Congress बढ़ रही है -दोस्तों को पीछे छोड़ रही है
BJP से सबक लेने की जरूरत
कांग्रेस को लेकर आजकल चर्चाओं का बाजार गर्म है, कहा जा रहा है लगातार मिलती कामयाबी के चलते पार्टी अपना रंग बदल रही है। कल तक जो कांग्रेस अपने फायदें कि लिए कईं दोस्त बनाने को बेताब थी आज उसे लग रहा है कि वह अकेले ही अपने बल बूते पर मोदी सरकार से टक्कर ले सकती है। ऐसे में साफ देखा जा रहा है कि कल तक जो पार्टियां कांग्रेस की दोस्त थी कांग्रेस ने उनसे किनारा करना शुरू कर दिया है और कईंयों की तो खुलेआम उपेक्षा भी कर रही है।
झारखंड में पुराने दोस्त जेएमएम से तकरार शुरू
सबसे पहले बात करते हैं सबसे ताजा खबर की जो झनझनकर झारखंड़ से सामने आ रही है। सबको पता है वहां कांग्रेस जेएमएम को सरकार चलाने में सहयोग दे रही है , जल्दी ही यहां चुनाव होने वाले हैं और सीट बंटवारे को लेकर कांग्रेस ने जेएमएम को आंखें दिखानी शुरू कर दी है। जाहिर है कांग्रेस इस समय मजबूत स्थिति में है और उसकी स्थिति पांच साल पहले वाली नहीं हैं जब उसने सरकार चलाने के लिए जेएमएम को बिना किसी शर्त सहयोग दे दिया था । कांग्रेस ने 31 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 17 जीती थी वहीं जेएमएम ने 41 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 25 सीटें जीत कर सरकार बना ली थी। अब कांग्रेस और जेएमएम मिलकर चुनाव लड़ना चाहते हैं पर सीटों के बंटवारें को लेकर तल्लखियां बढ़ती दिख रही हैं
कांग्रेस जेएमएम के साथ कोई भी समझौता नहीं करना चाहती
कांग्रेस 32-35 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है जबकि जेएमएम उसे 20 से ज्यादा सीटें नहीं देना चाहती और इसको लेकर कांग्रेस बहुत ज्यादा नाराज है। कांग्रेस को राज्य चुनावों में सफलता मिल रही है और ऐसे में कांग्रेस जेएमएम के साथ कोई भी समझौता करने की बजाय अपने दम पर चुनाव लडने का भी तैयार है पता यह तक चला है कि कांग्रेस ने अंदर ही अंदर कुल 81 सीटों पर लड़ने की तैयाऱी भी शुरू कर दी है। कांग्रेस जेएमएम से ज्यादा सीट इसलिए भी चाहती है कि अगर वो ज्यादा सीटें जीतने में कामयाब हो गई तो मुख्यमंत्री पद के लिए दावा ठोक सकती है। अब यह कोई नई बात नहीं होगी की मुखयमंत्री पद की चाह रखने के काऱण कांग्रेस जेएमएम से नाता भी तोड़ दे।
केजरीवाल को भी इस्तेमाल करके फेंक दिया
वैसे दोस्तों को धोखा देना कांग्रेस का कोई नया पैतरा नहीं है। इसका जीता जाता उदहारण केजरीवाल की सरकार आप है। दिल्ली में कांग्रेस कमजोर थी तो केजरीवाल का दामन थाम लिया ,वहीं पंजाब में अपनी थोड़ी मजबूत स्थिति को देखते हुए केजरीवाल से किनारा कर लिया ।
हरियाणा का उदाहारण फिर सामने है, कांग्रेस को पता था कि हरियाणा में उसकी स्थिति बहुत मजबूत है और ऐसे में उसने अंत समय तक आप को सीट बंटवारे के लिए लटकाय रखा और एकदम से पल्ला झाड़ लिया।
महाराष्ट्र में बैठकों के लिए राजनीतिक दोस्तों को समय नहीं दे रही
महाराष्ट्र में कांग्रेस के बदलते तेवरों से ना शरद पवार खुश है और ना ही उद्बव ठाकरे, शिव सेना नेता संजय राउत ने तो कांग्रेस पर तंज कसते हुए कह भी दिया था कि बैठकों के लिए कांग्रेस से तारीख पर तारीख मिल रही हैं।
यूपी में उपचुनाव को लेकर अखिलेश से भी किनारा किया
अगर यूपी को लें तो यहां होने वाले 10 उपचुनावों की सीट बंटवारे को लेकर दो लड़कों की जोड़ी टूटने के कगार पर खड़ी है। कांग्रेस ने साफ तौर पर अखिलेश से लड़ने के लिए 5 सीटें मांगी हैं जबकि अखिलेश एक या ज्यादा से ज्यादा दो सीटों पर हामी भर सकते हैं। यहां भी कांग्रेस किसी भी समय अखिलेश का साथ छोड़कर खुद अपने बूते पर लड़ने को तैयार बैठी है।
बंगाल में कोशिश की पर दाल नहीं गली
बंगाल में कांग्रेस ने ममता बनर्जी को भी आंख दिखाने की कोशिश की थी पर दीदी चूंकि बंगाल में बहुत मजबूत हैं इसलिए कांग्रेस की दाल नहीं गल पाई
केरल में दोस्ती निभाने की बजाय चुनाव संसद सीट पर लड़ गई
केरल में चुनाव प्रचार में राहुल गांधी लगातार सीपीआईएम को कोसते दिखाई दिए, उन्होंने ईडी मामलों को लेकर वहां के मुख्यमंत्री को भी केंद्र सरकार का दोस्त बता दिया। सारे अनुरोधों तो धता बता कर अपने सहयोगी उम्मीदवार के खिलाफ वायनाड से चुनाव लड़ा । कांग्रेस ने दोस्ती निभाने की बजाय यहां से संसद सीट जीतने को ध्यान में रखा
बिहार में सीट बंटवारे पर जेडीयू को आंखें दिखाए तो बड़ी बात नहीं
फिलहाल बिहार में अभी चुनाव की गूंज नहीं है पर कोई बड़ी बात नहीं होगी कि यहां भी कांग्रेस सीट बंटवारे को लेकर लालू यादव , तेजस्वी यादव को धोखा दे दे। क्योंकि बिहार में कांग्रेस अपनी स्थिति लगातार मजबूत करने की कवायद में लगी है और ऐसे में वह जेडीयू का साथ छोड़ने से भी परहेज नहीं करेगी।
बीजेपी से सबक ले राजनीतिक दोस्त जरूरी
लेकिन यहां कांग्रेस को जरूर बीजेपी से सबक लेना चाहिए जैसे बीजेपी ने सफलता के नशे में अपने दोस्तों की कद्र नहीं की और उनकी जीत का ग्राफ गिरता गया और अब उऩ्हें होश आया है और वो संभलना शुरू कर रहे हैं पर कांग्रेस उसी राह की ओर चल निकली है जिसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।