[Dr R P  Parasher]

Diabetes से बचाव – Ayurveda रहे अग्नि पर ध्यान दें

डायबिटीज से बचाव और उपचार में आयुर्वेद में 13 प्रकार की अग्निया मानी गई है । आकाश, वायु ,अग्नि, जल और पृथ्वी। साथ में  सात धातु अग्निया हैं आयुर्वेद में,  रस, रक्त, मांस, मेद,अस्थि, मज्जा ,शुक्र और जो मुख्य अग्नि है वह है हमारी जठराग्नि यानी जो हमारे पेट में अग्नि जल रही है लगातार जो भोजन को पचाती है ।अगर आधुनिक चिकित्सा की दृष्टि से देखे तो यह अग्नि वो  है जो  एंजाइम्स और केमिकल्स का रिसाव है ।  जो कि हमारे खाने के पचाने में बहुत ही महत्वपूर्ण रोल अदा करती है । अगर हम आयुर्वेदिक दृष्टि से देखें तो यह अग्नि जठ अग्नि यानी पेट में जलने वाली अग्नि ये जितनी भी जीवन शैली से संबंधित बीमारियां हैं , उनके होने में मुख्य भूमिक निभाती है चाहे व डायबिटीज है चाहे व हाइपरलिपिडेमिया है चाहे व फैटी लीवर है अगर हमारी अग्नि प्रबल नहीं है तो हमें इन बीमारियों के होने की पूरी पूरी आशंका रहती है।

अग्नि  Balance में नहीं मतलब खाना रह रहा अधपचा

तो अपनी अग्नि को प्रबल बनाए रखने के लिए क्या करना चाहिए। क्योंकि अगर हमारी अगनी प्रबल नहीं होगी तो हमारा भोजन पचेगा नहीं। जब भोजन पचेगा नहीं तो वह जो अधपचा भोजन है वह खून में जाकर मिलेगा आंतो में  सड़ता रहेगा और जब वह खून में जाकर मिलेगा तो वह टॉक्सिन के साथ साथ अदपची अवस्था में होने के कारण ग्लूकोज टोलरेंस को बढ़ाएगा,,कोलेस्ट्रॉल को बढ़ाएगा ट्राइग्लिसराइड को बढ़ाएगा और फैटी लीवर के होने में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा । तो यानी सिर्फ अग्नि  को सामान्य रखकर हम बहुत सारे रोगों से बच सकते हैं ।

अग्नि के Balance को कौन Imbalance करे

अब इस अग्नि को हम प्रबल या शांत कैसे रखें अगनि विषम नहीं होनी चाहिए या बहुत तीक्षण भी ना हो और मंद भी ना हो । मुख्य तौर पर मंद होती है तो अग्नि को मंद करने में आहार का मुख्य रूप से रोल रहता है आजकल हम जंक फूड फास्ट फूड डिब्बा बंद फूड प्रोसेस फूड खूब खाते हैं इनमें चीनी भी ज्यादा होती है इनमें नमक भी ज्यादा होता है और तेल या घी का पता ही नहीं किस क्वालिटी का और कितनी मात्रा में होता है ।

अग्नि को कैसे Balance रखें

अगर हम संतुलित भोजन करें जिसमें फैट की मात्रा सही अमाउंट में हो तो हम अपनी अग्नि को सामान्य  अवस्था  में रख सकते हैं इसके लिए हम ताजा भोजन ले घर का बना हुआ भोजन लें जिसमें फैट की मात्रा कम से कम हो और वो भी सरसों का तेल और गाय का घी यह दो सर्वोत्तम फैट मानेगा आयुर्वेद में इसके बाद कितना खाए कब खाए।  आयुर्वेद के अनुसार जब हमें भूख लगे हो तब खानाचाहिए और कितना खाना चाहिए उसके लिए आयुर्वेद ने हमें एक मार्गदर्शन सिद्धांत दिया है कि मुख्य तौर पर अपने पेट के चार भाग मान ले उसमें दो भाग सॉलिड फूड से भरने हैं एक भाग लिक्विड यानी पानी-सूप से भरना है और एक भाग को हम वायु के संचरण के लिए छोड़ दे , पर होता क्या चारों के चारों भाग जो है पेट के व सॉलिड फूड से भरने की कोशिश करते हैं और नतीजा यह होता है कि हमारी अग्नि मंद हो जाती है खाना अच्छी तरह पच नहीं पाता है।

खाने में छह रसों का प्रयोग करें

इन उपायों के अलावा हम यह भी देखें के जो छह रस माने गए आयुर्वेद में उन छह के छह रस का भोजन हमारी थाली में हों। आमतौर पर हम मधुर रस लेते हैं उसमें लवण रस यानी नमक भी खूब होता है और खट्टा होता है लेकिन हमारी थाली में छह रस इन तीन के मधुर अमल लवण के अलावा कटु तिखे रस  तीनों रस भी होने चाहिए यह जब छह रस होंगे तब हमारी अग्नि संतुलित रहेगी । तब हमारा भोजन पचेगा तब हमे बीमारियों से मुक्ति मिलेगी तब हम अपने आपको बीमारियों से बचा पाएंगे।  घिया, तोरी, टिंडा, पालक, सरस,  यह सारे के सारे जो है कटू तिखे रस की श्रेणी में आते हैं तो इनका प्रयोग हमें जरूर करना चाहिए पुदीना है तुलसी है धनिया है यह भी इसी श्रेणी में आते हैं तो यह भी हमारे भोजन में साथ रहने चाहिए और जितने मसाले हैं काली मिर्च है लौंग है बड़ी इलायची है दालचीनी है इनका भी हमारे भोजन उचित मात्रा में प्रयोग अधिक मात्रा में नहीं होना चाहिए भी तो हमारी अग्नि शांत  रहेगी और हमारा भोजन पचेगा, हमें बीमारिया नहीं होंगी ।

पेट को कब्ज से बचा कर रखें

इसके लिए हमें यह भी करना है कि हमारा पेट जो है वह साफ रहे,  कब्ज की शिकायत ना हो अगर पेट साफ नहीं हुआ हमें कब्ज होगी तो हमारी अग्नि गड़बड़ होगीहोगी आजकल हमारे पास मरीज आते हैं आमतौर पर 60 से 70 पर मरीजों के पेट खराब है किसी न किसी रूप में उनको कब्ज की शिकायत रहती है तो कब्ज ना होने दे मुख्य बात यह है और इसके लिए हमें क्या करना है कि रात को खाने के आधे घंटे बाद हम लगभग 250 एमएल से 400 एमएल उबलता हुआ पनी पिए घूट घूट करके रात के खाने के आधे घंटे बाद लगभग हम 15 20 मिनट घूम के आए सुबह उठके भी हम ताजा या गुनगुना पानी नींबू मिलाकर पिए अपने भोजन में हम मधुर लवण अमल रसों के साथ तिखे, कटू रस का उचित प्रयोग करें और अगर हमें कब्ज की शिकायत भी है तो इसके लिए तिरला चूर्ण ले आवले का चूर्ण ले हड़ का चूर्ण ले, पंचसकार चूर्ण ले लेकिन कब्ज ना होने दे अगर हम इन छोटी छोटी बातों का ध्यान रखेंगे तो हमारी अग्नि प्रबल रहेगी हमारी अग्नि सम अवस्था में रहेगी वह हमारे दोषों को घटाए या बढ़ाएगी नहीं और हमारे शरीर में रोग पैदा नहीं होने देगी अपने पेट का ध्यान रखें आपका पेट बिल्कुल साफ रहना चाहिए कब्ज  नहीं रहनी चाहिए। जिससे  लाइफ स्टाइल डिजीज से बचे रह सके ।

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