके दिल्ली में विधानसभा के चुनाव में उनको कैंडिडेट बनाया जाए तो यह एक तार्किक परिणति है जो बातें शर्मिष्ठा मुखर्जी कर रही हैं ।
Congress के लिए एक बड़ी Embarrassment
प्रधानमंत्री की तारीफ करने के बाद राष्ट्रपति पूर्व राष्ट्रपति की पुत्री का भारतीय जनता पार्टी में शामिल होना ना केवल अपने आप में बड़ी खबर होगी बल्कि कांग्रेस के लिए एक बड़ी एंबेरेसमेंट भी हो सकती है । वैसे प्रणव मुखर्जी के सोनिया गांधी या गांधी परिवार से संबंध वैसे नहीं थे इसलिए कि प्रणव मुखर्जी उस तरह के सबमिसिव व्यक्ति नहीं थे जो आईडियोलॉजी को लेकर के या अपने पर्सनालिटी के साथ भी कंप्रोमाइज करके पार्टी में बने रहते वह पार्टी छोड़ कर के भी गए थे पार्टी कांग्रेस मतलब छोड़ कर के गए थे जो भी मतलब कुछ विषयों को लेकर के फिर उन्होंने पार्टी में वापसी भी की थी लेकिन जब उनको लगा कि अब शायद उनको पार्टी में उस तरह का सम्मान नहीं मिल रहा है तो फिर वह राष्ट्रपति भवन का रास्ता किया था उन्होंने अपनी इनडायरेक्टली सहमति मतलब इनडायरेक्टली इशारा किया था कि मुझे राष्ट्रपति भवन के लॉन बहुत अच्छे लगत हैं वह इशारा यही था कि अब वह राष्ट्रपति भवन की तरफ रुख करने वाले हैं और व राष्ट्रपति बनकर अपना कार्यकाल उन्होंने पूरा किया और राजनीत से सन्यासले लिया। मतलब राष्ट्रपति के बनने के बाद राजनीति से आप वैसे ही अलग हो जाते हैं।
दिल्ली विधानसभा के चुनाव में उतार सकती हैं
अब 59 साल की शर्मिष्ठा मुखर्जी को लगता है कि भारतीय जनता पार्टी के हिसाब से भी अभी 15 16 साल उनके राजनीतिक भविष्य का बचा हुआ है और कांग्रेस का भविष्य तो ना दिल्ली में है ना पश्चिम बंगाल में है तो उनके लिए ऑप्शन भारतीय जनता पार्टी बचता है और उसमें अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सहमति के बाद या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इंटरवेंशन के बाद उनको BJP में शामिल किया जाता है तो यह बड़ा आसान होगा कि उन्हें
विधानसभा के चुनाव में उतारा जाए । 11 अशोक रोड या दिल्ली भाजपा के ऑफिस में उनका भारतीय जनता पार्टी की प्राथमिक सदस्यता ग्रहण करना अगर यह होता है जिसके आसार बहुत मजबूत दिख रहे हैं । चर्चा है कि जल्दी ही चुनाव से पहले ही शर्मिष्ठा मुखर्जी की भारतीय जनता पार्टी में जॉइनिंग हो सकती है । यह हर दृष्टि से ना केवल दिल्ली के चुनाव के दृष्टि से भारतीय जनता पार्टी की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण होगी बल्कि कांग्रेस के लिए सेटबैक हो सकता है और आम आदमी पार्टी के लिए भी मुश्किल का सबब हो सकता है ।