चर्चाओं का बाजार गर्म है कि आजतकल मोदी और शरद पवार के बीच कुछ खेला चल रहा है। हाल ही में जिस तरह से पीएम नरेंद्र मोदी ने कईं सार्वजनिक कार्यक्रमों में शरद पवार का विशेष रूप से ख्याल रखा ,दोनों की बातचीत में काफी आत्मयीयता भी नजर आई उससे दोनों दलों के बीच दूरियां कम होती तो नजर आ रही हैं, पर ये सब ऐसे ही हो रहा है या पीछे की कहानी कुछ ओर ही है, छन छन क खबरें आ रही हैं कि जिस तरह से महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे के साथ देवेंद्र फणडवीस के संबंधों में खटास बढ़ती जा रही है और यदि ऐसे में अजीत पवार भी आंखे दिखानी शुरू कर देते हैं तो बीजेपी अपनी सरकार बचाने के लिए शरद पवार का सहारा ले सकती है और यही कारण है कि बीजेपी नेता हों या खुद प्रधानमंत्री मोदी शरद पवार के खिलाफ बोलने से परहेज करते हैं।

एकनाथ शिंदे और अजीत पवार पर दबाव बनाने की रणनीती


महाराष्ट्र सरकार का गणित देखें तो पता चलता है कि 280 सदस्यों वाली विधानसभा चुनाव में बीजेपी के 132 सदस्य है, जो सरकार बनाने से 9 कम है। पर बीजेपी को राष्ट्रीय समाज और छोटे दलों के चार और दो निर्दलीय विधायकों का समर्थन हासिल है। और उनको मिलाकर भी सरकार बनाने के लिए 3 विधायकों की कमी पडती है, दूसरी तरफ शरद पवार के पास 9 विधायक हैं, जो सरकार बनवाने में पूरी तरह से सक्षम हैं। अब अगर एकनाथ शिंदे जिनके 57 विधायक हैं, और अजीत पवार के 41 विधायक ये दोनों ही अपना समर्थन वापस ले लेते हैं तो भी फणवीस की सरकार शरद पवार के नौ विधाकों की मदद से चलेगी नहीं बल्कि दौड़ेगी और बीजेपी आलाकमान इसी गणित को अपनाते हुए ही शरद पवार से बिगाड़ नहीं रहे हैं। ऐसा करके बीजेपी आलाकमान एक तीर से दो शिकार कर रही है एक तरफ अपनी सरकार भी बचा लेगी और दूसरी तरफ शिंदे और अजीत पवार पर दबाव भी रहेगा कि उनके बिना महाराष्ट्र में बीजेपी सरकार पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है।

बीजेपी और एकनाथ शिंदे के रिश्ते ज्यादा बिगड़ रहे हैं

वैसे पता चला है कि महाराष्ट्र बीजेपी और शिंदे सेना के रिश्ते ज्यादा बिगड़ रहे हैं। क्योंकि सरकार ने पिछली शिंदे सरकार के कई फैसलों पर ब्रेक लगा दी है। बसों की खरीद पर रोक, जालना हाउसिंग प्रोजेक्ट की जांच के बाद सरकार ने फसल खरीदने वाली एजेंसियों के लिए नई पॉलिसी बनाने का ऐलान किया है। ये सारे फैसले शिंदे सरकार के कार्यकाल में लिए गए थे। फडणवीस के एक्शन से एकनाथ शिंदे सहज नहीं हैं और हाल ही में उन्होंने इशारों में चेतावनी दी है कि उन्हें हल्के में नहीं लेना चाहिए, तांगा कभी भी पलट सकता है।

 

योगी हैरान-परेशान अपने अधिकारी साख के पीछे

वहीं,यूपी में योगी चाहे जितना भी अच्छा काम कर लें पर उनके आसपास बैठे नेता और अधिकारी कुछ ऐसी घपला कर ही बैठते हैं कि योगी सरकार की निंदा हो जाती है, अब हाल ये हैं कि अपनी वाहवाही लूटने के चक्कर में यूपी के कईं अधिकारियों ने मुख्यमंत्री सामूहिक विवाह योजना को भी नहीं बख्शा और इस कार्यक्रम को सफल बनाने के चक्कर में तीन बच्चों के पिता को दूल्हा बनाकर मंडप में बैठा दिया। यही नहीं नहीं मंडप में बैठी एक लड़की से शादी करने के लिए जब लड़के वाले नहीं पहुंचे तो लड़की वालों ने ही फर्जीवाड़ा कर दिया और किसी दूसरे व्यक्ति को दूल्हा बनाकर बैठा दिया, वैसे समय पर इस तरह के कईं और फर्जी शादियों का पता चल गया और फिर क्या था योगी के प्रकोप में कई अधिकारी नप गए । लेकिन इस तरह के बढ़ते मामलों से मुख्यमंत्री की ओर से शुरू किए गए सामूहिक शादी पर ही सवाल उठने शुरू हो गए हैं और लगातार ऐसे बढ़ते मामलों से योगी के आधीन काम करने वाले अधिकारियों की लापरवाही भी उजागर हो रही है। और दूसरी तरफ योगी की प्रतिष्ठा भी दांव पर लग रही है, अब योगी भी क्या करें किस किस पर नजर रखें और कड़ाई करें। वैसे फर्जीवाड़े के बावजूद सामूहिक विवाह में 184 जोड़ों का विवाह धार्मिक रीति-रिवाज के अनुसार संपन्न कराया गया। इस योजना के तहत योगी सरकार ने गरीब बेटियों के हाथ पीले करने की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले रखी है।

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