Eight Tmes Winner -Menka Gandhi

दिग्गज-कर्मठ नेता.— क्या गंदी राजनीती का शिकार

मेनका आठ बार लोकसभा के लिए चुनी गईं

 पति संजय गांधी के निधन के कुछ दिनों बाद मेनका के अपनी सास इंदिरा गांधी से रिश्ते बिगड़ने लगे


मेनका गांधी ने बीजेपी ज्वाइन कर ली।

आठ बार लोक सभा का चुनाव जीतने वाली मेनका गांधी इस बार सुल्तानपुर से चुनाव हार गईं तो चर्चा तो होगी कि आखिरकार अपने क्षेत्र में पोपुलर , जनता की चहेती मेनका गांधी चुनाव कैसे हार गईं।राजनीति गलियारों में चर्चा है कि मेनका अपने ही गढ़ में अखिलेश यादव के सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूले का शिकार बन गई थीं। रही सही कसर पार्टी की उपेक्षा ने निकाल दी। मेनका का राजनीतिक कद कितना भी बड़ा हो लेकिन पार्टी ने उन्हें सुल्तानपुर तक सीमित रखा. मेनका को अपने निर्वाचन क्षेत्र में पांच साल किए काम के कारण वोटरों का एक बार फिर समर्थन पाने का काफी भरोसा था, जो टूट गया।

माना जाता है रहा है कि सुल्तानपुर में उन जैसी सक्रिय कोई सांसद नहीं रह पाया है, मेनका ने अपने इलाके में काफी काम किए लोगों के दिलों में जगह बनाई पर लेकिन नतीजों ने बताया कि चुनाव जीतने के लिए जनप्रतिनिधि के प्रयास पर्याप्त नहीं होते. जातियों की सोशल इंजीनियरिंग भी जरूरी है .आपको समझाते हैं कैसे जहां पहले समाजवादी पार्टी ने अंबेडकरनगर निवासी भीम निषाद को सुलतानपुर सो उम्मीदवार बनाया. फिर उन्हें हल्का मानते हुए निषाद बिरादरी के एक बड़े नाम गोरखपुर निवासी पूर्व मंत्री राम भुआल निषाद को मैदान में उतारा. बसपा ने कुर्मी बिरादरी के उदराज वर्मा को मौका दिया.
निषाद और कुर्मी बिरादरी का अब तक भाजपा अच्छा समर्थन हासिल करती रही है. लेकिन नतीजों ने बताया कि भाजपा के इस वोट बैंक में समाजवादी पार्टी ने सेंधमारी कर मेनका की हार की पटकथा लिख दी.सपा के हक में मुस्लिमों-यादवों के मजबूत समर्थन के साथ ही अन्य पिछड़ों और दलितों के वोटों ने सुल्तानपुर लोकसभा सीट पर मेनका को हरा दिया।

1980 में पति संजय गांधी के निधन के कुछ दिनों बाद मेनका के अपनी सास इंदिरा गांधी से रिश्ते बिगड़ने लगे थे. 1982 में मेनका ने अमेठी के दौरे शुरू किए. अपने दिवंगत पति की राजनीतिक विरासत हासिल करने के लिए 1984 में उन्होंने जेठ राजीव गांधी के खिलाफ अमेठी से चुनाव लड़ा पर हार गई
1989 से मेनका पीलीभीत से जुड़ीं. 1996, 98, 99, 2004 के चुनाव वे वहां से जीतीं. 2009 में पीलीभीत सीट उन्होंने वरुण के लिए छोड़ी और खुद आंवला से चुनी गईं. 2014 में एक बार फिर उनकी पीलीभीत वापसी हुई तो 2019 में मेनका ने सुल्तानपुर से जीत दर्ज की. मेनका आठ बार लोकसभा के लिए चुनी गईं।

वरूण का टिकट कटना मेनका के लिए काफी पीडादायक


हार के बाद नहीं दिखाई देंगी संसद में


बीजेपी से बन रही हैं दूरियां

मेनका जैसी नेता को साइड लाइन करना एक दुर्भाग्य

पूर्व सांसद और केंद्रीय मंत्री रहीं मेनका गांधी साल 2024 में हुए लोकसभा चुनाव में हार को बाद उन दिग्गजों में शामिल हो गई हैं, जो इस बार संसद में नहीं दिखाई दे रहे हैं।वैसे मेनका गांधी ने सुल्तानपुर से अपने प्रतिद्वंद्वी रहे चुने गए सांसद रामभुआल निषाद के चुनाव को कोर्ट में चुनौती दी है. उन्होंने उनका निर्वाचन रद्द करने की अपील की है.मेनका गांधी की तरफ से दायर याचिका में कहा गया है कि राम भुआल निषाद पर 12 मुकदमे दर्ज हैं, मगर उन्होंने चुनाव आयोग में दिए गए हलफनामे में केवल 8 मुकदमों का ज़िक्र किया है।उनकी इस हार से निश्चित तौर पर भाजपा में मेनका जैसी कर्मठ नेता का कद कम होता दिख रहा है। वैसे उनके पुत्र वरुण गांघी भी भाजपा में ताल-मेल नहीं बिठा पा रहे हैं वरुण का टिकट कटने की पीड़ा मेनका को काफी रही जिसको उन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान समय समय पर जाहिर भी किया। पर मेनका जैसी नेता को साइड लाइन करना एक दुर्भाग्य ही माना जा सकता है.

Meneka Gandhi लोगों के दिलों में

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