बिहार-महागठबंधन कई सारे नेताओं का अपना व्यक्तिगत अहम बड़ी मुशिकल
बिहार के चुनाव में अब ज्यादा दिन नहीं बचे हुए हैं। 6 और 11 नवंबर को वोटिंग होनी है। शुक्रवार नॉमिनेशन की पहली फर्स्ट फेज़ के नॉमिनेशन का आखिरी दिन है। मतलब 17 तारीख लेकिन महागठबंधन में अभी घमासान मचा हुआ है। मान लीजिए जिस तरह से अभी राहुल गांधी ने तेजस्वी यादव से बात करने की कोशिश की बात उसके उसके बावजूद क्या जो बिहार के चुनाव हैं वो उनमें महागठबंधन अपना मुकाबला चुनाव शुरू होने से पहले वोटिंग से पहले ही नहीं है। हार गई है। अब वो ऐसा क्यों हो रहा है इसको समझने की कोशिश करते हैं और उसके पीछे निश्चित तौर पर महागठबंधन जिम्मेदार है। महागठबंधन के कई सारे नेताओं का अपना व्यक्तिगत अहम ज्यादा जिम्मेदार है। महागठबंधन के चार प्रमुख घटक हैं। आरजेडी, , कांग्रेस, अह सीपीआईएमएल और विकासशील इंसान पार्टी। अब सबकी अपनी-अपनी सोच है। आप सबकी अपनी-अपनी मांग। लेकिन जिस तरह से जो सबसे बड़ा दल है इस घटक में राष्ट्र राष्ट्रीय जनता दल उसको अपने बाकी सारे पार्टनर्स को साथ लेकर के चलना चाहिए। लेकिन वही सबसे आगे जाकर के अपनी सीटें घोषित कर रहा कर दे रहा है और जो घटक दलों की डिमांड है उस घटक दलों की डिमांड को कायदे से समझने के लिए सोचने के लिए उस पर विचार करने के लिए नहीं तैयार है। जब चुनाव का समय था तो राहुल गांधी विदेश यात्रा पर थे। तो उसमें वहां कोई एक्सपेक्टेशन नहीं है। लेकिन इसको समझने की कोशिश करते हैं। जब चुनाव में चर्चा सीटों पर चर्चा के लिए रहा तेजस्वी यादव दिल्ली आने वाले थे। उनका कोर्ट वाला मामला भी था। तब उसके पहले ही लालू प्रसाद यादव ने अपनी पार्टी के टिकटार्थियों को सिंबल दे दिया। अब सिंबल दे दिया। और दूसरी तरफ जब यह बात पता लगी तो राहुल गांधी ने तेजस्वी से बात करने से मना कर दिया। उनसे बात नहीं की।
लालू यादव लगातार खेल बिगाड़ रहे हैं

एक बात अब ये जो काम है ये लालू प्रसाद यादव पहले से ही करते रहे हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव में जैसे उन्होंने पूर्णिया सीट पर अपना कैंडिडेट दावा कर दिया। बिना कांग्रेस को विश्वास में लिए और इस कारण से वहां पर अलायंस में थी कांग्रेस तो उसने पप्पू यादव को टिकट देना चाहती थी लेकिन फिर पप्पू यादव को इंडिपेंडेंट लड़ना पड़ा और वो इंडिपेंडेंट चुनाव जीत गए। एक कारण ये हुआ कि किस तरह से अपनी मनमर्जी लालू प्रसाद यादव करते रहे हैं। अब दूसरा ये कि जब वोटर अधिकार यात्रा खत्म हुआ और वोटर अधिकार यात्रा के दौरान जिस तरह से कांग्रेस के नेता ने चुनाव आयोग और उसमें बीजेपी की मिलीभगत के साथ चुनाव आयोग को घेरा था। उसके तुरंत बाद तेजस्वी यादव ने है वो बिहार अधिकार यात्रा शुरू किया। मतलब ये कि एक इशू जो जिसको जिस पर भीड़ जमा हो गई थी जिस पर लोग इकट्ठा हो रहे थे उस इशू को गठबंधन ने ही नकार दिया। तो ये एक दूसरा मसला हो गया। तीसरा मसला यह है कि आरजेडी ये चाहता है कि कांग्रेस जो है वो अपनी पुरानी जो पिछले चुनाव में जो 70 सीटों पर लड़ी थी उससे कम पर समझौता करें और 55 से ज्यादा सीटों पर तैयार नहीं है और ना ही वो सीपीएमएल के साथ कोई समझौता करने के लिए तैयार है। दूसरी तरफ जो वीआईपी विकासशील इंसान पार्टी के नेता है उन्होंने भी 20 सीट मांग दी है और उनको उप मुख्यमंत्री पद भी चाहिए। अब जो खबरें आ रही थी उसमें कांग्रेस की भी ये शर्त है कि वो 75 सीटों पर से कम 70 सीटों से कम पर चुनाव नहीं लड़ेगी। हालांकि आरजेडी 61 अब तक उनको वाप ऑफर कर चुकी है और लगभग इसी पर समझौता हो जाएगा और होगा जो भी वो हो सकता है आज शाम हो जाए कल सवेरे हो जाए तो आज इसलिए कि अब समय नहीं बचा है आज और कल में समझौता करना है। अब अगर यह इस पर समझौता हो जाता है। एक और कांग्रेस ने अब शर्त रखी है कि उनको उप मुख्यमंत्री का पद भी चाहिए। यह यह सारी शर्तें अब कांग्रेस की तरफ से आ रही हैं।
तेजस्वी यादव ने अपना नॉमिनेशन अकेले भरा सब साथी दल गायब

एक महत्वपूर्ण डेवलपमेंट है कि तेजस्वी यादव ने अपना नॉमिनेशन किया। उस नॉमिनेशन में ना तो कांग्रेस का कोई बड़ा नेता छोटा नेता कोई भी मौजूद था। सीपीआईएमएल का कोई नेता मौजूद नहीं था। ना वीआईपी का कोई नेता मतलब मुकेश साहनी मौजूद थे। तो जब जब चाहे स्वोषित नेता ही हो जो अपने आप को महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद का दावेदार घोषित कर रहा है उसके नॉमिनेशन में उसके बाकी घटक दलों का नाम नहीं है तो इसका मैसेजिंग खराब जाता है। इसका मैसेजिंग बाकी पार्टी के कार्यकर्ताओं के लिए खराब जाता है कि आप सिर्फ अपने इंटरेस्ट की बात सोच रहे हैं। आप अपना मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं। लेकिन आपको ना अपने साथियों की चिंता है ना साथियों के वोट बैंक की चिंता है और जब यह मैसेज जाएगा तो जो वोट ट्रांसफर वाला मसला है वो खताई में पड़ेगा। जो घटक जो चुनाव अलायंस के साथ लड़े जाते हैं। उसमें वोट ट्रांसफर की एक बड़ी भूमिका होती है। और जिस तरह का व्यवहार तेजस्वी यादव का है उसमें वोट ट्रांसफर की संभावनाएं बहुत मुश्किल होंगी। राहुल गांधी को अगर यह लग रहा है कि राहुल गांधी जो है तेजस्वी यादव को अगर वो लग रहा है कि मुस्लिम यादव वोटर्स के साथ जाकर के चुनाव जीत लेंगे तो ये थोड़ा एक मुश्किल इसलिए है कि यादव वोट जो है वो बहुत छिटका है। एक और महत्वपूर्ण बात है कि ये जो कुशवाहा वोटर जो एक लौकुश फार्मूला बिहार में चलता है। कुशवाहा वोटर्स को लेकर के और जो उनका कैंपेन था उसको बीजेपी ने भांप लिया था पहले से ही और बीजेपी और जेडीयू ने अपने लिस्ट में कुशवाहा और मौर्या जो मतलब वोटर्स हैं उनकी इतनी सीट इतनी लोगों को टिकट दे दिया कि पूरा का पूरा आरजेडी का गेम प्लान बिगड़ गया। जिस तरह की गाली गलौज अपर कास्ट के लिए आरजेडी के प्रवक्ता, आरजेडी के नेता और कांग्रेस के लोग करते हैं तो अपर कास्ट का वोट मिलना नहीं है। अगर ओबीसी में एमबीसी भी छट जाएगा तो उनके पास कुल मिलाकर के एमवाई बचता है और एमवाई में भी आर एम जो है वो आधा अब इनके साथ नहीं है। लेकिन जो यह सारे फैक्टर्स हैं इन सारे फैक्टर्स के को अगर आप विचार कीजिएगा और उसके बाद अगर समझौता होगा समझौता कोई ना कोई तो होगा ही जो भी जितनी भी सीट मिले 62 मिले 65 मिले उनको 18 सीट पर सीपीआई एमएल ने अपना घोषित कर दिया है तो हो सकता है कुछ फ्रेंडली फी फाइट्स भी हो तो चाहे जितनी सीट पर जो भी समझौता हो लेकिन इस समझौते से पहले जो मैसेज होता है वो मैसेज बहुत खराब गया कम कम से कम वोटर्स के बीच जनता के बीच क्या वो जो मैसेज खराब गया उसके बाद जो कुल मिलाकर के 20 दिन और बचे हैं नॉमिनेशन के बाद से छ और 11 को वोट पड़ जाने हैं। उस 20 दिन में क्या ऐसा कोई जादू तेजस्वी के पास या ऐसा कोई जादू राहुल के पास या वीआईपी के पास वीआईपी का तो यह भी भरोसा नहीं है कि अगर वो दो सीट अगले चुनाव दो सीट जीत लेती है और वो बाद में एनडीए के खेमे में नहीं चली जाएगी। पिछली बार वह एनडीए के साथ चुनाव लड़े थे और बाद में तेजस्वी के साथ चली गई थी। तो उनका कोई भरोसा नहीं है।
महागठबंधन में घमासान कितने वोटर्स ट्रांसफर होंगे

तो यह जो गठबंधन में घमासान है इस गठबंधन के घमासान का क्या परिणाम होगा चुनाव में कितने वोटर्स ट्रांसफर करा पाएंगे। वोटर्स क्या एकजुट इनके साथ नजर आएंगे या ये संशय हो गया है कि जो अभी से इतना लड़ाई कर रहा है। चुनाव के बाद कितनी लड़ाई करेगी? कितना होगा और क्या उसका फायदा होगा गवर्नेंस को लेकर के यह सब बहुत सारी चीजें हैं और असली बात यह है कि जो कैंपेन चला था एसआईआर को लेकर के अ उस उसने जो तेजस्वी यादव का कैंपेन था अनइंप्लॉयमेंट को लेकर के भ्रष्टाचार को लेकर के उस कैंपेन को ही खत्म कर दिया। तो जो बिहार में के चुनाव में बात होती है की इशू नहीं है। वो इशू ही गायब हो गया हैमहागठबंधन के लिए। तो महागठबंधन के लिए एक संकट नहीं है। संकट के बाद एक के बाद एक कई सारे संकट हैं जिनसे निपटना मुश्किल होगा। लेकिन चुनाव तो किसी न किसी तरह लड़ा ही जाएगा। क्या सूरते हाल बनता है? हमारी नजर रहेगी।
