राहुल गांधी आ गए अब दिल्ली भी गई हाथ से
राहुल गांधी आजकल दिल्ली में बहुत ज्यादा एक्टिव दिख रहे हैं, जहां इससे उनके चाहने वाले नेता खुश हैं वहीं, पार्टी के अंदर राहुल की बजाय प्रियंका को टाप लीडर बनाने की चाह रखने वाले नेता नाराज भी दिख रहे हैं, ये बात अलग है कि सोनिया के लाडले राहुल पर इतने चुनाव हारने का दाग लगने के बाद भी कोई खुलकर उनके खिलाफ बोल नहीं पाता है पर हां अंदर ही अंदर चर्चाओं का बाजार गर्म है कि दिल्ली में भी कांग्रेस का हाल हरियाणा और महाराष्ट्र जैसा होने वाला है, राहुल के चुनाव प्रचार में आने से उनके बिगड़े बोलों से कांग्रेस की सीटे कट ही सकती हैं बढ़ेंगी नहीं। वैसे यह कहना ठीक भी है कि कईं बार राहुल ऐसा कुछ बोल जाते हैं जो जनता को पसंद नहीं आता, वो कुछ बोलती नहीं है बस कांग्रेस को मिलने वाला वोट कट जाता है। यही कारण कांग्रेस के अंदर ही कईं नेता दिल्ली में राहुल की जगह प्रियंका को एक्टिव करने पर जोर दे रहे हैं। पर राहुल किसकी सुनते हैं वो लगातार दिल्ली चुनाव की तैयारी के लिए दिल्लीवासियों से मिल रहे हैं , विभिन्न इलाकों में जाकर सीधे जनता से बातचीत कर रहे हैं और उनकी समस्याओं को उठा रहे हैं। सुनने में आया है कि जल्द होने वाले दिल्ली विधानसभा चुनाव में प्रदेश कांग्रेस राहुल गांधी की ओर से उठाए गए दिल्ली के मुद्दों को अपने मेनिफेस्टो में जगह दे सकती है।
क्या ममता ने कर दी मोदी सरकार की मदद
संसद का पहला हफ्ता हंगामे की भेंट चढ़ गया , यानी आम आदमी के खून पसीने की कमाई मिट्टी में मिल गई , जी हां कम ही लोग ये जानते होंगे कि संसद की एक दिन की कारवाई पर करोडों रूपए खर्च होते हैं और ये पैसा आम आदमी से वसूला टैक्स का ही हिस्सा है। खैर अच्छी बात ये है कि आखिरकार विपक्ष संविधान को अपनाने के 75 साल पूरे होने पर चर्चा करने के लिए सहमत हो गया है। वैसे दबे स्वर में चर्चा है कि विपक्ष को मनाने में ममता दीदी ने सरकार की मदद की है, जिस तरह से कांग्रेस अडी थी कि जबतक अडानी समूह के खिलाफ लगाए गए आरोपों पर चर्चा नहीं होगी, संसद को काम नहीं करने दिया जाएगा। उसपर ममता ने ,कांग्रेस की ओर से लगातार अदानी का मुद्दा उठाकर संसद पर हंगामा करने के लिए उसे खरी खरी सुनाई थी, यहां तक ममता ने कांग्रेस की ओर से इसको लेकर शुरू की गई मुहिम से भी पूरी दूरी बना ली थी। वैसे अब समाजवादी पार्टी भी ममता की हां में हां मिलाते दिख रही है। उसने भी संसद को ठीक से चलने की बात कही जिससे संभल में हुई हिंसा पर चर्चा की जा सके। और माना जा रहा है कि ममता के इसी कडे रूख के कारण संसद में गौतम अडानी के मुद्दे पर चर्चा कराने की मांग को लेकर अड़ी कांग्रेस ढ़ीली पड़ गई है और उसने इसके लिए अपने कदम पीछे खींच लिए।
क्या महाराष्ट्र में President Rule होना चाहिए
महाराष्ट्र में सीएम पद के नाम के लिए जैसे जैसे देर हो रही है , विपक्ष के साथ सहयोगी दलों के नेता भी मोदी सरकार को घेर रहे हैं। जहां उद्वव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे ने तो यह तक कह दिया कि 9 दिन बाद भी अगर सरकार नहीं बन पाई तो राष्ट्रपति शासन लागू किया जाए। वहीं दूसरी तरफ बीमार पड़े एकनाथ शिंदे एकदम से ठीक होकर मुंबई लौट आए तो खबरों का बाजार गर्म है कि क्या वो बड़ा खेला करने वाले हैं या फिर बीजेपी ने उनकी तीन मांगों में से एक पर सहमित की मोहर लगा कर उन्हें मना लिया है। और इस बीच माना जा रहा है कि महाराष्ट्र में सीएम कौम होगा इस पर फैसला हो चुका है और सर्व सहमित से फडणवीस के नाम पर मोहर लग गई है। 5 दिसंबर शपथ समारोह की डेट घोषित होने के बाद यब बात पूरी तरह से साबित होती दिख रही है कि बीजेपी अपने सहयोगी दलों को देवेंद्र फडणवीस के नाम पर मना चुकी है, पर विपक्ष है कि मनाती ही नहीं है उसे बिना सरकार गठन का दावा किए बिना शपथ ग्रहण की डेट का घोषणा करने पर पूरी आपति हो रही है, आदित्य ठाकरे का कहना है कि officially cm फेस का नाम घोषित किए बिना तिथि फिक्स करना पूरी तरह से गलत है। आपको बता दें कि महायुति ने बड़े जोरशोर से सरकार बनाने के लिए तैयारियां शुरू कर दी हैं। 5 दिसंबर की शाम ऐतिहासिक आजाद मैदान पर शपथ ग्रहण समारोह होगा।