तमिलनाडू Dmk प्रमुख करूणानिधि का ही नाम -काम है -जो तीसरी पीढ़ी उदयनिधि राजनीति में चमक रहे

हाल ही में तमिलनाडू के मुख्मंत्री और डीएमए के प्रमुख एम के स्टलिन ने अपने बेटे उदयनिधि को डिप्टी सीएम बना दिया और इसके साथ डीएमए में भी परिवार वाद की तीसरी पीढी को राजनीतिक ताकत कानूनी रूप से थमा दी गई हालांकि उदयनिधि पहले से ही अपने पिता के मंत्रीमंडल में शामिल थे लेकिन डिप्टी सीएंम बनाकर स्टालिन ने यह संकेत दे दिए हैं कि उनके बाद उनकी गद्दी पर उनका बेटा ही बैठेगा । डीएमए प्रमुख करूणानिधि ने राजनीति में जो परिवारवाद की परंपरा शुरू की उसका पालन उनके बेटे ने भी कर दिया। बस फर्क सिर्फ इतना है कि करूणानिधि ने अपना लंबा राजनीतिक सफर अपने काम , जनता के बीच जाकर लोकप्रियता हासिल करके पूरा किया

स्टालिन को AIDMK की नेता जयललिता की अचानक मौत से राजनीति में बहुत फायदा पहुंचा

लेकिन स्टालिन का राजनीतिक सफर इसलिए चमक गया क्योंकि तमिलनाडू में उनको टक्कर देने के लिए aidmk की नेता जयललिता नहीं रही, उनकी मृत्यु के बाद ना केवल उनकी पार्टी बिखर गई बलिक डीएमए भी करूणानिधि के जाने के बाद जो नीचे गिर रही थी अचानक उसका ग्राफ उंचा उठने लगा। अब उदयनिधि की राजनीति से हर कोई परिचित है वो सिर्फ सनातन धर्म को गालियां देकर अपनी रोटियां सेंक रहे हैं तमिलनाडू की जनता के प्रिय बनने की कोशिश कर रहे हैं।

 करुणानिधि को नहीं भुला पाई तमिलनाडू की जनता उनके बेटे को सर आंख पर बिठाया

लेकिन तमिलनाडू में अभी भी जनता अपने प्रिय नेता डीएमए प्रमुख करुणानिधि को नहीं भुला पाई है और जानकार तो मानते हैं कि डीएमए को अभी तक वोट मिलने जनता का प्यार मिलने का कारण काफी हद तक करुणानिधि का काम और नाम है।

तमिलनाडु की राजनीति के वटवृक्ष कहे जाने वाले करुणानिधि दलितों और वंचित समुदायों के मसीहा थे


आप में से कम ही लोग ये जानते होंगे कि दक्षिण भारत और खासतौर पर तमिलनाडु की राजनीति के वटवृक्ष कहे जाने वाले करुणानिधि दलितों और वंचित समुदायों के मसीहा माने जाते थे। उनकी पार्टी पहले विश्वनाथ प्रताप सिंह, फिर अटल बिहारी वाजपेई और मनमोहन सिंह की मिलीजुली सरकारों में रही पर करुणानिधि ने अपने सम्मान और नीतियों से कभी भी कोई समझौता नहीं किया।यही कारण है कि उनकी मौत के इतने साल बाद भी तमिलनाडू में बहुत से लोग उनकी भगवान की तरह पूजा करते हैं ।

19 साल तक लोगों के दिल में राज किया

करीब 19 साल तक तमिलनाडु के मुख्यमंत्री रहे करुणानिधि और उनकी राजनीति में जाति, धर्म निरपेक्षता, क्षेत्रीय पहचान का गहरा असर था।करुणानिधि की राजनीतिक विरासत को लेकर उनके दो बेटे एमके अलागिरी और एमके स्टालिन में संघर्ष काफी समय तक चला। पर इस संघर्ष में छोटे बेटे स्टालिन हमेशा भारी पड़े। उनके प्रशंसकों की फेहरिस्त भी बड़ी है वहीं वे अलागिरी की तुलना में ज्यादा पढ़े लिखे और कूटनीति में माहिर भी हैं। करुणानिधि ने कई मौकों पर सार्वजनिक मंचों से संकेत दे दिया था कि उनके बाद उनकी विरासत को एमके स्टालिन ही संभालेंगे।
स्टालिन का चेन्नई क्षेत्र में ज्यादा प्रभाव है तो अलागिरी का मदुरै क्षेत्र में। पर दोनों भाइयों लड़ाई साल 2014 में चरम पर पहुंच गई उसके बाद अलागिरी को द्रमुक प्रमुख ने जनवरी, 2014 पार्टी से बाहर निकाल दिया गया था।

 करुणानिधि अपने शुरुआती दौर में तमिल फिल्मों की पटकथाएं लिखा करते

तीन जून 1924 को करुणानिधि का जन्म एक पिछड़ी जाति के परिवार में हुआ था. अपनी किशोरावस्था में ही वह पेरियार ई.वी. रामासामी के सामाजिक न्याय आंदोलन में शामिल हो गए थे.
करुणानिधि अपने शुरुआती दौर में तमिल फिल्मों की पटकथाएं लिखा करते थे। उस समय करुणानिधि और एम जी रामाचंद्रन नजदीकी दोस्त हुआ करते थे। उनकी यह मित्रता राजनीतिक कारणों से दुश्मनी में बदल गई।

करुणानिधि ने तीन शादियां कीं थीं

तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री और द्रमुक प्रमुख करुणानिधि का 94 साल की आयु में अगस्त 2018 में निधन हो गया।
करुणानिधि ने तीन शादियां कीं थीं। उनकी पहली पत्नी पद्मावती, दूसरी पत्नी दयालु अम्माल और तीसरी पत्नी रजति अम्माल हैं। पद्मावती का निधन हो चुका है, जबकि दयालु और रजती जीवित हैं। उनके 4 बेटे और 2 बेटियां हैं। एमके मुथू पद्मावती के बेटे हैं। जबकि एमके अलागिरी, एमके स्टालिन, एमके तमिलरासू और बेटी सेल्वी दयालु अम्मल की संतानें हैं। करुणानिधि की तीसरी पत्नी रजति अम्माल की बेटी कनिमोझी हैं।

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