वसुंधरा राजे का मोदी शाह जोड़ी से छत्तीस का आंकड़ा है और यही दुष्यंत  का मोदी कैबिनेट में  होने की  राह में सबसे बड़ा रोड़ा

 

राजस्थान की झालावाड़-बारां लोकसभा सीट , अपने एक इतिहास के कारण मशहूर है।   पिछले पैंतीस साल से यहां से वसंघरा  राजे सिंधिया और उनके पुत्र दुष्यंत सिंह का दबदबा बरकरार है। यहां से इसी एक राजपरिवार के सदस्य ही चुनाव जीतते आए हैं।पहले वसुंघरा राजे सिंधिया ने यहां से लोकसभा सांसद के तौर पर पांच बार जीत दर्ज की। फिर उनके पुत्र ने अपनी मां के रिकॉर्ड की बराबरी की।उनके पुत्र दुष्यंत सिंह भी 2024 के चुनाव एक बार फिर जीत कर  संसद पहुंचे हैं। दुष्यंत सिंह के सामने अब तक किसी भी राजनीतिक दल की ओर से कोई बड़ी चुनौती नहीं आई है। यह सीट उनकी मां और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के विशेष प्रभाव वाली है। इस वजह से उन्हें जीत की राह में कोई अड़चन नहीं आई।

वसुंधरा राजे का मोदी शाह जोड़ी से छत्तीस का आंकड़ा – दुष्यंत  का मोदी कैबिनेट में  होने की  राह में सबसे बड़ा रोड़ा

राजनूितिक गलियारों में यह बात हमेशा चर्चा का विषय रहती है कि , दुष्यंत  इतने वरिष्ठ सांसद होने के बाद भी मोदी मंत्रिमंडल में कोई जगह नहीं पा सके हैं ।  राजनीति के जानकार मानते हैं  कि उनकी मां वसुंधरा राजे का मोदी शाह जोड़ी से छत्तीस का आंकड़ा है और यही दुष्यंत  का मोदी कैबिनेट में  होने की  राह में सबसे बड़ा रोड़ा है।  झालावाड़ को बीजेपी अभेद्य गढ़ माना जाता है सिंह वर्तमान में राजस्थान के सबसे वरिष्ठ सांसद हैं। इस बार सिंह के पांचवीं बार सांसद चुने जाने और केन्द्र में एनडीए की सरकार आने के बाद उनके मंत्री बनने के  कयास लगाए जा रहे थे लेकिन ऐसा हो नहीं पाया।हाल के लोकसभा चुनावों में वसुंधरा राजे की भूमिका भी काफी सीमित रही थी। वे चुनाव प्रचार के दौरान झालावाड़ क्षेत्र के अलावा कहीं और कम नजर आईं। हालांकि राजे अभी बीजेपी संगठन में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के पद आसीन हैं लेकिन सूबे की सक्रिय राजनीति में उनकी भूमिका कम होती जा रही है।

दुष्यंत ने चार चुनाव रिकॉर्ड मतों से जीते – पांचवी बार संसद पहुंचे

इस लोकसभा सीट से वसुंधरा पहली बार 1989 में चुनाव मैदान में उतरीं थी। उसके बाद उन्होंने यहां से लगातार पांच बार लोकसभा चुनाव जीते। राजे झालावाड़ सीट से 1989, 1991, 1996, 1998 और 1999 में सांसद निर्वाचित हुईं थी। उनकी इस जीत का सिलसिला टूटा साल 2003 में जब उन्होंने राजस्थान की राजनीति में कदम रखा। उनके पुत्र दुष्यंत ने चार चुनाव रिकॉर्ड मतों से जीते हैं।वसुंधरा ने जब 2003 में झालावाड़ लोकसभा सीट छोड़ी तो उसके बाद उसे अपने बेटे दुष्यंत सिंह को खड़ा किया था। सिंह ने मां की इस राजनीतिक विरासत को बखूबी संभाला और चार बार लाखों मतों से चुनाव जीता। वे साल 2009 के चुनाव एक बार 52841 वोटों के अंतर से जीते थे. यह चुनाव उनके लिए सबसे कठिन रहा था. शेष सभी चुनाव उन्होंने लाखों वोटों के अंतर से जीते हैं।

दुष्यंत का लोकसभा में कम  योगदान – बहुत कम बोलने वाले सांसदों में

यहां यह बात स्पष्ट करना लाजिमी है कि वसुंधरा का जिक्र कई बार इसलिए किया जा रहा है क्योंकि उनके पुत्र दुष्यंत का बतौर सांसद लोकसभा में योगदान यदा कदा ही रहा। वे सदन में बहुत कम बोलने वाले सांसदों में शुमार होते हैं।

दुष्यंत सिंह एक भारतीय राजनीतिज्ञ – व्यवसायी और धौलपुर राज्य के पूर्व शासक

ग्यारह सितंबर 1973 को मुंबई में जन्मे दुष्यंत सिंह एक भारतीय राजनीतिज्ञ व्यवसायी और धौलपुर राज्य के पूर्व शासक परिवार के सदस्य है।उनकी मां वसुंधरा राजे और पिता धौलपुर नरेश हेमंत सिंह हैं। उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा दून विद्यालय से प्राप्त की, और फिर सेंट स्टीफेंस कॉलेज, दिल्ली में अर्थशास्त्र से स्नातक की डिग्री प्राप्त की। उन्होंने अमेरिका के जॉनसन एंड वेल्स यूनिवर्सिटी से बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन में मास्टर डिग्री हासिल की।

दुष्यंत ने समथर रियासत की राजकुमारी निहारिका राजे के साथ शादी की थी। उनकी पत्नी निहारिका नेपाल के राणा राजवंश के महाराजा रणजीत सिंह जूदेव और गंगा राज्यलक्ष्मी की बेटी हैं।दुष्यंत सिंह को राजनीति की विरासत में मिला है। उनकी नानी राजमाता विजयाराजे सिंधिया भारतीय जनता पार्टी की दिग्गज नेता थीं।

होनहार नेता पर मोदी जी की कृपा कब होगी 

दुष्यंत ने राजस्थान के झालावाड़ लोकसभा क्षेत्र से 2004 में चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। तब से वह लगातार सांसद रहे हैं। उनकी मुख्य उपलब्धियों में रेलवे स्टेशन और हवाई अड्डे की स्थापना शामिल है। 2019 के चुनाव के दौरान, उनकी अचल संपत्ति की मान्यता 4.56 करोड़ रुपये और चल संपत्ति की मान्यता 3.56 करोड़ रुपये रखी गई थी।अपने इलाके में दुष्यंत  ने रेलवे स्टेशन और हवाई अड्डे की स्थापना करवाने में काफी मेहनत की और उन्हें सफलता भी मिली , पर इतने पढ़े-लिखे, जुझारू जनता में लोकप्रिय नेता पर अभी तक मोदी जी की कृपा दृशिट नहीं पड़ी है और शायद दुश्यमत को  उसी का इंतजार हो

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