बहिष्कार करने की रणनीति से कर पाएंगे मोदी का मुकाबला

केंद्र सरकार की ओर से देर रात लाए गए Ordinance की हर दल निंदा कर रहा है और जहां राहुल गांघी इसपर चुप्पी लगाए हैं वहीं कांग्रेस के कुछ नेताओं के भी सुर निकल रहे हैं लेकिन एनडीए सरकार की बुराई करने से पहले कांग्रेस को अपने गिरेबान में झांकने की ज्यादा जरूरत है।

आप में से कम ही लोग जानते होंगे की देश में वर्ष 1950 से 2014.तक कुल 679 ordinances लाए गए थे और इन ६४ सालों में से एक-दो साल को छोड़कर कांग्रेस ने ही देश पर राज किया है। तो अब तो आप समझ गए होंगे कि हम आपको क्या बताना चाहते हैं। ये तो कांग्रेस के लिए भी नसीहत है कि अगर अपने घर शीशे के बने हों तो दूसरों के घर पर पत्थर नहीं फैंकते।

मोदी सरकार पिछले 7 सालों में 76 Ordinances लाई

मोदी सरकार पिछले 7 सालों में 76 Ordinances लाई

वैसे चर्चा ये भी जोरों पर है कि मोदी सरकार पिछले 7 सालों में 76 Ordinances लाई है जबिक इससे पहले कांग्रेस अपने १० साल के राज में 61 Ordinances लाई थी। यदि बीजेपी यहां कांग्रेस से आगे बढ गई तो भई ये तो राजनीति है और हर कोई एक दूसरे को देखकर रंग बदलता है।

वैसे यहां Ordinance की बात करें तो राहुल गांधी का जिक्र होना बनता है जिनहोने अपनी ही पार्टी के Ordinance को फाड कर फैंक दिया था। उस समय शरद पवार, फारूख अबदुलला समेत कई विपक्षी दलों और दबे सवरों में कांग्रेस के वरिषठ नेताओं ने इसकी निंदा की थी और इसे सीधा तब प्रधानमंत्री पर बैठे मनमोहन सिंह का अपमान बताया था।

इसलिए कांग्रेस को तो Ordinance के बारे में ज्यादा कुछ बोलना ही नहीं चाहिए क्योंकि उनके दल के सबसे बड़े नेता ही उसका सम्मान करना नहीं जानते आपको Ordinance यानी अध्यादेश क्या होता है इसके बारे में भी थोडा समझा दें। जब संसद नहीं चल रही होती है और किसी आपातकालीन परिस्थितयों में सरकार को कोई कानून लागू करना होता है तो देश के राषट्रपति केंद्र सरकार की सिफारिश पर उस कानून के लिए अध्यादेश यनि Ordinanc लागू करते हैं ।

इसकी अवधि छह महीने की ही होती है।यानी ये टेमपरेरी व्यवस्था है। इस दौरान ६ सप्ताह के अंदर इसे संसद में पेश करना होता है. इसे दोनों सदनों में पास कराके राषट्रपति की स्वीकति के लिए भेजना होता है।ताकि कानून बनाया जा सके। लेकिन हैरानी-परेशानी की बात यही है कि हंमारे संविघान में ordinance का इस्तेमाल इंमरजेंसी सिजूएशन के लिए दिया गया है। लेकिन सता में बैठी हर पार्टी इस अधिकार का बडी आसानी से दुरूपयोग कर रही है।

पर इसको लेकर दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल बहुत ही ज्यादा व्यस्त दिख रहे हैं। उन्हें ना तो अस्पताल में काफी दिनों से भर्ती अपने नेता सतेंद्र जैन की परवाह है,। सबको पता है कि जैन इस समय बिल्कुल ठीक नहीं हैं और एक समय में केजरीवाल के दाहिने हाथ रहे सतेंद्र जैन से ना मिलना केजरीवाल के किस रूप को दर्शा रहा है ये सबको दिख रहा है।

केजरीवल तो जेल में बंद

केजरीवल तो जेल में बंद

केजरीवल तो जेल में बंद अपने एक और साथी मनीश सिसोदिया का हालचाल पूछने की भी फुरसत नहीं हैं। ये वही मनीष सिसोदिया हैं जो केजरीवाल की हर मुसीबतों में उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहते थे। और साथ ही केजरीवाल को आजकर दिल्ली की जनता की परेशानियों से भी कुछ मतलब नहीं रहा है।

लगता है वो सब कुछ भूल गए हैं और आजकल तो बस उन्हें एक ही काम है रह गया है देशभर में घूमकर, केंद्र की ओर से लाए गए आर्डिनेंस यानी अघ्यादेश को रद्द करवाना । इसके लिए वो हर दल हर पार्टी के दरवाजे पर दस्तक दे रहे हैं और उन्हें सफलता भी मिल रही है। ममता बनर्जी से लेकर उदव ठाकरें , नीतिश कुमार, शरद पवार जैसे कद्दावर नेता उनके साथ हो चले हैं।

लेकिन दिल्ली कांग्रेस के रवैए से केजरीवाल परेशान हैं । जहां कांग्रेस के आलाकमान इसको लेकर केंद्र को घेर रहे हैं वहीं दिल्ली कांग्रेस के कई नेता जैसे अजय माकन इस मुद्दे पर खुलकर केजरीवाल की बुराई कर रहे हैं। उनका सीघा आरोप हैं कि केजरीवाल सारे विशेषाधिकार की मांग कर रहें हैं जो ना कभी दिल्ली की मुखयमंत्री शीलादीक्षित, मदनलाल खुराना, साहिब सिह वर्मा के पास थे, फिर भी उन्होंने सफलतापूर्वक सरकार चलाई।

इसके अलावा माकन का ये भी कहना है कि १९४७ में बाबा साहेब अंबेडकर , सरदार पटेल, पंडित नेहरू नरसिंहा राव, अटल बिहारी वाजपेयी और २०१४ तक मनमोहन सिंह की सरकार ने दिल्ली को वह नहीं दिया जो केजरीवाल अब केंद्र से मांग रहे हैं।

राहुल गांघी की चुप्पी

राहुल गांघी की चुप्पी

वैसे राहुल गांघी की चुप्पी साघे अलग ही कहानी बयान कर रही हैं क्योंकि उनको पता है कि जवाहर लाल नेहरू से लेकर कांग्रेस की अंतिम सत्ता ने देश में वर्ष 1950 से 2014.तक कुल 679 ordinances लाए गए थे जिन्हें कांग्रेस लेकर आई थी और इनमें से बहुत से ऐसे थे जो कांग्रेस अपनी ताकत का इस्तेमाल करने के लिए लाई थी। यही नहीं 1952 से 2014 तक कांग्रेस ने केंद्र में अपने शासन के दौरान ५० राज्य की सरकारों को गिरा दिया था।

लेकिन यहां बडा प्रशन यही है कि इतने सालों बाद भी केंद्र और राज्य सरकारों में कानूनी सीमाओं और अधिकारों पर स्पषट नीतियां क्यों नहीं बन पा रही है। क्यों अभी तक इन दोनों के टकराव के मामले कानून की चौखट पर पहुंचते हैं। हाल फिलहाल में महाराषट्र के बाद दिल्ली इसका सीधा- सरल उदाहरण है।

आपकों बता दें कि इस मसले को सुलझाने के लिए अब तक 1970 से 1983 तक चार आयोग बने। सबसे आखिरी सरकारिया आयोग ने अपनी सिफारिश 1987 में पेश की। लेकिन इस आयोग के सुझाव कभी धरातल पर नजर नहीं आए।

इसके बाद सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस एमएम पंछी की अध्यक्षता में बनी कमिटी ने इस मसल को सुलझाने के लिए अपनी रिपोर्ट सौपी थी लेकिन यह 2008 से यह भी लबित पड़ी है।लेकिन एक्सपर्ट का यही कहना है कि देश के विकास के लिए, नागरिकों की सुविघा- सुरक्षा के लिए केंद्र और राज्य सरकार में तालमेल बहुत जरूरी है। सरकार और तमाम विपक्षी दलों को मिलकर इसका हल निकालना ही होगा।

कांग्रेस के गले की हड़ी

दूसरी तरफ अध्यादेश पर केजरीवाल को समर्थन देने का फैसला कांग्रेस के गले की हड़ी बन चुका है। अगर कांग्रेस इससे इंकार करती है तो सीधे तौर पर मोदी के खिलाफ इकटठे हो रहे तमाम विपक्षी दलों की एकता पर सवाल खडे हो जाते हैं। आपको बता दें कि लगभग २१ विपक्षी दल अध्यादेश को गिराने में केजरीवाल का साथ देने के लिए खड़े हो चुके हैं और इसके चलते
ना चाहते हुए भी कांग्रेस के लिए ये बड़ी मजबूरी बनता जा रहा है कि वो केजरीवाल का समर्थन करे।

वैसे अधयादेश के लिए कांग्रेस की चुप्पी के कईं वजह हैं और सबसो बड़ी वजह मानी जाती है कांगेस का अपना इतिहास । कम ही लोगों को पता होगा कि देश में वर्ष 1950 से 2014.तक कुल 679 ordinances लाए गए थे जिन्हें कांग्रेस लेकर आई थी और इनमें से बहुत से ऐसे थे जो कांग्रेस अपनी ताकत का इस्तेमाल करने के लिए लाई थी। 1952 से 2014 तक कांग्रेस ने केंद्र में अपने शासन के दौरान 50 राज्य की सरकारों को गिराया था।

ऐसे में कांगेस को शायद यही डर सता रहा है कि यदि वो अध्यादेश का समर्थन करेगी तो मोदी सरकार इस मुददे को उछालने में कोई कसर नहीं छोड़गी. साथ ही जनता भी कांगेरेस के दोहरे चरित्र के बारे में सवाल उठा सकती है। कांग्रेस के लिए २०२४ का चुनाव बहुत महत्वपूर्ण है और ऐसे में वह जनता के बीच में अपनी एक साफ सुधरी , अच्छी इमेज बनाने में जुटी है।

इन सब परिस्थतियों में देखना यही है कि अध्यादेश के मसले पर कांग्रेस क्या निर्णय लेती है। कांग्रेस के लिए परीक्षा की घड़ी है क्योंकि १२ मई को पटना में विपक्षी नेताओं की एक बड़ी बैठक होने वाली है। और इसमें मोदी को गद्दी से कैसे हटाया जाए इसकी रणनीति पर चर्चा होगी। और कांग्रेस नहीं चाहेगी विपक्षी एकता में वो अलग-थलग पड़ जाए. अध्यादेश के विरोध में केजरीवाल ने नीति आयोग की महत्वपूर्ण बैठक का भी बहिष्कार किया

केजरीवाल के पीछें -पीछे पांच और विपक्षी दलों के मुख्यमंत्री

केजरीवाल के पीछें -पीछे पांच और विपक्षी दलों के मुख्यमंत्रियों ने भी ऐसा ही कदम उठाया। ये केंद्र की ओर से लाए गए अघ्यादेश के विरोध अभियान में केजरीवाल के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हो गए हैं। ये तमाम बातें इशारा कर रही हैं कि मोदी सरकार के खिलाफ विपक्ष ने खुले में जंग का ऐलान कर दिया है।

केजरीवाल ने प्रघानमंत्री को एक लंबा और कड़ा पत्र लिखा । जिसमें उन्होनें बैठक में भाग ना लेने को अध्यादेश के खिलाफ उनकी ओर से चलाई गई मुहिम का एक हिस्सा बताया है। नीति आयोग की बैठक में केजरीवाल के अलावा जिन राज्यों के मुखयमंत्रियो ने भाग नहीं लिया वो हैं —-तमिलनाडू, पशिचम बंगाल, तेलांगना, पंजाब और बिहार।

आपको बता दें कि नीति आयोग की बैठक देश और राज्यों के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है । आयोग को सरकार का थिंक टैंक माना जाता है। इसका काम होता है देश -राज्यों के हित में तमाम नीतियां बनाना, समय -समय पर उनकी समीक्षा करना। साथ ही यह सरकार के साथ-साथ राज्यों को भी तमाम तकनीक सलाह देता रहता है। शनिवार की बैठक में महिलाओं के शक्तिकरण, हेल्थ, सिकल डेवलेपमोेट जैसे मुदों के साथ विकसित भारत का रोड मैप आदि महत्वपूर्ण मुदों पर चर्चा होनी थी।

यही नहीं यह लडाई इतनी लंबी चल निकली है कि विपक्ष ने संसद के नए भवन के उदधाटन के भी बहिष्कार का फैसला कर लिया

संसद के उद्धघाटन का अधिकार राष्ट्रपति जी से छीना

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिका अजुन खरगे ने अपने सोशल मीडिया में लिखा कि नई संसद के उद्धघाटन का अधिकार राष्ट्रपति जी से छीना। हैरानी की बात है यह वहीं खरगे जी हैं जिन्होंने अपने मुंह से एक शब्द नहीं निकाला जब उनकी ही पार्टी के तीन नेताओं ने राषट्रापति दोपदी मुर्मु का मजाक उडाया था उनपर भद्दी टिप्पणी की थी चुके हैं उनके बारे में अभद्र टिप्पणी कर चुके हैं। आज खरगे जो को राषट्रपति पद की गरिमा , उनके सम्मान की याद आ रही है लेकिन सबको पता है कि इसके पीछे क्या राजनीत चल रही है।

आपको बता दें कि कांग्रेस के तीन नेता -अधीर रंजन चौधरी उदित राज और अजाय कुमार हमारे देश के सर्वोच्च पद पर विराजमान दोपदी मुर्म का मजाक बना चुके हैं।

राहुल गांघी समेत विपक्ष के बहुत से नेताओं ने राष्रपति के सम्मान का ढिढोरा पीटकर नई संसद के अदधाटन का बहिष्कार किया लेकिन आपको बता दें कि ये वही विपक्ष है जिसने जिसने इसी साल जनवरी में संसद के संयक्त सत्र में हुए राष्टपत मुर्मु के भाषण का बहिष्कार किया था।

इससे पहले भी वर्ष 2021 में लगभग 16 विपक्षी दलों ने President Ram Nath Kovind’s के संयुक्त सत्र में दिए भाषणा का बहिष्कार किया था।

आशचर्य यही होता है कि आज इसी विपक्ष को अचानक राष्पपति के सम्मान की कैसे याद आ गई । यहीं नहीं राषट्पति पद की गरिमा की बात करने वाली तूणमूस कांग्रेस के एक नेता ने तो राषट्रपति के चेहरे तक का मजाक उड़ा दिया था।

आपको बता दें कि 24 अक्टूवर 1975 को लेट prime minoster indira gandhi इंदिरा गांधी ने किया उदघाटन
ने संसद एनेक्सी का उदघाटन किया था और15 अगस्त 1947 को late prime minister Rajiv Gandhi ने संसद लाइब्ररी का उदघाटन का।

राज्यो के बीच चली कोल्ड वार का खामियाजा राज्यें में चल रहे कई महतवपूर्म कामों पर पड सकता है। और इसका खामियाजा जनता को ही भुगतना पडेगा।

लोकतंत्र में मजबूत विपक्ष का होना जरूरी

सभी जानते हैं लोकतंत्र में मजबूत विपक्ष का होना जरूरी हैं लेकिन यदि विपक्ष और सरकार का तालमेल खत्म होगा तो देश में विकास के रास्ते बंद होंगे समझना यही है यदि यही कांग्रेस , यही विपक्षी दल अपने उन नेताओं पर सख्ती बरतते जिन्होने राष्ट्रपति का मजाक उठाया था , तो आज नई संसद के उद्धघाटन पर राष्टपति को ना बुलाने पर मोदी की निंदा करने का उनका कोई हक नहीं। साथ ही सालों साल सरकारों को गिराने-उठाने में लगी कांग्रेस को अध्यादेश पर बोलने का कोई अधिकार नहीं।

वैसे मोदी सरकार ने बड़ी चतुराई से इस पूरे मामले को एक नया रंग दे दिया जब उन्होनें सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक ” सेंगोल को संसद भवन में स्थापित करने का फैसला लिया और इस आयोजन को लेट पंडित जवाहर लाल नेहरू के नाम के साथ जोड़ दिया है। आपको बता दें कि इस प्रतीक चिंह को 1947 में सत्ता परिवर्तन के समय लार्ड माउंटबेटन के पंडित नेहरू को भेंट किया था।

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