राजनीतिक गलियारों में चर्चा चल निकली है कि मोदी सरकार के जाती जनगणना करवाने के फैसले से कईं नेता बहुत ही ज्यादा हैरान, परेशान और मायूस हैं, और यह ठीक भी लगता है क्योंकि इस फैसले ने कांग्रेस, RJD, समाजवादी पार्टियों के साथ साथ कईं छोटे दलों से, सरकार पर हमला करने का सबसे बड़े हथियार छीन लिया है। पहले तो हाल ये था कि किसी भी रैली, सभा में कुछ बोलने को नहीं मिल रहा, भाषण तैयार नहीं है, सभा आगे बढ़ानी है तो बस जाती जनगणना का मुद्दा उठा लो और सरकार को कोसना शुरू कर दो। मोदी सरकार का एक बयान आया और सब खत्म हो गया।
जाती जनगणना वास्तव में बहुत अहम मुद्दा है क्योंकि आजादी के बाद अभी तक इस तरफ ध्यान ही नहीं दिया गया। आपको बता दें कि आजादी से पहले अंग्रेजों ने 1901 में भारत में पहली जनगणना तो करा ली, लेकिन कास्ट सेंसस अंगेज भी 1931 में ही करा सके।आजादी के बाद भी 1951 से 2011 तक हुई हर जनगणना में सिर्फ SC और ST की आबादी दर्ज की गई, लेकिन किसी और जाति या समूह के लोगों को इसमें शामिल ही नहीं किया गया ।
वैसे कांग्रेंस यानी यूपीए सरकार ने 2011 में सामाजिक, आर्थिक और जातिगत जनगणना कराई जो आजादी के बाद पहली बार हुआ पर उसके आंकड़े कभी सामने नहीं आए, फिर सरकार बदली और मामला ठंडे बस्ते में चला गया।जब विपक्ष ने हो हल्ला किया तो 2018 में सरकार ने लोकसभा को बताया कि ‘कास्ट डेटा की प्रोसेसिंग में कुछ गलतियों का पता चला है।’ 2021 में मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा देकर कहा था कि एससी, एसटी के सिवा बाकी लोगों के बीच कास्ट सेंसस ‘कराना प्रशासनिक रूप से बहुत मुशिकल है। वैसे इस बीच कर्नाटक, बिहार और तेलंगाना में जातिगत सर्वे करवाया जा चुका है , पर अब नेशनल स्तर पर होने वाला सर्वे से यही माना जा रहा है कि सरकार की सभी कल्याणकारी नीतियों का फायदा सभी वंचित वर्गों तक आसानी से पहुंचाया जा सकेगा क्योंकि उनके बारे में सरकर के पास आंकड़े उपलब्ध होंगे।
अकेले OBC में ही हजारों जातियां हैं
वैसे जाती जनगणना करवाना सरकार के समक्ष टेढी खीर ही है क्योंकि जहां 1901 की जनगणना से पता चला कि भारत में 1646 जातियां हैं। वहीं 1931 की जनगणना होने तक यह संख्या 4147 जातियों तक पहुंच गई और अब उसके मुकाबले अकेले OBC में ही हजारों जातियां हैं। 2011 के सर्वे में गलतियां थी कि एक ही जाति को कुछ कर्मचारियों ने अलग स्पेलिंग में लिखा, कुछ ने दूसरी स्पेलिंग में। जहां यूपी में कुछ ब्राह्मण जातियां OBC लिस्ट में हैं, वहीं कुछ राज्यों में वैश्य समुदाय की कुछ जातियां OBC तो कुछ राज्यों में जनरल लिस्ट में हैं। कुछ राज्यों में जाट OBC लिस्ट में नहीं हैं। वहीं, कर्नाटक की ओबीसी लिस्ट में गौड़ सारस्वत ब्राह्मण भी हैं। तमिलनाडु और केरल में अन्य पिछड़ा वर्ग की लिस्ट में सौराष्ट्र ब्राह्मण शामिल हैं। लिस्ट बहुत लंबी है और सरकार को इन्ही सब परेशानियों से निपटना है।