पशिचम बंगाल में खींची नफरत की दीवारें
क्या पशिचम बंगाल भी मणिपुर की तर्ज पर जा रहा है , क्योंकि यहां भी कुछ समुदायों के बीच लगातार हिसा भड़क रही है और ये शर्मानाक ही है कि इसे रोकने की बजाय इस हिंसा को मुद्दा बनाकर एक बार फिर केंद्र और ममता सरकार के बीच तलवारें खींच दी है। यहां पर भी एक समुदाय को आरक्षण दिए जाने का जमकर विरोध हो रहा है।
और इसके लिए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सीघे तौर बीजेपी को जिम्म्दार मान रही हैं। ममता का आरोप है कि भाजपा जानबूझकर हिंसा भडका रही है और पशिचम बंगाल में मणिपुर जैसी स्थिति बनाने की कोशिश कर रही है जिससे यहां पर हिंसा की दुहाई देकर राषट्रपति शासन लागू कर सके।
समझना यही है कि पशिचम बंगाल में हिंसक घटनाओं के पीछे क्या सचमुच आरक्षण एक वजह है या इसके पीछे कोई राजनीति षडयंत्र छुपा हुआ है।
आपको बता दें कि पश्चिम बंगाल में भी संथाल और अन्य आदिवासी समुदाय, कुर्मी समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने का विरोध कर रहे हैं।संथाल और अन्य आदिवासियों का कहना है कि कुर्मी समुदाय शिक्षा और समृद्धि के मामले में उनसे बहुत आगे हैं और इसके अलावा उनके पास आदिवासी कहलाने वाले ऐतिहासिक सच्चाई भी नहीं हैं।
राज्य मंत्री के वाहन पर पथराव हुआ
हाल ही में जब आदिवासी इलाके में आए एक राज्य मंत्री के वाहन पर पथराव हुआ तो ममता दीदी का गुस्सा और भड़क गया और उन्होंने सीधे इसका आरोप भाजपा के कार्यकर्ताओं पर लगा दिया। दीदी का कहना है कि कुर्मि समुदाय की आड़ में बीजेपी पश्चिम बंगाल में जातीय संघर्ष जैसी स्थिति पैदा करने की कोशिश कर रही है ताकि सेना बुलाने का बहाना मिल सके।
दरअसल, दीदी को आशंका है कि अगर राज्य में दंगे जैसे हालात बने तो केंद्र अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले राष्ट्रपति शासन लगा देगा. उस स्थिति में ममता बनर्जी के लिए राज्य की अधिकांश लोकसभा सीटें जीतना मुश्किल होगा। पश्चिम बंगाल राज्य में 42 लोकसभा सीटें हैं और त्रिशंकु संसद होने की स्थिति में यह संख्या बहुत मायने रखती है।
इतिहास में पश्चिम बंगाल को एक शांतिपूर्ण राज्य के रूप में जाना जाता है। राज्य में साम्प्रदायिक दंगों की केवल दो ही बड़ी घटनाएं हुईं। यहां बहुसंख्यक हिंदुओं और अल्पसंख्यक मुसलमानों के बीच पहला सांप्रदायिक दंगा 1946 में हुआ थामहात्मा गांधी के धरने पर बैठने के बाद ही दंगों को रोका जा सका था
पश्चिम बंगाल में साम्प्रदायिक दंगों की दूसरी घटना
पश्चिम बंगाल में साम्प्रदायिक दंगों की दूसरी घटना 1964 में हुई।तब से लेकर अब तक जातीय संघर्षों की कुछ छोटी घटनाओं को छोड़कर राज्य में कोई बड़ा दंगा नहीं हुआ।
लेकिन लगता है कि वोटों की राजनीति पशिचम बंगाल को एक बार फिर अशांत करने पर तुली है।सबसे अहम बात है जिसपर ध्यान देना है और जिसको रोकना है कि बंगाल में वोटों के लिए हिंदू मुसलमान के बीच की दीवारें मजबूत करने में सरकार ही अहम भूमिका अदा कर रही है।
कहा जाता है कि बंगाल में ममता के सिर पर जीत का सेहरा वहां बड़ी संख्या में बसी मुसिलम जनसंख्या पहनाती है और ममता बनर्जी इस बात को लेकर काफी सजग रहती हैं कि उनके ये वोट इधर-उधर ना चले जाएं और इन वोटों को बचाने के लिए ममता कुछ भी कर सकती हैं , कुछ भी करवा सकती हैं। पर समय रहते इसको खत्म करना होगा और इसके कारण बंगाल में हमेशा होने वाली लड़ाई को खत्म करना ही होगा।
समय रहते पशिचम बंगाल में भड़की हिंसा की छोटी सी चिंगारी को शांत करना होगा। क्योकि कब कैसे ये चिंगारी एक आग का रूप ले और कब बंगाल भी मणिपुर का रूप ले ले किसी को नहीं पता। केंद्र और राज्य सरकार इस बारे में अपनी आंखें खोलें। वैसे बंगाल को लेकर एक बड़ी बात यह भी चर्चा में आ रही है कि क्या क्या दीदी से बंगालनहीं संभल पा रहा है और क्या दीदी बंगाल में भाजपा के पसरते पैरों से परेशान ममता बनर्जी
भारतीय राजनीति में एक बात की हमेशा चर्चा रहती है
भारतीय राजनीति में एक बात की हमेशा चर्चा रहती है कि पश्चिम बंगाल में राजनीतिक धारा , बाकी राज्यों से अलग बहती है और यह सच भी है।दो साल पहले जब भाजपा की देश भर में तूती बोल रही थी और उसका विजय रथ रोके नहीं रुक रहा था तब बंगाल ने 2021 विधान सभा चुनावों में भाजपा का रथ ना केवल रोका बलिक उसे पलट भी दिया।
आज जब लगभग समूचा विपक्ष प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ लामबंद है तभी पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख और मुख्य मंत्री ममता बनर्जी के खिलाफ कांग्रेस और वाम दलों ने भाजपा से हाथ मिला लिया है।
यह आरोप किसी और ने नहीं बल्कि ममता ने खुद लगाया है। यह कहते हुए कि बंगाल में कांग्रेस और वाम मोर्चे ने उनकी सरकार के खिलाफ भाजपा के साथ एक गुप्त गठबंधन किया है।वे कहती हैं कि उनको हराने के लिए राम और वाम ने आपस में हाथ मिला लिया है ।
इसके बाद चर्चाओं का बाजार ये भी गर्म है कि ममता चाहे किसी पर भी भरोसा कर लें पर लेफ्ट पर नहीं कर सकती क्योंकि वो खुद कहती हैं कि उन्होनें पूरे 35 साल लेफ्ट के खिलाफ लडाई लड़कर सत्ता हासिल की है।
ममता एनडीए का हिस्सा रह चुकी हैं
कहने वाले तो ये भी कहते हैं कि ममता के सामने यदि बीजेपी और लेफ्ट किसी एक को चुनने का आप्शन हो तो ममता एक बार फिर भी बीजेपी का दामन थाम लेंगी क्योंकि अटल बिहारी के राज में ममता एनडीए का हिस्सा रह चुकी हैं पर लेफ्ट को तो वो किसी तरह बर्दाश नहीं करेंगी । इसलिए जब भी चुनाव होते हैं उम्मीदवार चाहे टीएमसी के हों या लेफ्ट के एक दूसरे से लडने यहां तक की एक दूसरे को मारने के लिए भी पीछे नहीं रहते हैं।
दरअसल, बंगाल में पंचायती चुनावों के दौरान हुई व्यापक हिंसा जिसमें कम से कम 50 लोगों की जानें गईं। इस हिंसा के बारे में चर्चा जरूरी है क्योंकि पिछले काफी सालों से ममता राज में ये देखा जा रहा है कि बंगाल का छोटे से छोटा और लोकसभा का चुनाव बिना हिंसा के खत्म नहीं होता है और हिंसा भी ऐसी होती है कि बहुतों की जाने चली जाती हैं, नेशनल क्राइम रिकार्डस ब्यूरो के रिकार्ड की बात करें तो पता चलता है कि दूसरे राज्यों के मुकाबले बंगाल में हर चुनाव में कई लोग मारे जाते हैं।
विपक्षी दलों का आरोप है कि ये सब ममता सरकार की नाको तले होता है इसलिए सभी दल यही आरोप लगाते आए हैं कि ममता दीदी जानबूझकर चुनाव जीतने के लिए अपराध का सहारा लेती है। बंगाल में सक्रिय तीन विपक्षी दल भाजपा, कांगेरेस, वामदल ने ममता बनर्जा के खिलाफ एक सी प्रतिक्रिया जाहिर की थी।
पंचायत चुनावों के नतीजों में तृणमूल कांग्रेस की भारी जीत
राजनीतिक गलियारों में इन प्रतिक्रियाओं का सीधा मतलब तीनों के बीच एक गुपचुप समझौते के रूप में लिया गया।बंगाल में भारी हिंसा के बीच खत्म हुए पंचायत चुनावों के नतीजों में तृणमूल कांग्रेस भारी जीत हासिल की थी।लेकिन इन चुनाव परिणामों ने यह भी संकेत दिए हैं की अपलसंख्यको के एक तबके ने कांग्रेस, वाम मोर्चा और इंडियन सेक्युलर फ्रंट का समर्थन किया था। अल्पसंख्यकों के इस तबके ने राज्य की कई सीटों पर निर्णायक भूमिका अदा की थी।
इसका नुकसान ममता को ही हुआ और अल्पसंख्यकों के बीच अपने कमज़ोर होते जनाधार को रोकने के लिए ममता कांग्रेस को अपने साथ चाहती है ना कि वाम मोर्चा के साथ।विपक्षी एकता की राह में ममता का रोड़ा बनना तय है क्योंकि ममता चाहती हैं कि बंगाल में कांग्रेस और वाम मोर्चा उसके रहमोकरम पर रहें।
ममता का यह प्रस्ताव मंजूर नहीं है
इसलिए कांग्रेस और वाम दलों को ममता का यह प्रस्ताव मंजूर नहीं है कि जहां जो पार्टी मजबूत स्थिति में है वहां सीट बंटवारा उसी दल के हिसाब से होना चाहिए।बंगाल में चुनाव और उसमें हिंसा का होना, लगता है कि इन दोनों का चोली दामन का साथ हो चुका है।ताजा उदहारण पश्चिम बंगाल में पंचायती चुनावों से पहले बेलगाम होती हिंसक धटनाओं को देखकर लगाया जा सकता है। जैसे जैसे चुनाव प्रचार तेज़ी पकड़ रहा है वैसे ही हिंसा भी जोर पकड़ती जा रही है।
इस हिंसा में अभी तक राज्य के अलग अलग हिस्सों में कई लोग मारे जा चुके हैं, सेंकड़ों घायल हो चुके हैं, करोड़ों रुपए की सम्पत्ति का नुकसान पहुंचा है। हिंसा, लूटपाट और हत्या पश्चिम बंगाल की राजनीति के लिए कोई नई बात नहीं है। ऐसा यहां सदियों से चलता रहा है। इसका कारण इस प्रदेश के इतिहास में छिपा है।
पश्चिम बंगाल भारत का अकेला राज्य है जहां एक क्षेत्र में फहरा रहे पार्टी विशेष के झंडों से पता लग जाता है कि वहां किसी अन्य पार्टी का प्रवेश वर्जित है। जबरदस्ती प्रवेश करने का मतलब हिंसा होना ।
बंगाल में हिसा का ये आलम है
इस समय बंगाल में हिसा का ये आलम है कि हाई कोर्ट को दखल देना पड़ गया। लेकिन शांतिपूर्ण चुनाव कराने के लिए पर्याप्त सुरक्षा उपलबध कराए जाने के आदेश के बावजूद हिंसा थम नहीं रही है।भाजपा, कांग्रेस और सभी विपक्षी दलों ने तृणमूल कांग्रेस पर विपक्षी दलों के उम्मीदवारों को नामांकन पत्र दाखिल नहीं करने देने और हिंसा फैलाने का आरोप लगाया है।
वैसे आपको बता दें कि 2018 में हुए पंचायत चुनावों में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस ने 95 प्रतिशत पंचायतों के चुनाव जीते थे जिनमें से 34 प्रतिशत सीटें तो उसने निर्विरोध जीत ली थी , मतलब उसके उन्मीदवार के सामने कोई प्रत्याशी खडा ही नहीं हुआ था।
ममता बनर्जी का एक मकसद छुपा
विशेषक्ष का मानना है कि बंगाल में चल रही हिंसा के पीछे ममता बनर्जी का एक मकसद छुपा है। पिछली बार पंचायती चुनावों जीतने के बाद हुए लोक सभा चुनावों में भाजपा ने पश्चिम बंगाल में 18 सीटें जीतकर ममता बनर्जी को एक करारा झटका दिया था। और इस बार दीदी पंचायती चुनाव भारी अंतर से जीतना चाहती हैं जिससे वह आगामी लोक सभा चुनाव से पहले यह संदेश दे सके कि राज्य में हवा उसके पक्ष में चल रही है।
ममता के लिए भाजपा परेशानी का एक बड़ा सबब बनती जा रही है क्योंकि बंगाल में भाजपा की सथिति मजबूत होती जा रही है और अब बंगाल का मुकाबला बीजेपी और दीदी की पार्टी के बीच ही माना जाता है। वैसे माना जाता है कि भाजपा को बंगाल में मज़बूत स्थिति में लाने में माकपा का बड़ा योगदान है क्योंकि वामपंथियों खासतौर पर माकपा का मानना है कि ममता की अपेक्षा भाजपा को हराना काफी आसान है अगले महीने पशिचन बंगाल में 928 जिला परिषदों की 74000 सीटों के लिए तीन स्तरीय मतदान होने हैं।
मुख्यमंत्री बनर्जी ने कुछ समय पहले यह वायदा किया था
वैसे मुख्यमंत्री बनर्जी ने कुछ समय पहले यह वायदा किया था कि वे पंचायती चुनावों को शांतिपूर्ण तरीके से करवाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। लेकिन फिर भी उनकी नाक के नीचे हिंसा जारी है और वे कुछ नहीं कर पा रही हैं।लेकिन दूसरी तरफ हिमाचल और कर्टाक की जीत से जोश से भरी कांग्रेस अब तेलांगना और पशिचम बंगाल में अपनी जीत के लिए नई रणनीति बनानें में जु़ट गई है.
लेकिन जानकार मानते हैं कि कांग्रेस की ये मुहिम विपक्षी एकता के अभियान में बाधा बन सकती है।जिस तरह से पशिचम बंगाल में कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौघऱी लगातार ममता बनर्जी पर चोट कर रहे हैं , ऐसे में क्या ममता बनर्जी २३ जून को पटना में होने वाली विपक्षी दल की बैठक में कांग्रेस नेताओं के साथ सहज हो पाएंगी।
ये एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब आने वाला समय ही बताएगा।आज जब लगभग समूचा विपक्ष प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ लामबंद है तभी पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख और मुख्य मंत्री ममता बनर्जी के खिलाफ कांग्रेस और वाम दलों ने भाजपा से हाथ मिला लिया है।यह आरोप किसी और ने नहीं बल्कि ममता ने खुद लगाया है। यह कहते हुए कि बंगाल में कांग्रेस और वाम मोर्चे ने उनकी सरकार के खिलाफ भाजपा के साथ एक गुप्त गठबंधन किया है.
बंगाल में पंचायती चुनावों के दौरान हुई व्यापक हिंसा
दरअसल, बंगाल में पंचायती चुनावों के दौरान हुई व्यापक हिंसा जिसमें कम से कम 50 लोगों की जानें गईं, उसके बाद वहां के तीनों विपक्षी दलों भाजपा, कांगेरेस, वामदल ने ममता बनर्जा के खिलाफ एक सी प्रतिक्रिया जाहिर की थी। राजनीतिक गलियारों में इन प्रतिक्रियाओं का सीधा मतलब तीनों के बीच एक गुपचुप समझौते के रूप में लिया गया।
पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इसलिए हैरान -परेशान हैं कि कहीं कांग्रेस ने कर्नाटक की तरह मुसलिस वोटों को इकटटा करने और उसे जीत में परिवरितत करने का फार्मिला बंगाल चुनावों में दोहरा दिया तो उनके सिर से मुखयमंत्री का ताज जा सकता हैं। सबको पता है कि ममता को जीताने में मुसलिम समुदाय का बड़ा हाथ रहता है।
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