बढ़ता screen time कैसे बिगाड़ रहा body का balance

मोबाइल-कम्पयूटर शरीर को दे रहा है चक्कर की बीमारी

मोबाइल-कम्पयूटर शरीर को दे रहा है चक्कर की बीमारी

अभी तक मोबाइल फोन के लगातार इस्तेमाल और स्क्रीन टाइम का समय बढने के कारण कईं मानसिक और शारीरिक बीमारियों के होने के बारे में बहुत सी रिसर्च सामने आ चुकी हैं , पर पिछले कईं सालों से डाक्टरों के पास ऐसे मामले पहुंच रहे हैं जहां स्क्रीन टाइम का बढना शरीर का बैलेंस बिगाड़ने का बड़ा कारण बन रहा हैं और चिंता की बात ये हैं कि युवाओं को समझ में ही नहीं आता कि अचानक उन्हें चक्कर आने क्यों आने लगे हैं, चलते समय शरीर का बैलेंस कईं बार गडबडा क्यों जाता है, क्यों पांव कईं बार उल्टे-सीधे पड़ रहे हैं. जब तक युवाओं को इसकी गंभीरता का पता चलता है तब तक बीमारी इतनी बढ़ जाती है जो महीनों के इलाज और पूरे आराम के बाद ही ठीक हो पाती है।

चलने-बैठने में आते हैं चक्कर

डाक्टरों के मुताबिक देर तक कम्पयूटर पर काम करने, एक ही पोज में बैठने से कईं और समस्याओं के साथ कान में मौजूद शरीर को बैलेंस करने वाले छोटे-छोटे माइक्रोनस का तालमेल बिगड़ जाता है, जिससे तेजी से उटने -बैठने या चलने में चक्कर आने शुरू हो जाते हैं और यदि इसे गंभीरता से नहीं लिया जाता तो ये चक्कर इतने बढ़ जाते हैं कि बैठने और लेटने तक में सिर घूमता लगता है। इसे वैरटिगो बीमारी के नाम से जाना जाता है।

चक्कर आने के कई कारण पर कान के माइक्रोंस बिगड़ना बड़ा कारण

चक्कर आने के कई कारण पर कान के माइक्रोंस बिगड़ना बड़ा कारण

आपको बता दें चक्कर आने के कईं कारण होते हैं या तो ज्यादा कमजोरी है, या दिमाग में किसी समस्या के कारण या स्पोंडलाइटिस की समस्या के कारण और या फिर कान के माइक्रोंस बिगडने से। लेकिन अकसर यही देखा जाता है ज्यादातर लोग वैरटिगों क बारे में अनजान होते हैं और चक्कर आने की वजह जानने के लिए दिमाग की एमआरआई करवाने से लेकर तमाम दवाएं अजमाते हैं लेकिन इसका इलाज आपको ईएनटी डाक्टर के पास मिलता है । जो कुछ दवाओं और एक्ससाइज की मदद, से आपको ठीक करता है ।

छोटे बच्चों की सोचने-समझने की क्षमता कम कर रहा

वैसे मोबाइल और कम्पयूटर का बढ़ता इस्तेमाल युवाओं को जहां वैरटिगो, स्पोंडलाइटिस या कई बार दिमाग की बीमारी का शिकार बना रहा है वहीं बच्चों में देखा जा रहा और कई रिसर्च बता रही हैं कि ये बच्चों के सोचने, समझने, की क्षमता कम कर रहा है , मोबाइल का इस्तेमाल इनहे स्लो लरनर भी बना रहा है।जी हां दि स्पाइल लैब स्टडी के एक रिसर्च से पता चला है कि एक -दो साल के बच्चों के हाथ में लगातार मोबाइल थमाने से उनके दिमाग के विकास पर असर पड़ रहा है।

सावधान मोबाइल को बच्चों का खिलौना ना बनाएं

सावधान मोबाइल को बच्चों का खिलौना ना बनाएं

इसलिए सावधान हो जाइए अगर आप अपने बच्चे को चुप कराने के लिए या उसे बिजी रखने के लिए उसके हाथ में मोबाइल पकड़ा रही हैं तो ऐसा करके आप अपने मासूस की जिंदगी कितने बडे खतरे में डाल रहे हैं। उसके भविष्य को बीमारियों के अंधेरे में डाल रहे हैं।

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रिसर्च मे चौकाने वाला खुलासा

रिसर्च में यह भी बताया गया है कि स्मार्ट फोन रखने की उम्र लगातार घटती जा रही है । अब छह साल के बच्चें के पास भी स्मार्ट फोन आ गया है और वो उसका जमकर इस्तेमाल कर रहा है. और उन्हे भी मोबाइल से उतना ही मानसिक नुकसान पहुंच रहा है जितना की एक एडल्ट को पहुंचता है।

कैसे बढ़ा रहा आत्महत्या के मामले

रिसर्च में ये पाया गाया कि जो बच्चे बहुत छोटी उम्र में मोबाइल फोन के एडिक्टिड हो रहे हैं , किशोर और युवा उम्र में पहुचते -पहुतचे ऐसे बच्चो में डिप्रेशन , आत्महतया करने का प्रयास चिड़चिडापन , ज्यादा गुस्सा करना के मामले ज्यादा पाए जा रहे हैं। पाया जा रहा हैं मोबाइल फोन की लत की वजह से ये बच्चे —बड़े होकर वास्तविक दुनिया से दूर कालपनिक दुनिया में ज्यादा जीते हैं। अपने में खोए रहते हैं । बहुत बार ऐसे बच्चों का दिमाग पढ़ाई में भी नहीं लगता। ये बच्चे रियल दुनिया के स्ट्रेस से बहुत जल्दी घबरा भी जाते हैं।

इंस्ट्राग्राम भी है मुसीबत

2021 में the wall street journal में छपे एक लेख में बताया गया कि फेस बुक की अपनी एक रिचर्स में पाया गया था कि जो किशोर लड़कियां उनके एप इंस्टाग्राम का ज्यादा इस्तेमाल कर रही हैं उनमें कई तरह की मानस्क बीमारियां तेजी से बढ़ रही हैं।

क्या कहते हैं डाक्टर

Psychologist गीतांजलि जो पिछले काफी सालों में बच्चों और किशोरों की परेशानियों को देख रही हैं , सुलझा रही है उनका मानना है कि बच्चों, किशोरों युवाओं में डिप्रेशन, एंसाइटी, अकेलपन की शिकायतें बीस-तीस गुना बढ़ गई है। सबसे खतरनाक है कि मोबाइल के चक्चर में बच्चे अपने अपने पैरेंटस ,दोस्तों रिशतेदारों से पूरी तरह कटते जा रहे हैं और जब उन्हें कोई समस्या आती है तो वो किसी को बता भी नहीं पाते क्योंकि दूरियां काफी बढ गई है। गीतांजलि कहती हैं कि पैरुट्स को अपने बच्चों को स्मार्ट फोन देने, उसके इस्तेमाल करने की एक सीमा तय करनी ही पडेगी इससे बच्चों को स्मार्ट की देन तमाम मानसिक बीमारियों को रोकने में मदद मिलेगी।

सावधान समय तय करना होगा

तो आज से सोच लीजिए, छोटा बच्चा रोए, फोन मांगे, फोन लेने के लिेए गुसासा करे तो उसे फोन मत दीजिए थोडी देर की नाराजगी, परेशानी बच्चे को कई मानसिक बीमारियों का मरीज बनने से बचा सकती है।वहीं दूसरी तरफ युवाओं को भी स्क्रीन टाइम के बढ़ते तमाम खतरों से अवगत और सावधान रहना होगा खासतौर पर नए जमाने की बीमारी चक्कर आना यानी वैरटिगो।

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