Bihar उपचुनाव नहीं जागी, लालू प्रसाद यादव की किस्मत मिले 1408 वोट

बिहार के भोजपुर जिले की तरारी विधानसभा में हुए उपचुनाव में कुल 10 उम्मीदवारों ने अपनी किस्मत आजमाई थी पर बाजी मारी बीजेपी उम्मीदवार विशाल ने। पर हैरानी यही है कि विशाल और बीजेपी की जीत की बात होने की बजाय यही चर्चा जोरो पर हैं कि यहां से चुनाव लड़ने उतरे लालू प्रसाद यादव को केवल 1408 वोट मिले।

अब समझ में आ गया की लालू प्रसाद यादव की इतनी चर्चा क्यों हो रही है, दरअसल नाम सुनकर बहुत से लोग चकरा जाते हैं पर जब असलियत पता चलती है तो हंसी ही आ जाती है। दरअसल यहां बात rjd मुखिया लालू प्रसाद की नहीं हो रही बलिक तरारी से उपचुनाव लड़ने उतरे independent candodaate लालू प्रसाद यादव की हो रही है। तरारी सीट पर चुनाव की घोषणा होने के बाद से ही यह नाम काफी चर्चा में रहा था। कारण था rjd के सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के नाम से समानता रखना । वैसे आपको बता दें कि कि निर्दलीय लालू प्रसाद यादव को लालू के नाम में समानता होने के बाद भी इस उपचुनाव में 5वां स्थान ही मिले 1500 से भी कम। समझ लेना चाहिए जनता बहुत ज्यादा समझदार हो गए है और वो अच्छी तरह से जानती है किसको वोट देना है और किसको वोट कर रही है। निर्दलीय उम्मीदवार लालू का यह सपना चूरचूर हो गया कि नाम के भ्रम में उन्हें जनता अच्छे खासे वोट दे देगी। आपको बता दें कि लालू प्रसाद यादव अब तक अलग-अलग विधानसभा क्षेत्र से कुल 26 बार चुनाव लड़ चुके हैं। पर अभी तक उन्हें कोई भी चुनाव जीतने में सफलता नहीं मिली पर हैरानी यही है कि बावजूद इसके उनका मनोबल कम नहीं हुआ है।

योगी की नाक के नीचे से कौन ले गया यह सीट किसने किया खेला

 

सीसामऊ सीट पर बीजेपी को लगातार छठी बार मिली हार से एक बड़ा सवाल खड़ा हो गया कि यहां हिंदूओं की बड़ी संख्या होने के बावजूद यह सीट समाजवादी पार्टी की झोली में कैसे चली गई। आपको बता दें कि इस सीट पर जीत हासिल करने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एड़ी चोटी का जोर लगाया था पर अफसोस कुछ काम नहीं आ सका। माना जा रहा है कि सीट पर शिवपाल यादव ने BJP का ‘खेल पूरी तरह से बिगाड़ने में अहम भूमिका निभाई है। उन्होनें एक तरफ सपा के गढ़ में तीन दर्जन से अधिक नुक्कड़, चौराहों व गलियों में सभाएं करने के साथ कमरा बैठकों से माहौल बनाया। वहीं दूसरी बार हिंदू बहुल क्षेत्रों में वोटों की सेंधमारी की। सिखों से लेकर बाकी समुदायों पर डोरे डाले, गुमटी गुरुद्वारा भी गए। उन्होंने अपने बड़े भाई स्वर्गीय मुलायम सिंह यादव की तरह रात में रुककर पूरी बाजी पलटने का काम किया। शिवपाल जानते थे कि मुस्लिम क्षेत्र में माहौल ठीक है, बस उन्होंने अपना पूरा जोर हिंदू वोटर्स को लुभाने में लगा दिया। शिवपाल के कारण यहां के हर क्षेत्र में सपा की साइकिल खूब दौड़ी। वहीं bjp की हार का कारण यहां से गलत प्रत्याशी के चयन और उसके बाद जनता से उसके रूखे व्यवहार को माना जा रहा है। दूसरा बीजेपी का टिकट ना मिलने से सौ से ज्यादा दावेदार बुरी तरह नाराज थे। फिर अपने वोट बढा़ने की जगह मुस्लिम वोटर को रोकने का प्रयास bjp पर भारी पड़ा रहा।

क्या इंडियन आर्मी में नेपाली गोरखाओं की भर्ती फिर शुरू होने की उम्मीद जागी

इंडियन आर्मी में क्या एक बार फिर नेपाली गोरखा युवकों की भर्ती शुरू होगी। चर्चाओं का बाजार इसलिए गर्म था कि इंडियन आर्मी चीफ उपेंद्र द्विवेदी ने ने हाल ही मे नेपाल की पांच दिवसीय यात्रा की है और माना जा रहा है कि तमाम बातों के साथ इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर भी जरूर चर्चा हुई होगी। पता चला है कि उनकी यात्रा के बाद भी नेपाली गोरखा सैनिकों की भर्ती का मामला सुलझा नहीं है। दरअसल नेपाल ने अग्निवीर योजना लागू होने के बाद अपने नागरिकों को भारतीय सेना में भेजने पर सहमति नहीं दी है । नेपाल इसे 1947 में त्रिपक्षीय भारत-नेपाल-ब्रिटेन समझौते की शर्तों का उल्लंघन बताता है।आपको बता दें कि भारतीय सेना में 43 गोरखा बटालियन हैं, जो कई गोरखा रेजिमेंटों में सेवा दे रही हैं। हर बटालियन में नेपाली गोरखा लगभग 60 प्रतिशत हैं। वर्तमान में भारतीय सेना में 32000 सैनिक नेपाल से आते हैं।भारतीय सेना में गोरखाओं के शामिल होने का लंबा इतिहास रहा है। गोरखा सैनिकों की बहादुरी के किस्से मशहूर रहे हैं, लेकिन नेपाल अब गोरखाओं को भारतीय सेना में भर्ती के लिए नहीं भेज रहा है। भारतीय सेना ने साल 2022 में अग्निपथ योजना लॉन्च की थी, जिसके चलते नेपाल ने ये फैसला किया था। भारत में कई डिफेंस एक्सपर्ट का मानना है कि नेपाली गोरखाओं का इंडियन आर्मी में ना होना एक तरफ आर्मी के लिए जबरदस्त नुकसान है और दूसरी तरफ अब चीन इन बहादुर गोरखाओं को अपनी सेना में लाने की कोशिश में जु़टा है यह भारत के लिए एक बड़ा खतरा है।पूर्व मेजर जनरल पी के सहगल मानते हैं कि नेपाली गोरखा हिमालयन एनवायरमेंट से अच्छी तरह वाकिफ होते हैं, यहां की सर्दी- गर्मी, पहाड उन्हें बिल्कुल परेशान नहीं करते और दुनियाभर में नेपाली गोरखा अपनी अलग तरह की लड़ाई लड़ने के लिए मशहूर हैं। भारत को समझना चाहिए कि अगर इस तरह की सेना चीन के पार पहुंच जाती है तो आने वाले समय में हिंदुस्तान के लिए बहुत ही नुकसानदेही हो सकता है

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