मणिपुर जला, अशांत हुआ, सैकड़ों लोग घर से बेघर हो गए
मणिपुर जला, अशांत हुआ, सैकड़ों लोग घर से बेघर हो गए, और अभी भी वहां के लोग डरे हुए हैं सहमें हुए है कल क्या हो जाए। इतना सब ह्आ और हो रहा है लेकिन ना तो सरकार को चिंता थी और ना ही विपक्ष को , कारण आप सबको ही पता है हर कोई व्यस्त हैं कर्नाटक का ताज पहनने के लिए। राजनीती की ये कड़वी सच्चाई है।
लेकिन चुनाव खत्म है, उम्मीद है सरकार मणिपुर की खबर लेगी । खराब स्थति को संभालेगी और साथ ही हमारा विपक्ष भी मणिपुर के लोगों की सुध लेगा उन्का हालचाल पूछने वहां पहुंचेगा पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर काफी समय से असंतोष में है क्योंकि राज्य के दो समुदाय सांप्रदायिक झड़पों में लगे हुए हैं।
मणिपुर में हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही । संदिगध कुकी उग्रवागियों ने जिस तरह से बीएसएफ के एक जवान को मार गिया असफ राइफ्लस के जवानों को एक हमले में घायल कर दिया ।
गुस्साए ग्रामीणों ने काकचिंग में उस कैंप में आग लगा दी
इससे पहले रविवार को ही गुस्साए ग्रामीणों ने काकचिंग में उस कैंप में आग लगा दी थी जहां यूनाइटेड कुकी लिबरेशन फ्रंट के उग्रवादी सरकार के साथ शांति समझौते पर साइन करने के बाद ठहरे थे, यही नहीं ग्रामीणों ने कांग्रेस के एक विधायक के घर भी आग लगाई, ग्रमीण इनसे नाराज बताए जा रहे थे।
मणिपुर में हो रही लगातार हिंसा के बीच , यहां की महिलाओं के सामाजिक संगठन Meira Paibis ने मणिपुर से पैरा मिलिट्री फोर्स को हटाने की मांग बुलंद करके मणिपुर के संकट को और गहरा दिया है।
ये महिलाएं केंद्रीय बलों के ख़िलाफ़ विरोध-प्रदर्शन कर रही हैं———— Meira Paibis की मणिपुर से पैरा मिलिट्री हटाने की मांग उनके अभियान को रोकने की कोशिश कर रही हैं।इनका आरोप है कि सशस्त्र बल कुकी (Kukis) का पक्ष ले रहे हैं, इसलिए उन्हें राज्य से हटाया जाए।
इस घटनाक्रम से लग रहा है कि मणिपुर में अंदर ही अंदर घरेलू राजनीति ने भी सिर उठा लिया है। ये बात किसी से छुपी नहीं है कि मणिपुर में शांति बहाल करने में सशस्त्र बल का पूरा योगदान रहा है। समय समय पर यहां पर तैनात काफी जवानों और उनके परिवारों ने इसके लिए जान भी गंवाई है। मणिपुर शांति के लिए काफी जवान जान गंवा चुके हैं
2021 में 46 असम राइफल्स के कर्नल विप्लव त्रिपाठी, उनकी पत्नी और 6 साल के बेटे की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ऑफ मणिपुर और मणिपुर नागा पीपुल्स फ्रंट (MNPF) के उग्रवादियों ने हत्या कर दी थी।
इस हमले में पैरामिलिट्री फोर्स के चार और जवान मारे गए थे। 46 असम राइफल्स के कर्नल उनकी पत्नी- बेटे को मार दिया, फिलहाल मणिपुर में मौजूदा जातीय हिंसा को दबाने के लिए सेना और असम राइफल्स के 120-125 कॉलम तैनात किए गए हैं।
लेकिन इसको सहराने की बजाय महिला संगठन Meira Paibis की यह मांग कि मणिपुर से असम राइफल्स को हटा कर राज्य पुलिस के कमांडो को बागडोर सौपी जाए, उनके इरादों को संदेह के घेरे में खड़ा करती है।मणिपुर जल रहा है और हिंसा का विरोध करने के बजाय ये संगठन अपनी राजनीति करने पर उतर आया है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि असम राइफल्स या भारतीय अर्धसैनिक बलों के प्रति इनके अविश्वास और मणिपुर पुलिस कमांडो को प्राथमिकता दिया जाना एक चिंता का विषय है और इसकी गहराई ये जांच होनी चाहिए। वैसे मणिपुर में हो रही इन तमाम घटनाओं और इन हिंसक संघर्षों के पीछे राज्य का जटिल इतिहास है और कईं ऐसे कारण हैं जिनका हल निकाला ही नहीं गया।
पहला कारण है ——यहां के मेइती समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने का प्रस्ताव ।जिसका यहां के आदिवीसी कुकी विरोध कर रहे हैं। अल्पसंख्यक कुकी मेइती को एसटी का दर्जा अपने अस्तित्व के लिए खतरे के रूप में देखते हैं।मणिपुर के 60 में से 40 विधायक उस क्षेत्र से हैं जहां मेइती समुदाय का दबदबा है। राज्य में ये कुल आबादी का 5३ प्रतिशत है और घाटी क्षेत्र पर हावी है।
दूसरा कारण —-स्थानीय मेइती समुदाय के लोग कुकी आदीवासियों को को बाहरी, विदेशी और उग्रवादी मानते हैं और हमेशा लड़ाई चलती रहती है।
तीसरा कारण —- राज्य सरकार की ओर से नशा विरोधी अभियान को कुकीज़ के खिलाफ एक अभियान के रूप में देखा गया, जिससे कुकी आदीवासी खफा हैं
चौथा काऱण —सरकार की ओर से मणिपुर के चुराचंदपुर खौपुम इलाके को संरक्षित वन घोषित करने का आदेश और साथ ही राज्य सरकार द्वारा कूकी बहुल 30 गांवों को अवैध बंदोबस्त घोषित करने की घोषणा से कुकू आदीवीसिोयों में लगातर असंतोष है
पांचवा कारण — जातीय विभाजन को रोकने के लिए एक तंत्र स्थापित करने में केंद्र और राज्य सरकार दोनों ही विफल रही हैं। राजय में बढ़ती बेरोजगारी और गरीबी भी लोगों को हिंसक बना रही है
और दो समुदाय के बीच लंबे समय से चले आ रहे असंतोष , लड़ांई को आगजनी, दंगों में बदलने का का काम किया यानी आग में घी का काम किया मेतई समाज को एसटी schtule tribe का दर्जा देने के मणिपुर उच्च न्यायालय के आदेश ने।
इससे कुकी समुदाय एकदम भड़क गया साथ ही मेतई समुदाय ने अपना दबदबा बनाए रखने के लिए आग में घी डालने का पूरा काम किया और जिसके चलते मणिपुर झुसल गया।इसी को देखते हुए और लगातार बिगडते हालात की समीक्षा लेने के लिए गृह मंत्री अमित शाह तीन दिन के मणिपुर जा रहे हैं।
लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि हिंसा के शुरूआती दिनों में अगर अमित शाह मणिपुर चले जाते तो बात इतनी नहीं बिगड़ती । मणिपुर में मेइती और कुकी समुदाय के बीच भड़की हिंसा को ना तो राज्य सरकार ने गंभीरता से लिया और न ही केंद्र सरकार ने इस तरफ नजर डाली।
अब खुद अमित शाह यहां जा रहे हैं लेकिन सवाल यही है कि कैसे बीजेपी के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह, मणिपुर के मैतेई समुदाय जो यहां की आबादी का 53 प्रतिशत हिस्सा है और ४० फीसदी कुकी जनजाति के बीच उपजी नफरत की दीवार को खत्म करेंगे।
कुकी समुदाय का आरोप है कि मितेई लगातार झूठा प्रचार कर रहें कि उन्हें अनुसूचित जनजाति आरक्षण सूची से बाहर रखा गया है, जबकि 1950 में जब केंद्र सरकार ने सभी राज्यों से आदिवासी समुदायों की सूची मांगी थी, तो मणिपुर के मेइती समुदाय ने खुद को इस सूची से बाहर रखा था। अब वे साठ साल बाद अनुसूचित जनजाति का दर्जा मांग रहे हैं और उनके इरादे ठीक नहीं हैं।
ऐसे हालात में कुकी समुदाय अमित शाह के सामने सुलह के लिए अपनी अलग कुकीलैंड बनाने की मांग जरूर रखेगा। केंद्र सरकार के लिए मणिपुर की समस्या निपटाना आसान नहीं होगा। कुकीलैंड की मांग के चलते नार्थ इस्ट में छोटे छोटे समुदाय कि अलग राज्य बनाने की मांग भी जोर पकड़ने लगी है।
इतिहास में भी कईं राज्यों के ऐसे विभाजन हो चुके हैं
आपको बता दें कि इतिहास में भी कईं राज्यों के ऐसे विभाजन हो चुके हैं और ज्यादातर विभाजन लोगों के बीच की दूरियां ही बढ़ाते है। अतीत में चलें तो वर्ष १९७१ में पंजाब से कुछ हिस्सों को निकालकर हिमाचल प्रदेश पुर्ण राज्य बनाया गया और फिर हरियाणा राज्य पंजाब से ही बनाया गया। ।
इसी तरह पूर्वोत्तर क्षेत्र के ६ राज्य असम से निकलकर १९७२ में आस्तिव में आए। ये हैं मेघालय , त्रिपुरा, नागालैंड, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेस और असम वर्ष २००२ में सिक्कम को भी पूर्वोतर में शामिल किया गया और ये बन गई सात बहनें।
इसी तरह 2000 में कईं बड़ें आंदोलन के बाद बिहार से झारखंड अलग हुआ, मधयप्रदेश से छत्तीसगढ़, और यूपी में उत्तराखंड को अलग किया गया। इसके बाद तेलांगना की मांग ने इतना जोर पकड़ा कि आंधप्रदेश से उसे वर्ष २०१२ में अलग करना ही पड़ा ।
जाहिर है केंद्र के अलावा राज्य सरकार भी मणिपुर का विभाजन नहीं चाहती है। दोनों की यही कोशिश है और रहेगी कि मैतेई और कुकी समुदाय से बातचीत के जरिए बीच का रास्ता निकाला जाए।
वैसे मणिपुर को भी अमित शाह का इंतजार था, इंतजार था की वो यहां की हिंसा को खत्म करवाएं। साथ ही गृह मंत्री के इस दौरे से लोगों में उम्मीद है कि वह हिंसा में मारे गए लोगों के लिए मुआवजे की धोषणा करेंगे।देखना यही है कि मणिपुर के मामले को शांतिपूरवक सुलझाने में बीजेपी के चाणक्य की रणनीति काम आएगी या नहीं।
जबअमित शाह शांति बहाल करने मणिपुर पहुंचे तो जाहिर था कि तमाम पक्षों से बातचीत के बाद अंत में किसी ना किसी पर गाज तो गिरेगी ही । गाज गिरी यहां के डीजीपी पी डोंगल। डोंगल को हटाकर आईपीएस राजीव सिंह को नियुक्त कर दिया गया।
ग़हमंत्री ने बड़ी चतुराई से मणिपुर के मसले को सुलझाने की कोशिश की
वैसे ग़हमंत्री ने बड़ी चतुराई से मणिपुर के मसले को सुलझाने की कोशिश की है , एक तरफ पुलिस अधिकारी को बदल कर जनता के बीच में ये संदेश दिया कि सरकार हिंसा रोकने में बरती गई किसी की लापरवाही को बर्दाश नहीं करेगी , वहीं दूसरी तरफ
गुस्साए लोगों के जखमों पर महरम लगाने के लिेए हाथों -हाथ कुछ घोषणाएं भी कर डाली । जैसे कि जांच के लिए न्यायिक आयोग बनाने की घोषणा, हिंसा में मारे गए लोगों के परिवारों को १० लाख रूपए देना, ३० हजार टन चावल का राहत पैकेज और साथ ही कांपीटेशन में बैठने वाले स्टडेंस के लिए आन लाइन टेस्ट की व्यवस्था का पुखत् इंतजाम
, लेकिन सवाल यही खड़ा होता है कि यदि हिंसा के शुरूआती दिनों में अमित शाह मणिपुर चले जाते तो बात इतनी नहीं बिगड़ती । मणिपुर की हिंसा को ना तो राज्य सरकार ने गंभीरता से लिया और न ही केंद्र सरकार ने ।
हैरानी की बात तो ये है कि पूरे के पूरे विपक्ष ने इस दर्दनाक घटना को पूरी तरह से इंगोर किया और नतीजन जो कुछ हुआ सबके सामने है। सैकड़ों जाने चली गई, हजारों लोग बेघर हो गए, दो समदायों के बीच नफरत की दीवारें खड़ी हो गई।
लेकिन अब तो यही कहा जा सकता है देर आए दुरूस्त आए।वैसे आने वाले समय में ही पता लगेगा कि बीजेपी के चाणक्य अमित शाह ने मणिपुर को शांत करवाने के लिए जो निर्णय लिए, घोषणाएं कि उससे यह राज्य कब तक शांत रहेगा।
इसी बीच मिजोरम के इकलौते राज्य सभा सांसद k vanlalvena ने मणिपुर में राष्चपति शासन की मांग करके विपक्ष के उस दावे को और हवा दे दी है जिसमें विपक्ष खुलकर बोल रहा है कि मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह राज्य में कानून व्यवस्था को बनाए रखने में पूरी तरह से विफल साबित हुए हैं और उनहे हटाना चाहिएँ. k vanlalvena ने मणिपुर की हिंसा को रोकने के लिए राज्य में पूरी तरह से केंद्रीय सुरक्षा बलों की तैनाती की मांग की है।
सरकारी कार्यालय और बीजेपी के नेताओं को निशाना बनाया जा रहा है
वैसे जिस तरह से यहां सरकारी कार्यालय और बीजेपी के नेताओं को निशाना बनाया जा रहा है उससे लग रहा है कि लोगों में सरकार के खिलाफ काफी रोष है। मणिपुर पिछले ४०-४५ दिनों से सुलग रहा है और अब ये साफ दिखने लगा है कि मणिपुर का मुदा मात्र शांति कमिटी गठित करने या हिंसा के शिकार लोगों को मुआवजा देने भर से सुलझने वाला नहीं है।
यही नहीं अमित शाह के एक दौरे भर से मणिपुर में फैली अशांति , शांति में नहीं बदल सकती है। विशेषज्ञ मान रहे हैं कि मणिपुर की हिंसा का स्थायी हल ढूंढना ही होगा ।
मैतेई समुदाय और हिल्स ट्राइब्ल यानी कुकी समुदाय की मांगों , समस्याओं को सुलझाने के लिए अलग-अलग एडिमिस्टेशन की स्थापना अब जरूरी है। साथ ही इन दोनों के बीच शांति बहाल करने के लिए और केंद्रीय बलों की तैनाती पर जोर देना होगा।
यहां इस बात को भी समझना होगा और हल निकालना होगा कि मणिपुर में एक बड़ा वर्ग केंद्रीय बलों के खिलाफ क्यों है। जैसा कि यहां की महिलाओं के सामाजिक संगठन Meira Paibis की ओर से लगातार मणिपुर से पैरा मिलिट्री फोर्स को हटाने की मांग की जा रही है। पैरा मिलिट्र फोर्स के प्रति लोगों का विशवास जगाने के लिए सरकार को कड़े प्रयतन करने ही होंगे।
वैसे ये तो सभी ने देखा की केंद्र सरकार के साथ विपक्ष ने भी शुरू में मणिपुर की हिंसा को बहुत हल्के में लिया। क्योंकि हर कोई कर्नाटक चुनाव में बिजी था। केंद्र सरकार जागी और अमित शाह ने मणिपुर का दौरा किया और अब विपक्ष जागा लगता है। १० विपक्षी दलों ने मणिपुर की समस्या को लेकर पीएम से मिलने का समय मांगा है। विपक्ष आरोप लगा रहा है कि मणिपुर पर पीएम की चुप्पी ठीक नहीं है।
मणिपुर में सामान्य सिथति बहाल करने के लिए अब सरकारी तौर पर सख्ती करनी ही पड़ेगी। असामाजिक तत्वों को कड़ी सजा मिलनी चाहिए जो केवल अपने स्वार्थ के लिए मणिपुर के मैतई और कुकी समुदाय के बीच नफरत पैदा कर रहे हैं।
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