क्या बंगालियों को देश से अलग करना चाहती दीदी


ममता बनर्जी लगता है कुछ ज्यादा ही डेस्पिरेट हो गई हैं अपने प्रदेश के चुनाव में और शायद उनकी पॉपुलैरिटी को लेकर के कुछ चीजें या कुछ रिपोर्ट्स ऐसी मिल रही है जो उनके लिए चिंता का कारण है। यह इसलिए कहा जा रहा है कि हाल ही में उन्होंने एक वीडियो साझा किया है, जिसमें दिल्ली पुलिस पर इस बार तरह का आरोप था कि वो बंगाली लोगों को टारगेट कर रही है। उन पर अट्रोसिटीज कर रही है। जिसको लेकर के दिल्ली पुलिस ने यह जवाब दिया कि यह फेक वीडियो है और वो सिर्फ इसके माध्यम से कुछ बंगाली सेंटीमेंट को जगाने की कोशिश कर रही है जो पिछले दो चुनाव में करके चुनाव जीत चुकी हैं।कि वहां पर मामला बार-बार एक ही काठ की हांडी नहीं चढ़ती है। स्थितियां खराब हो गई है इसलिए ज्यादा डेस्परेट हो गई हैं। अब उस फेक वीडियो पर उनके खिलाफ शिकायत भी हो गई है कि उन्होंने एक फेक वीडियो साझा किया है।

 

संसद में बंगला बोलने की बात होने लगी

उनके एमपीज यह कहने लगे हैं कि अब वो पार्लियामेंट में बंगाली में ही बात करेंगे ,बंगाली में ही भाषण देंगे। ये सारी चीजें हो रही है और ये सब के पीछे सारी मुहिम के इर्दगिर्द बांग्ला सेंटीमेंट है और वो एक बांग्ला वर्सेस गुजरात पहले बंगाली वर्सेस बंग वर्सेस गुजरात और उसके बाद बंगाली वर्सेस द रेस्ट का एक नारा देने की कोशिश कर रही हैं। हालांकि उन्होंने बात कही कि जो जिस तरह की स्थितियां हैं जिस तरह का माहौल नजर आ रहा है वैसा उन्होंने कभी नहीं देखा और ये फ्रेगमेंटेशन की तरफ ले जा रहा है तो फ्रेगमेंटेशन कैसे होगा और सारे बंगालियों का वो स्वागत करने के लिए तैयार है। वो ये कह रहे हैं कि बंगालियों को इस बंगालियों को बांग्लादेशी बना करके बाहर भेजा जा रहा है। उनके पास डॉक्यूमेंट्स हैं। क्या कोई ऐसा कर सकता है कि बंगाली लोगों को जो इस देश के नागरिक हो उनको बांग्लादेशी बनाकर डिपोर्ट कर सकता है? संभव नहीं है।

 

दीदी सभी बंगालियों को बंगाल में बसाने की कवायद—नौकरियां कहां से देंगी

ममता बनर्जी अपनी राजनीति के चक्कर में उन लोगों का नुकसान ममता ये बात भी कर रही हैं कि जो महाराष्ट्र में ,उत्तर प्रदेश में राजस्थान में जो लोग भी रह रहे हैं बंगाली है वो वापस आ जाए। मसला यह है और दावा यह है कि लगभग 20 लाख 22 लाख के आसपासबांग्लादेशी प्रवासी बंगाली जो हैं वो भारत के विभिन्न उसमें प्रदेशों में रहते हैं। लेकिन ये नंबर ज्यादा है। नंबर काफी ज्यादा है। अब ये शायद हो सकता है 50 लाख से भी ज्यादा हो या उससे भी और मामला हो सकता है। तो क्या क्या इन तीनों प्रदेशों से वापस आ जाने पर पूरे बांग्लादेश पूरे बंगालियों की वापसी हो जाएगी और हो जाएगी तो बांग्लादेश पश्चिम बंगाल में अपने लोगों को नौकरी देने के लिए है नहीं ये प्रवासी इसलिए भाग के गए हैं कि इनको वहां नौकरी नहीं मिली उनको बाहर बेहतर नौकरी मिली तो इमोशनली ये कहना है कि हम मिठाई नहीं ऑफर कर सकते हैं लेकिन अगर हम एक रोटी खाएंगे तो आपको भी एक रोटी देंगे ये इमोशनल वो हो सकता है लेकिन वो आएंगे तो उनको कितनी नौकरी मिलेगी नहीं मिलेगी, कहां मिलेगी, क्या मिलेगी, कितना रेमुनरेशन मिलेगा? यह एक बड़ा प्रश्न है और केवल पश्चिम बंगाल केवल राजस्थान, उत्तर प्रदेश औ महाराष्ट्र में नहीं है। हरियाणा के अलावा मध्य प्रदेश, केरल, तमिलनाडु, पश्चिम जम्मू, कश्मीर, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, उड़ीसा इन सब जगहों पर बंगाली

बंगाली मुसिलमों का नुकसान कर रही दीदी

जो माइग्रेंट्स हैं वो हैं। अब इसमें एक जो बात है जिसको समझ लेना चाहिए कि इनमें बड़ी संख्या में बांग्लादेशी रोहिंग्याज़ और म्यांमारी लोग हैं। लेकिन जब ममता बनर्जी इस तरह के सारे लोगों को बंगाली कह करके पश्चिम बंगाल का निवासी बनाती हैं, तो यह अपने उन लोगों का नुकसान करती है जो जेनुइनली इन भारतीय हैं। उनका नुकसान कर रही है। जैसे जब बांग्लादेशी लोगों पर
क्रैकडाउन होता है और उनके समर्थन में ममता बनर्जी खड़ी होती हैं तो जो जेनुइन बंगाली है और वो माइग्रेट करके नौकरी के खोज में है उस पर भी लोग शक की नजर से देखते हैं। तो जब भारतीय बंगाली और जो बांग्लादेशी सिटीजन है जब इन दोनों के समर्थन में ममता बनर्जी खड़ी हो रही हैं तो असली नुकसान जो है वो भारतीय बंगालियों का है। बांग्लादेशियों को बचाने के चक्कर में और इस बात को ममता बनर्जी से ज्यादा उन बंगाली मुसलमानों को समझने की जरूरत है जो इसक कारण लगातार नुकसान झेलते रहे। अभी हरियाणा में क्रैकडाउन हुआ है तो वहां पर जो काम करने वाली जो जिनको आप कह लीजिए जो किचन में बर्तन धुलने या झाड़ू पोछा का काम करती हैं उनमें बड़ी संख्या में वो लोग वापस गए हैं और उनमें ज्यादातर बांग्लादेशी ही हैं जिनको ममता बनर्जी अपना बनाने की कोशिश अपना बताती हैं और ममता बनर्जी की इस राजनीति में जब वो बांग्लादेश देशियों को भी बंगाली पश्चिम बंगाल का नागरिक बताने की कोशिश करते हैं। उस मुहिम में बंगाली जो मुस्लिम हैं पश्चिम बंगाल के उनका नुकसान हो रहा है। तो ममता बनर्जी अपनी राजनीति के चक्कर में उन लोगों का नुकसा कर रही हैं। अब एक और बात हुई है। एक वेलफेयर बोर्ड है माइग्रेंट्स एसोसिएशन का उसके चेयरमैन है सम शमसुल समरु समरुल इस्लाम। अब उनके साथ एक मंत्री के साथ बैठक करके इस समस्या का समाधान करने की कोशिश की गई है कि हम जैसे ममता बनर्जी ने सब बोला है कि जितने भ बंगाली वर्कर्स हैं ये सब वापस आ जाए तो हम इनको नौकरी देंगे। हालांकि इनके पास नौकरी देने के लिए इनके पास कोई साधन नहीं है। नौकरी इनके पास है नहीं।

स्वतंत्रता संग्राम में बंगालियों के गुणगान क्या साबित करना चाहती दीदी

बड़ी भूमिका रही है। हमने सती प्रथा खत्म किया। हमने विधवा विवाह खत्म किया। हमने बाल विवाह भी खत्म किया। इस तरह की बातें ममता बनर्जी अपने भाषणों में कह रही हैं। अब इसमें और भी कई सारी चीजें समझ लेना चाहिए। स्वतंत्रता आंदोलन में देश के हर कोने के व्यक्ति की भागीदारी थी। क्या केवल पश्चिम बंगाल के लोगों ने स्वतंत्रता आंदोलन में भागीदारी की थी। उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, तमिलनाडु, केरल इन लोगों के यहां के लोगों की भूमिका नहीं थी। गुजरात के लोगों की भूमिका नहीं थी। महाराष्ट्र के लोगों की भूमिका नहीं थी या अह हिमाचल प्रदेश के या पंजाब के लोगों की भूमिका नहीं थी। तो, यह अह तर्क जो है, सिर्फ़ इमोशनली लोगों को अपनी तरफ़ खींचने का कारण हो सकता है। दूसरा सती प्रथा की बात की। भाई, सती प्रथा अगर जिस समाज में है, वही उसका उन्मूलन करेगा। अगर पश्चिम बंगाल में सती प्रथा ये दावा पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री का है। मैं यह नहीं कह रहा हूं। अगर सती प्रथा पश्चिम बंगाल में प्रचलित थी तो ये वहां के लोगों की जिम्मेदारी है कि उसका उन्मूलन करें। बाकी देश प्रदेश इलाके में जहां सती प्रधान नहीं है वहां उसका उन्मूलन कैसे हो सकता है? जहां जाति व्यवस्था थी महाराष्ट्र में जाति को लेकर के समस्या थी तो उसका उसके लिए अंबेडकर साहब आगे आए। उन्होंने किया आंदोलन किया बहुत सारा काम। वैसे ही विधवा विवाह को लेकर के अगर वहां पर समस्या थी तो उसका भी उसकी भी लड़ाई पश्चिम बंगाल को ही लड़नी पड़ेगी। बाल विवाह की समस्या थी उसकी लड़ाई भी लड़नी पड़ेगी।

 

वृंदावन में सबसे ज्यादा बंगाली विधवाएं—दीदी उनकी खबर लें


एक बहुत कड़वा सत्य है कि वृंदावन में सबसे ज्यादा विधवाएं जो मंदिर में जब मैंने वो स्टोरी कवर की थी जो मंदिर में दो के लिए तीन घंटे जाप करती थी उसमें 95% से ज्यादा महिलाएं पश्चिम बंगाल की या बंगाली ओरिजिन की होती थी। तो ये जो समस्याएं हैं ये जो कुरीतियां हैं। अगर आपके समाज की है तो आपको ही दूर करना पड़ेगा। इसमें आप प्राइड मत लीजिए। यह आपके समाज की कुरीति थी। ये बंग बंगाली समाज की कुरीति थी। इसका निदान भी बंगाली समाज को ही करना पड़ेगा और वो किया गया। राजा राममोहन राय, ईश्वर चंद्र विद्यासागर इस तरह के बहुत सारे लोग थे। लेकिन ये इसको इमोशनल इशू बना करके चुनाव जितनातना सबसे दुर्भाग्यपूर्ण काम है। और ममता बनर्जी उसी काम में लगी हुई हैं जो देश के लिए खराब है। और इन तो वास्तविकता ये है कि ममता बनर्जी जैसे नेता जो हैं वो देश वो फ्रेगमेंटेशन वाली राजनीति करते हुए नजर आते हैं।

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