दीवारों पर चमकदार रंगों से सजावट – कहीं ना बन जाए Health की दुश्मन
घर पर रंग कराने हैं तो चमकदार, आकर्षक रंगों से बचें
दिवाली आने वाली है और इस कारण घर , आफिस या काम करने की तमाम जगहों पर साफ सफाई की मुहिम शुरू हो गई है। सफाई का मतलब ही है पेंट कराना, क्योंकि जब तक दीवारें साफ नहीं लगती पता ही नहीं चलता की कुछ नयापन है सफाई हुई है। लेकिन घर-बाहर में रंग कराते समय आपको कुछ बातों का ध्यान रखना होगा क्योंकि ये सावधानियां सीधे आपकी हेल्थ से जुड़ी हुई हैं। रंगों के चयन, उसके रंग को लेकर सावधान होने जरूरत हैं क्योंकि जो चमकदार, आकर्षक रंग आपके घरों को सजाने का काम कर रहे हैं वो आपकी हेल्थ के लिए सीधा खतरा हैं । क्योंकि बाजार में मिलने वाले रंगों में मिला है वो जहर , जो आपके और आपके बच्चों के लिए बहुत बड़ा खतरा बनता जा रहा है। जाने-अनजाने आप अपने घरों की दीवारों पर वो रंग करवा रहे हैं जिसका असर धीरे-धीरे आपकी हेल्थ पर पड़ेगा और आपको पता भी नहीं चल पाएगा कि घर में अचानक बीमारियां क्यों बढ़नी शुरू हो गई हैं।
पुताई के रंगों में लैड यानी शीशे की मात्रा बहुत ज्यादा
थोड़े समय पहले ही टाक्सिक लिंक की एक स्टडी में खुलासा किया गया था कि बाजारों में बिकने वाले पुताई के रंगों में लैड यानी शीशे की मात्रा बहुत ज्यादा है।
आपको यह जानकर आश्चर्य तो होगा, साथ डर भी लगेगा कि बाजार में मिलने वाले बहुत से रंगों में शीशे की मात्रा सरकार की ओर से तय मानक 90 पीपीएम से बहुत अधिक मिली है।स्टडी के दौरान देखा गया कि 46 पेंटस के नमूनों में लेड की मात्रा तय मानक 90 पीपीएम से बहुत अधिक मिली । एक पेंट में इसकी मात्रा 2,50,000 पाई गई जो तय मानक से 2800 गुना अधिक थी।सोच सकते हैं पुताई के यह रंग आपके लिए कितना बड़ा खतरा है।
बड़ें-बच्चों के लिए लैड कितना खतरनाक -दिमाग पर असर डालता है
आपको बता दें कि लेड हमारे और खासतौर पर 6 साल तक के बच्चों के लिए बहुत ज्यादा खतरनाक होता है। घर की दीवारों को बच्चे अकसर चाटते हैं, कईं बार सुखे पेंट की पपड़ी किसी ना किसी रूप मे हमारे शरीर में प्रवेश कर जाता पर तब उसमें मौजूद लैड शरीर के लिए एक धीमे जहर का काम करता है।
एक्सपर्ट के मुताबिक एक बार जब लैड खून में आ जाता है तो सीघा बच्चों के दिमाग में जाकर उसे नुकसान पहुंचाता है। गर्भावस्था के दौरान कई बार ये भ्रूण में स्थानांतरित हो जाता है, जिससे बच्चे मंद बुद्धि और कम वजन वाले पैदा हो सकते हैं। जन्म के समय कम वज़न और धीमी वृद्धि की स्थिति हो सकती। इसके कारण एनीमिया और कई दिमाग से संबंधित रोग हो सकते हैं। थकान, पेट में दर्द, मतली, दस्त, भूख न लगना, एनीमिया, मसूड़ों पर एक गहरी रेखा तथा मांसपेशियों में कमज़ोरी या शरीर के अंगों में पक्षाघात इसके लक्षण हैं।ऐसा नहीं है कि लैड एक ही दिन में अपना असर दिखाता है। घरों के पैंट में मौजूद लैड सालों साल शरीर में घुसता रहता है, वहां जमा होता है और नुकसान पहुंचाता है।आपको बता दें कि लैड आसानी से कैल्शियम की जगह ले सकता है। शरीर के लिए कैल्शियम बहुत जरूरी है और जब लैड इसकी जगह लेता है तो शरीर को बहुत ज्यादा नुकसान होना शुरू हो जाता है।यह स्थिति बच्चों के लिए बहुत ही खतरनाक है।
लैड बच्चों में विकलांगता का एक बड़ा कारण
वर्ष 2020 में यूनिसेफ और प्योर अर्थ (Pure Earth) की एक रिपोर्ट में बहुत ही चिंताजनक खुलासा हुआ है। इसमें बताया गया है कि देश में 50% बच्चों के रक्त में लैड की ज्यादा मात्रा होती है। जो बच्चों में विकलांगता का एक बड़ा कारण है।
रंगने के लिए पेंट खरीद रहे हैं तो इस बात का रखे ध्यान
इसलिए दीवारे रंगने के लिए पेंट खरीद रहे हैं तो बिना लैड का पेंट लीजिए और डिब्बे पर लैड की मात्रा जरूर पढ़िए। साथ ही समझ। लीजिए जितना चमकदाक रंग होगा लैड़ की मात्रा उसमें उतनी ज्यादा होगी। इसलिए रंगों की चमक पर मत जाइए, ज्यादा चमक लाने के लिए लैड़ की ज्यादा से ज्यादा मिलावट की जाती है। इसलिए चमकदार रंगों से बचिए, घर को सुंदर बनाने के चक्कर में इसे बीमारी का घर मत बनाइए।