Maharashtra —मराठा आंदोलन सरकार की बड़ी सरदर्दी

मराठा आरक्षण को लेकर के जिस तरह से कल खबरें आ रही थी कि जो महाराज मराठा आरक्षण के नेता हैं उन्होंने बोला कि जब तक उनकी मांगे नहीं मांगी जाएगी वो मुंबई नहीं छोड़ेंगे और उसके बाद मराठा आरक्षण से जुड़े हुए जो कार्यकर्ता हैं उन्होंने जिस तरह से पूरे शहर को बंधक बना रखा है। उसके बाद बहुत सारी स्थितियां ऐसी हुई है जहां पर लोगों को असुविधा हो रही है। लेकिन उन असुविधाओं के बीच में जो सबसे बड़ी असुविधा थी वो यह थी कि जो हाई कोर्ट के जजेस थे उनको अदालत तक पहुंचने में दिक्कत हुई और इसको लेकर के उन्होंने अपनी नाराजगी जाहिर की ना केवल नाराजगी जाहिर की बल्कि यह भी कहा कि जहां जहांजहां सड़कों पर कब्जा किए हुए जो मराठा आरक्षण से जुड़े हुए लोग हैं वो उसको जल्द से जल्द खाली करें और येकि हाई कोर्ट का आर्डर है। अब निश्चित तौर पर हाई कोर्ट के आर्डर के खिलाफ कोई भी व्यक्ति सुप्रीम कोर्ट जा सकता है और विरोध प्रदर्शन को अपना फंडामेंटल राइट बता सकता है अब इससे महाराष्ट्र की सरकार है वो भी बहुत मुश्किल में है। सख्ती कर नहीं सकती है। लेकिन शायद जो जजमेंट आया है जो आदेश आया है सुप्रीम हाई कोर्ट के जज के तरफ से उससे थोड़ी राहत महाराष्ट्र सरकार को मिल सकती है।

Rahul Gandhi का बम एक बार फिर फुस

अब राहुल गांधी ने बोला है कि वो हाइड्रोजन बम ले कराने वाले हैं। हाइड्रोजन बम का विस्फोट करने वाले हैं और उन्होंने हाइड्रोजन बम को डिफाइन भी किया कि वो एटम बम से बड़ा होता है। और ये चुनाव आयोग के लिए बीजेपी के लिए सरकार के लिए मुश्किलें पैदा करने वाला होगा। तो अब वो ये जो उनके जो उनका अनाउंसमेंट है उस अनाउंसमेंट के के बाद से भारतीय जनता पार्टी में थोड़ी सी चिंता हो गई है इसलिए कि उसको काउंटर करना वो होगा और ये जो हाइड्रोजन बम की जब से धमकी राहुल गांधी ने दी हुई दी है तब से बीजेपी में भी खलबली है कि वो हो क्या सकता है और किस तरह का नया खुलासा लेकर के राहुल गांधी आ रहे में निश्चित तौर पर बीजेपी उसकी तैयारी में लग गई होगी और इंतजार में होगी कि राहुल गांधी उसको लेकर के आए।

Modi की एक और बड़ी जीत


पहलगांव का जो मामला था जम्मू और कश्मीर में जो 25 हिंदुओं को सरहद के उस पार से आतंकवादियों ने उनका धर्म पूछ के मार दिया। इसको लेकर के बहुत विवाद और बहुत बातें चल रही थी कि जो पिछली एससीओ की बैठक थी उसमें इस मामले पर कोई सहमति नहीं बन पाई थी और इसको जो स्टेटमेंट था जो एससीओ का स्टेटमेंट था उसमें नहीं इंक्लूड किया था औरकि इसको इंक्लूड नहीं किया था इसलिए भारत ने उस एसइओ जो डिक्लेरेशन है उसको दस्तखत करने से मना कर दिया था। राजनाथ सिंह भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। लेकिन अभी जब बीजिंग में प्रधानमंत्री पहुंचे हैं एचसीओ सम्मेलन में भाग लेने के लिए तो वहां पर पहलगांव आतंकवादी हमले क्रॉस बॉर्डरटेररिज्म आतंकवाद इन सब पर ना केवल चर्चा हुई है। प्रधानमंत्री ने अपनी बात में भी कहा है बल्कि एसओ की तरफ से भी यह बात निकल कर के आई है। कि उसमें चीन कह लीजिए आप कि आतंकवाद जो है वो किसी भी उसमें नहीं स्वीकार किया जाएगा और ये सब कुछ जो है वो पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की उपस्थिति में हुआ है। तो अगर इसको डिप्लोमेसी की दृष्टि से देखें तो एक बड़ी जीत भारत के लिए है। उतना ही नहीं इंटरनल पॉलिटिक्स के लिहाज से भी बहुत बड़ी जीत माना जा रहा है।कि कि इस तरह की चीजों को लेकर के पाकिस्तान के समर्थन में चाइना खड़ा नजर आता था। वह जो स्थिति है उसमें बदलाव आया है। यह जो बदलाव है यह डिप्लोमेसी के हिसाब से एक बड़ी जीत है जिसको समझने की जरूरत है। जो बात लगातार भारतीय जनता पार्टी और सरकार कह रही है कि हमने आतंकवाद पर एक बार फिर उन सब लोगों को कॉर्नर किया है और जिस तरह की केमिस्ट्री पुतीन और चाइनीस राष्ट्रपति और भारतीय प्रधानमंत्री के बीच में दिख रहा था वो अपने आप में एक मिसा बन सकती है। लेकिन इन सबके बावजूद भी भारत को चीन के साथ डील करते समय बहुत चौकन्ना रहने की ज़रूरत है। चीन को विश्वास करना शायद इतनी जल्दी मुश्किल होगा भारतीय भारत सरकार के लिए, भारतीय जनता पार्टी के लिए और किसी भी और किसी भी राजनीतिक दल के लिए।

Bihar —एक कद्दावर नेता का अपमान कहीं RJD-CONGRESS को भारी ना पड़े


पूर्णिया के सांसद पप्पू यादव को एक बार फिर तेजस्वी यादव ने स्टेज साझा मंच साझा नहीं करने दिया। बावजूद इसके कि वह कांग्रेस समर्थित लोकसभा सदस्य हैं पूर्णिया से। वो मंच के नीचे ही कुर्सी लगा के बैठे रहे और यह खबर सब जगह पहुंची। अब इस पूरी लड़ाई में जो भाजपा के खिलाफ और चुनाव आयोग के खिलाफ राहुल गांधी और तेजस्वी यादव चला रहे थे। उस पूरी लड़ाई में एक ऐसे नेता को नहीं शामिल किया गया जिसकी सीमांचल मेंतूती बोलती है और बावजूद इसके कि लालू प्रसाद यादव और राष्ट्रीय जनता दल के विरोध के वो चुनाव पूर्णिया से इंडिपेंडेंट कैंडिडेट कांग्रेस समर्थित कैंडिडेट के अह उस पर जीत गया। जबकि लोकसभा का चुनाव जो है वो कांग्रेस और आरजेडी मिलकर लड़े थे और महागठबंधन अलायंस जो है चुनाव लड़ा था। उन परिस्थिति में जो नेता चुनाव जीत करके आया है क्या उसको लगातार इस तरह से नजरअंदाज करना सही मैसेज जाएगा और कम से कम उन मतदाताओं के बीच में जो एक ही जाति वर्ग से संबंधित संबंध रखते हैं। खैर ये आरजेडी को डिसाइड करना है।

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