शशि थरूर लगता है मोदी ने दे दिए कुछ HINT
लगता है कांग्रेस के वरिष्ठ और लोकप्रिय नेता नेता शशि थरूर ने कांग्रेस से बिल्कुल अलग राह पकड़ ली है और उनके लगातार दिए जाने वाले बयानों से लग रहा है कि वो अब बिना किसीड डर के आर या पार की लड़ाई खेलने के मूड में हैं, चर्चाएं यह भी चल रही है कि थरूर पूरी तरह से मोदी की गुड़ बुक्स में आ चुके हैं और जब चाहे बीजेपी ज्वाइन कर सकते हैं, जी हां विदेशों से लेकर भारत में भी मोदी की तारीफ करने वाले थरूर ने आपातकाल की निंदा करते हुए कांग्रेस को एक बार फिर कटघरे में खड़ा कर दिया है, जी हां शशि थरूर ने हाल ही में एक बयान में कहा कि आपातकाल भारत के इतिहास का काला अध्याय था। उन्होंने यह भी कहा कि 1975 में लोगों ने अपनी आंखों से देखा, झेला कि आजादी कैसे पलभर में खत्म कर दी जाती है। यही नहीं शशि थरूर ने पहली बार इंदिरा गांधी के बड़े बेटे संजय गांधी के खिलाफ भी बोला और बताया कि उन्होंने जबरन नसबंदी अभियान चलाया और अपने मनमाने लक्ष्यों को पूरा करने के लिए हिंसा और जबरदस्ती के जरिए गांव-गांव में नसबंदी की गई। शशि थरूर ने एक बैर फिर मोदी सरकार की प्रशंसा करते हुए indirectly कहा कि आज का भारत 1975 से अलग है और किसी को लोकतंत्र को हल्के में नहीं लेने की चेतावनी भी दे डाली।
Maharashtra—मराठी -हिंदी विवाद असली वजह जानों तो हैरानी होगी
शायद कम ही लोग ये जानते होंगे कि देशभर में मुंबई में मौजूद महानगरपालिका सबसे अमीर नगरपालिका है और इसका चुनाव जीतने का मतलब है पावर के साथ money भी । राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा जोर पकड़ रही है कि जिस तरह से अचानक उद्वव ठाकरे ने राज ठाकरे का हाथ पकड़ा है और उनकी ही राह पकड़ कर हिंदी-मराठी विवाद में कूद पड़े हैं, इसका असली मकसद बस किसी ना किसी तरह महानगरपालिका चुनाव में ज्यादा से ज्यादा सीटे जीतना है। क्योंकि उद्वव ठाकरे ने जिस तरह से ना केवल राज ठाकरे की लगातार उपेक्षा की है बल्कि समय समय पर उनका अपमान भी किया है , आज अचानक उसी भाई के लिए कैसे प्रेम उमड़ पड़ा है, लग रहा है कि ठाकरे ब्रदर्स के एक होने का प्लान पूरी तरह से उद्वव के दिमाग की उपज है, उद्वव की पार्टी के कांग्रेस के साथ जाने से माना जा रहा है बीजेपी में उनके दरवाजे बंद हो चुके हैं और ऐसे में अपनी डूबती नैया को पार और मराठी कार्ड परोसने के लिए राज ठाकरे से बेहतर कोई और नेता नहीं दिख रहा है। हिंदी-मराठी विवाद के जरिए उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र की राजनीति में अपना वर्चस्व भी बनाए रखना चाहते हैं। उनको पता है कि अकेले वो मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की जोड़ी के सामने कुछ नहीं कर पाएंगे इसलिए अब उन्होंने अपने चचेरे भाई पर प्यार उमेड दिया है, वैसे ये यही भाई हैं जिसके साथ पिछले 20 साल से वह किसी भी मंच पर साथ आने से कतराते थे।
Rahul की भक्ति पर बेइजज्ती ही हाथ लगी
बिहार के कद्दावर नेता पप्पू यादव की राहुल गांधी से की जाने वाली भक्ति किसी से छुपी नहीं है, यहां तक की पप्पू यादव संसद में भी राहुल की तारीफों के पुल बांधते ही रहते हैं, और अगर पप्पू यादव का बस चले तो वो कल ही देश की कमान राहुल के हाथ में सौप दें, यानी उन्हें pm बना दें पर राहुल गांधी के लिए पप्पू यादव की क्या कोई हैसीयत नहीं है, जी हां बिहार में जो कुछ हुआ और जिस तरह से पप्पू यादव को राहुल-तेजस्वी के मंच पर बिन बुलाए मेहमान की तरह बेज्जत किया गया , उससे तो यही लगता है। दरअसल पटना में महागठबंधन के बिहार बंद के दौरान एक ट्रक को सजाकर मंच बनाया गया उसमें राहुल गांधी, तेजस्वी यादव और महागठबंधन में शामिल और दलों के नेता भी खड़े थे। इतना पप्पू यादव ने भी इस मंच पर चढने की कोशिश की तो वहां खड़े सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें पीछे धकेल दिया, बेचारे पप्पू यादव मायूस होकर नीचे ही खड़े हो गए, चर्चाएं यही चल निकली है कि मंच पर खड़े राहुल गांधी ने भी ये नजारा जरूर देखा होगा क्योंकि प्पपू यादव अपने काफी सारे समर्थकों के साथ हो हल्ला करते हुए वहां पहुंचे थे, पर जब पप्पू यादव को उपर चढने नहीं दिया गया तो राहुल जान कर भी अनजान बने रहे और इससे साफ लगता है कि निर्दलीय सांसद प्प्पू यादव की राहुल गांधी से भकित सिर्फ एक तरफा ही है, वैसे आपको बता दें कि बिहार में जिस कन्हैया कुमार को अपना हीरो बताकर कांग्रेस युवाओं को लुभाने का प्रयास कर रही है, उन्हें भी मंच पर चढ़ने से रोक दिया गया। गजब बेज्ज्ती है।