जस्टिस जसवंत वर्मा क्यों नहीं दे रहे त्यागपत्र

जस्टिस जसवंत वर्मा की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। जस्टिस जसवंत वर्मा जो हाई कोर्ट के जज थे और जिनके घर से जले हुए कैश की बरामदगी हुई थी। सुप्रीम कोर्ट की बैठाई हुई कमेटी में उन पर जो बातें थी वो साफ निकल कर के आई कि हां ये कैश उनके यहां से बरामद हुए। लेकिन उसके बाद से भी जस्टिस वर्मा जो है वह ना तो त्यागपत्र देने के लिए तैयार हैं बल्कि अपना मामला लेकर के अदालत सुप्रीम कोर्ट गए हैं। जहां पर उन्होंने जो इंटरनल कमेटी की रिपोर्ट है उसको चुनौती दी है। इस रिपोर्ट में उनको इस मामले में दोषी पाया था। और जो महाभियोग वाला मामला है, महाभियोग की सिफारिश जो जस्टिस खन्ना ने की है, उसको भी चुनौती दी गई है। लेकिन इस पूरे मामले को सुप्रीम कोर्ट ने रिजेक्ट कर दिया है। जिस मामले को लेकर के जस्टिस वर्मा अदालत गए थे। इसके अलावा जो महत्वपूर्ण बात यह है कि महाभियोग की कार्यवाही भी उनके खिलाफ आगे बढ़ रही है। आगे बढ़ाई जा रही है और उस पर उस पूरी प्रक्रिया को सरकार अपने स्तर से बढ़ा रही है। इसका मतलब यह है कि आने वाले दिन जस्टिस वर्मा के लिए और मुश्किल होने वाले हैं और सामान्यत इस तरह की परिस्थिति में त्यागपत्र बेहतर रास्ता होता है।
क्या BJP के लिए जगदीप धनकड़ की उपयोगिता खत्म हो गई थी

जब जस्टिस वर्मा के एपीजमेंट को लेकर के एक मसला उठा था तो उसमें विपक्ष की बात को लेकर के जिस तरह से पूर्व उपराष्ट्रपति ने स्वीकृति दी थी वो सरकार को नागवार गुजरी थी। ऐसा जो सूत्र हैं उन्होंने बताया और इसी कारण उनको अपना पद छोड़ना पड़ा। हालांकि उन्होंने स्वास्थ्य कारण इसके पीछे बताया था। लेकिन अब नए उपराष्ट्रपति का चुनाव भी होना है और इस मामले की अधिसूचना भी चुनाव आयोग ने जारी कर दी है। इसलिए कि उपराष्ट्रपति का पद भी ज्यादा दिन तक रिक्त नहीं रह सकता है। बहुत सारे नामों पर चर्चा हो रही है और सामान्यत एक बात यह कही जा रही है कि किसी ऐसे व्यक्ति को उपराष्ट्रपति बनाया जाएगा जो जिसकी उपयोगिता चुनाव की दृष्टि से हो। जैसे अब जगदीप धनकड़ की उपयोगिता चुनावी दृष्टि से तीन राज्यों में थी। राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश। तो अब हरियाणा में भाजपा जीत चुकी है।राजस्थान भाजपा जीत चुकी है। दिल्ली भाजपा जीत चुकी है। तो उनकी उपयोगिता उतनी नहीं है। लेकिन उनकी उपयोगिता लोकसभा के चुनाव में उतनी कारगर नहीं साबित हुई। तो अब उस तरह की उपयोगिता की दृष्टि से एक बहुत महत्वपूर्ण नाम आया है। वह महत्वपूर्ण नाम है ऑर्गेनाइजर के जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मुख पत्र है उसके पूर्व संपादक अंग्रेजी का जो मुख पत्र है उसके पूर्व संपादक शेषाद्रीचारी का नाम।शेषाद्रीचारी का नाम इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि वो दक्षिण से आते हैं और भारत भारतीय जनता पार्टी दक्षिण में अपनी बात जो है अपने आप अपना एक्सपेंशन चाहती है।
तेजस्वी ने क्या बिगाड़ा तुलसीदास जी का नाम

राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव ने एक ट्वीट करके अपने दो प्रवक्ताओं की तारीफ की है और वो हैं, । प्रियंका भारती और कंचना यादव जिसमें उन्होंने बोला था कि यह संघी और जो संघी प्रवक्ताओं को किस तरह से ये दोनों प्रवक्ता जो है जेएनयू के पढ़ी हुई प्रवक्ता कैसे संघी प्रवक्ताओं को ठिकाने लगाती हैं। लेकिन इस दौरान उन्होंने एक बड़ी मिस्टेक कर दी। उन्होंने संघ को भारतीय जनता पार्टी को टारगेट करते करते एक बार फिर हिंदुत्व पर निशाना साधा है और हिंदुत्व पर निशाना साधते हुए उन्होंने गोस्वामी तुलसीदास के बारे में भला बुरा मतलब जो शब्द इस्तेमाल किया वो अपशब्द उनको कह सकते हैं। अगर तुलसीदास दुबे आज जिंदा होते तो अपना माथा पीट लेता। तो ये रामचरितमानस भारतीय जनमानस के लिए कितना महत्वपूर्ण है और उसके रचयिता के बारे मेंइस तरह की भाषा का इस्तेमाल करना जो दुखद है और निंदनीय है। इसमें महत्वपूर्ण बात यह है कि तेजस्वी यादव लिख रहे हैं तुलसीदास दुबे। तुलसीदास दुबे नाम नहीं था गोस्वामी तुलसीदास का। दुबे उनका सरनेम जरूर था लेकिन तुलसीदास नहीं था।अपनी इस बेवकूफ इस तरह की बेवकूफियों और ट्रोल बनाने के चक्कर में अपनी अज्ञानता तेजस्वी लगातार दिखाते रहे।
