चाणक्य के बचाव में कूद गए सभी बीजेपी दिग्गज
बीजेपी के सबसे कद्दावर नेताओं में से एक राजनाथ सिंह अब आमबेडकर मामले में खुलकर बीजेपी चाणक्य अमित शाह के बचाव में सामने आ गए हैं , रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि खुद कांग्रेस ने सालों साल बाबा साहेब आंबेडकर का अपमान किया। और उलके बाद भी उनका अपमान करने में कसर नहीं छोड़ी है , कांग्रेस ने अपने शासन में 40 साल तक बाबा साहेब को भारत रत्न नहीं दिया उल्टा उन्हें उन्हें बदनाम किया। दूसरी तरफ भाजपा सरकार ने बाबा साहब और उनसे जुड़े सभी स्थानों का सम्मान किया है। आपको बता दें कि हाल ही में अमित शाह ने राज्यसभा में बाबा साहेब पर अपना भाषण दिया था और विपक्ष उसी भाषण की एक छोटी सी क्लिप प्रसारित कर लगातार बीजेपी पर बाबा साहेब विरोधी होने का आरोप लगा रही है।पर इसके लिए ना केवल बाजेपी के तमाम दिग्गज congress को जमकर सुना रहे हैं बल्कि सोशल मीडिया एक्स की तरफ से भी कांग्रेस के कुछ नेताओं को नोटिस जारी करके अमित शाह की आधी अधूरी भाषण की क्लिप हटाने के लिए नोटिस भेज दिए गए। नोटिस में कहा गया है कि यह भारत के कानून के खिलाफ है।दूसरी तरफ केंद्रीय मंत्री किरण रिजिजू, राजनाथ सिंह, जेपी नड्डा, अश्विनी वैष्णव और रवनीत बिट्टू ने कांग्रेस पर जमकर निशाना साधा और कहा की congress का स्तर इतना गिर गया की वह सस्ती राजनीति कर रही है और झूठी बयानबाजी करके लोगों को गुमराह कर रही है।
किरण रिजिजू ने कांग्रेस पर सदन की कार्यवाही बेवजह बाधित करने का भी आरोप लगाते हुए कहा कि अमित शाह की एक छोटी क्लिप में उनके द्वारा कही गई बातों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया जा रहा है। और यह कांग्रेस की पुनानी आदत है। अब इस विवाद में बाबा साहेब आंबेडकर के पौत्र प्रकाश आंबेडकर भी कूद पडे हैं और उन्होंने भी बहती गंगा में हाथ धोने के चक्कर में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पर टिप्पणी कर दी।
पीएम मोदी और शरद पवार मिले—जब वी मेट तो क्या हुआ
राजनीती ऐसी चीज है कि सरकार में बैठा कोई मंत्री किसी भी कारण से विपक्ष के नेता से मिले या विपक्ष का कोई कद्दावर नेता पीएम से मिले तो तमाम अटकले लगनी शुरू हो जाती हैं कि इसके पीछे की राजनीती क्या है। और यही हुआ जब महाराष्ट्र के दिग्गज नेता शरद पवार ने दिल्ली में प्रधानमंत्री से मुलाकात की। इस मुलाकात के कई अर्थ लगाए जाने लगे हैं, पहला यही है कि हाल ही में विधानसभा चुनाव में शरद पवार को मिली जबरदस्त हार के बाद वह अपनी सांसद पुत्री सुप्रिया सुले का राजनीतिक भविष्य सुरक्षित करने को लेकर बहुत चिंतित हैं। एक थ्योरी यह सामने आ रही है कि वह अपने दल का विलय कांग्रेस में कर सकते हैं । दूसरी थ्योरी यह है कि वह अपने अपने भतीजे अजीत पवार के साथ भी जा सकते हैं और इन सब के बीच शरद पवार का पीएम मोदी से मिलना इस बात को बल दे रहा है कि आने वाले समय में शरद पवार एनडीए का हिस्सा बन सकते हैं। वैसे पीएम मोदी के साथ शरद पवार के रिश्ते काफी अच्छे हैं और दोनों नेता अकसर मिलते ही रहते हैं। पर इस बार मुलाकात के पीछे बात कुछ और निकल कर सामने आ रही है।
राजनीती में भाषा का गिरता स्तर निंदनीय
राजनीती में भाषा का स्तर लगातार बिगड़ता जा रहा है कोई, किसको लेकर कब, क्या ,कहां अपशब्द बोल दे पता ही नहीं रहता है। यही हुआ जैसा की आजकल संसद वन नेशन वन इलेक्शन के बारे में जोर शोर से चर्चा चल रही है और विपक्ष जमकर इसका विरोध कर रहा है । तो विपक्ष पर टीका टिप्पणी करते करते पूर्व मंत्री अश्विनी चौबे के बोल बिगड़ गए, उन्होंने विपक्ष की तुलना एक मेढ़क से कर दी हाल ही में जब वह सुपौल के दौरे पर थे तो उन्होंने विपक्ष पर तंज कसते हुए कह दिया कि
विपक्ष टर टर करता रह जाएगा और वन नेशन वन इलेक्शन बिल पास भी हो जाएगा। अब क्या कहा जाए इससे पहले विपक्ष और खासतौर से कांग्रेस जैसी नेशनल पार्टी के नेता तो पीएम नरेंद्र मोदी की तुलना नाग, सांप यहां तक की राक्षस तक से कर चुके हैं।,अब बेहुदी भाषा का प्रयोग चाहे सरकार में बैठे मंत्री करें या विपक्षी नेता, गलत तो गलत ही रहेगा और राजनीती में भाषा का गिरता स्तर सचमुच चिंता का विषय है। आपको बता दें कि वन नेशन वन इलेक्शन का विपक्ष यह कहकर विरोध कर रही है कि इस बिल के आने से क्षेत्रीय स्तर की तमाम पार्टियां चुनावों में नेशनल पार्टियों के मुकाबले टिक नहीं पाएंगी। जबकि सरकार का कहना है कि सभी चुनाव एक साथ होंगे तो सरकार को पूरे पांच साल काम करने का मौका मिलेगा। आचार संहिता की वजह से विकास कार्य बाधित नहीं होंगे। वही चुनावों में होने वाला खर्च भी घटेगा।
Bjp को कौन फायदा पहुंचा रहा दिल्ली में
अब यह बात तो clear हो चुकी है कि दिल्ली में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी मिलकर चुनाव नहीं लड़ रहे हैं और शायद यही कारण रहा है कि कांग्रेस ने पहली बार चुनाव से इतने दिनों पहले अपने 21 उम्मीदवारों के नामों की घोषणा करके यह संकेत दे दिया की वह पूरी गंभीरता से दिल्ली के चुनाव लड़ना चाहती है और कमर कस कर मैदान में उतरेगी। आपको बता दें कि पिछले दो विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को दिल्ली विधानसभा चुनाव में एक भी सीट पर जीत नहीं मिल पाई है और दिल्ली में यही माना जाता रहा है कि मुकाबला सिर्फ आम आदमी पार्टी और बीजेपी के बीच है। वैसे यह तो साफ है कि यदि इस बार चुनाव में कांग्रेस को कुछ सीटें हाथ लग जाती हैं तो इसका नुकसान सीधे तौर पर आम आदमी पार्टी को ही होगा और जिस तरह से पिछले काफी समय से आप के नेताओं के उपर corruption के charges लग रहे हैं उससे दिल्ली में आम आदमी पार्टी की लोकप्रियता का ग्राफ काफी गिरा है और congress इस स्थिति का पूरा फायदा उठाना चाहती है और यही कारण है कि वह अभी से अपने उम्मीदवारों को मैदान में उतार रही है जिससे उन्हें तैयारी करने का पूरा मौका मिल सके। कांग्रेस 21 उम्मीदवारों के नामों का ऐलान कर चुकी है और अहम माना जा रहा है अरविंद केजरीवाल के खिलाफ नई दिल्ली सीट से संदीप दीक्षित को उतारना यहां शीला दीक्षित चुनाव लड़कर जीतती आई हैं। लेकिन इन सब के बीच बीजेपी कांग्रेस के एक्टिव होने से खुश ही है क्योंकि वोटों का बंटवारा होता है तो दिल्ली की गद्दी हथियाने में बीजेपी कामयाब हो सकती है।