डरावने DREAMS आ रहे हैं, डर गए IGNORE मत कीजिए बड़ी ILLNESS का संदेश हो
डा. एम वलि देश के जाने माने इंटरनल मेडिसिन है और देश के पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के चिकित्सक भी रह चुके हैं, उनसे मिलकर हमने कुछ ऐसी बीमारियों के बारे में चर्चा की जो आजकल हर युवा वर्ग झेल रहा है क्योंकि ये कहीं ना कहीं हमारी खराब जीवनशैली से जुड़ी हैं, सबसे पहले हमने डा वलि से डर के बारे में बात की , आजकल हर किसी को किसी ना किसी तरह का डर सताता रहता है, बच्चे तो रात को डर से चीख कर उठ बैठते हैं,
इस बार में डा वलि का कहना है कि —डर ये इग्नोर नहीं करने वाली बात है। ये किसी अंदर छुपी हुई बीमारी का संदेश हो सकती है। मरीज बताते हैं कि सोते-सोते वो डर जाते हैं, सोते-सोते उनको सांस रुक जाता है और वो चौक के उठ जाते है, कारण है कि उनके ब्लड में ऑक्सीजन कम हो जाता है तो इसको हम ऑब्ट्रक्टिव स्लीप एपनिया कहते हैं। इसमें डरावने ख्वाब भी आते हैं। इसमें डर लगता है। चौक के पेशेंट उठ जाता है। लोग टाल देते हैं ये देख के भाई ये तो वजन ज्यादा है। खर्राटे आ ही रहे होंगे। लेकिन ये बहुत बड़ी छुपी हुई बीमारी के लिए एक संदेश होता है। इसके अलावा बच्चों में पार्शियल एपिलिप्सी जब होती है तो उनको भी डर की फीलिंग होती है। डर का सिम्टम होता है। कभी-कभी एंजाइना पेन जब होता है चेस्ट में तो हमको अनप्लेज़ेंट चुएशन होती है और उसमें डर लगता है। सो डर लगना साइकेट्रिक इलनेस भी हो सकती है। डिप्रेशन का साइन भी हो सकता है। कार्डियक इलनेस का साइन हो सकता है। और सबसे इंपॉर्टेंट यह हाइपोग्लाइसीमिया का साइन हो सकता है। अगर आप डायबिटिक हैं, रेगुलर दवाई खा रहे हैं। किसी दिन आपने खाना ठीक से नहीं खाया तो आपकी ब्लड शुगर फॉल कर जाएगी। और उस समय आपको एक फीलिंग ऑफ डूम होती है जिसको कहते हैं, डर लगना कहते हैं, वह होगी बेहोश होने से पहले। सो ऐसे अगर सिम्टम हो रहे हैं, तो फौरन डॉक्टर के पास जाइए।
बच्चों में किसी चीज के लिए डर IGNORE ना कीजिए
इसके अलावा बच्चों में कुछ ऐसे डिसऑर्डर्स होते हैं जो वो इनफीरियरिटी फील करते हैं। जैसे किसी बच्चे के बाल बचपन में सफेद हो गए। किसी बच्चे की हाइट कम रह गई। लडकियों को लगता है कि मेरा कॉम्प्लेक्शन डार्क है तो इसमें भी उसको डर लगेगा। इनसिक्योरिटी की फीलिंग होगी। कुछ सीजोफ्रेनिक पेशेंट्स होते हैं उनको भी फीलिंग ऑफ इनसिक्योरिटी होती है। जैसे लोग कहते हैं ना मैं मेट्रो ट्रेन में नहीं जा पाता। मुझे सीढ़ियों पर चढ़ने में डर लगता है। मुझे लिफ्ट में डर लगता है। मैं भीड़भाड़ वाले इलाके में नहीं जा सकता हूं। तो डर खाली एक शब्द नहीं है। डिक्शनरी का यह शब्द बहुत सी बीमारियों का संदेश हो सकता है। यह इसके अंडर बहुत सी बीमारियां छुपी हुई हो सकती है। तो डर को डिफाइन कीजिए, ट्रीट कीजिए और उससे फायदा उठाइए।
किशोर लडकियों में every month दर्द कहीं एनीमिया तो नहीं
लड़कियों में आमतौर से 13 से 17 साल की उम्र में मासिक दर्द एक बहुत कॉमन डिसऑर्डर बनता जा रहा है इनमें पीसीओडी के साथ भी हो सकता है, लड़कियां पूरी पीली पड़ जाती हैं, दर्द के मारे और वह सेल्फ मेडिकेट करने लगते हैं अपने को ऐसी बच्चियों के लिए उनके मां-बाप को उनको एजुकेट करना चाहिए उन बच्चों को बताना चाहिए कि ये एक अवस्था है जो नई आपकी जिंदगी में पैदा हुई है और यह हर महीने होगा उसको लिए डॉक्टर की राय भी लेकर खाली पेन रिलीफ ड्रग से इसका ट्रीटमेंट नहीं करना चाहिए क्योंकि ब्लड की कमी बहुत ज्यादा कॉमन कॉज है यंग गर्ल्स में आजकल क्योंकि बच्चों का खाना जो है वह गड़बड़ हो गया है बच्चे जंक फूड पर आ गए हैं बच्चे नॉर्मल आयरन कंटेनिंग फ्रूट्स वेजिटेबल्स और इस तरह की चीजें नहीं खाते हैं जो पौष्टिक होती है बैलेंस डाइट नहीं लेते हैं तो ऐसे बच्चों को आयरन की कमी बहुत ज्यादा हो जाती है और आयरन की कमी जब हो जाती है तो यह मेंस्ट्रुअल पेन बहुत ज्यादा प्रॉमिनेंट हो जाता है नॉर्मली कुछ कॉन्टिनेंटल एब्नॉर्मेलिटीज भी होती हैं ट्यूबल यूटाइन एब्नॉर्मेलिटीज़ बट वो बहुत रेयर होती हैं तो ऐसे में एक जनरल डॉक्टर को पहले दिखाना चाहिए क्योंकि लेडी डॉक्टर भी बाहर से ही देखेगी तो जनरल डॉक्टर उसका थायरॉइड का टेस्ट करेगा और एनीमिया का टेस्ट करेगा एब्डोमिनल अल्ट्रासाउंड करा के देखेगा कि क्या कारण है ।एनीमिया का इलाज करना भी बहुत जरूरी है क्योंकि एनीमिया ही का इलाज अगर हम कर देंगे तो ये सिम्टम्स ठीक हो जाएंगे।
युवा किशोरों में नहीं आना दाढी-मूंछे——DISEASE है पर TREATMENT भी
कुछ बच्चों में हम स्कूल्स में आमतौर पर देखते हैं कि उनके एज के हिसाब से चीख चिकने होते हैं गालों पे बाल नहीं होते मूछे नहीं होती है वो ओबीज़ भी होते हैं और उनके ब्रेस्ट की जगह पे भी थोड़ा भारीपन होता है और वो बाद में कुछ दिनों बाद जब उनका वेट बढ़ने लगता है तो शर्मीले भी हो जाते हैं कभी-कभी स्कूल जाना है अवॉइड करने लगते हैं ।प्लम बच्चों को अगर इस तरह के सिम्टम्स हो तो उनमें हाइपोगोनेडिज्म हो सकता है हाइपोथायरॉइडिज्म हो सकता है ,पिट्यूटरी इनसफिशिएंसी हो सकती है एंडोक्रेन डिसऑर्डर मेरे कहने का मतलब यह जल्दी उस पर ध्यान देना चाहिए और उन
बच्चों की मेडिकल जांच करानी चाहिए क्योंकि वो बच्चे बाद में फिर उनको एक साइकोलॉजिकल बीमारी भी हो जाती है जिससे उनको एक कॉम्प्लेक्स हो जाता है उनको डिप्रेशन हो जाता है और उनकी फिर पढ़ाई भी अफेक्टेड होती है तो ऐसे बच्चों में हमको या तो थायरॉइड डिसऑर्डर सोचना चाहिए या उनको हाइपोगोनेडिज्म जिसमें उनके टेस्टिस छोटे होते हैं , यह एक मिलाजुला सिंड्रोम है जिसमें या तो गोनाइडल एजेनेसिस हो सकता है डेवलपमेंट ही ना हुआ हो गोनाइड्स का और ऐसे बच्चों को फिर सेक्सुअल इश्यूज भी आते हैं बाद में तो सारी चीजें अगर बचपन में 12 से 15 साल की ऐज में डायग्नोस हो जा चेक हो जाए और उसका इलाज हो जाए तो ये बहुत अच्छा होता है तो ऐसे बच्चों की पहचान कैसे की जाए प्लंप होंगे उनके मूछे और दाढ़ी नहीं होगी उनके गर्दन पे खंप होगा फैट का उनकी टोन निकली हुई होगी भारी होगा हाइट के हिसाब से वेट ज्यादा होगा । इसका इलाज आसान है एक बार अगर डायग्नोस हो जाता है क्रोमोसोमल पैटर्न पता चल जाता है अगर मेल पैटर्न क्रोमोसोम है बहुत आसान है इलाज टेस्टीज का इलाज हॉर्मोन से हो जाता है अगर टेस्टिस में डेवलपमेंट का है शुरू में पता लग गया तो हार्मोनल ट्रीटमेंट देके हम ठीक कर सकते हैं एमआरआई वगैरह से हम ब्रेन में पिट्यूटरी के डेवलपमेंट का पता लगा के उसके हिसाब से ग्रोथ हॉर्मोन दे सकते हैं तो ये तीन लाइन पे इसका इलाज होता है।