अदानी पर Congress का Double Standard
उधोगपति अदानी को लेकर congress का double standard सबको समझ में आ रहा है एक तरफ तो राहुल गांधी अदानी को लेकर मोदी पर जमकर आरोप लगाते हैं और दूसरी तरफ कांग्रेस शास्ति राज्यों के नेता खुलेआम अदानी से मिलते हैं , उनसे अपने राज्यों में investment भी करवा रहे हैं , लेकिन congress के इस दोहरे रवैये पर खुद विपक्षी गठबंधन ‘INDI में ही फूट पड़ गई है दरअसल Parliament के Winter Session में विपक्ष लगातार सरकार को अदाणी और मणिपुर पर केंद्र सरकार को घेरने का काम कर रहा है। लेकिन इस बीच दिलचस्प बात यह हुई की अदाणी मुद्दे पर विपक्षी गठबंधन INDIA में ही फूट पड़ती दिखाई दी । जहां कांग्रेस उद्योगपति गौतम अदाणी पर अमेरिका में कथित रिश्वतखोरी और धोखाधड़ी के मामले को जोर-शोर से उठा रही है, वहीं तृणमूल कांग्रेस (TMC) ने साफ कहा दिया की वह पश्चिम बंगाल को केंद्रीय निधि से वंचित किए जाने और मणिपुर जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करेगी। टीएमसी ने अदानी से अपने आप को पूरी तरह से अलग कर लिया और कांग्रेस को उसकी दोहरी नीती के लिए आईना दिखा दिया। कांग्रेस को खरी-खरी सुनाते हुए टीएमसी ने साफ कह दिया की वो ‘जनता के मुद्दों’ पर ध्यान केंद्रित करेगी और वह नहीं चाहती कि ‘एक मुद्दे’ पर कार्यवाही बाधित हो।
क्या राज ठाकरे ने निभाया खून का रिश्ता
कहते हैं ना खून का रिश्ता खून का ही होता है और चाहे राजनीतिक दुश्मनी क्यों ना हो, अगर नुकसान पहुंचाना है तो नेता अपने सगे-संबंधी को नुकसान ना पहुंचाकर दूसरों को ही सबक सिखा देते हैं। हाल ही में महाराष्ट्र चुनाव में मुंबई में यही देखने को मिला। मुंबई में राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना चाहे अपना खाता नहीं खोल पाई। खुद राज ठाकरे के बेटे अमित ठाकरे माहिम से तीसरे पायदान पर रहे, पर उनके उम्मीदवारों की मौजूदगी से उद्धव ठाकरे यानी उनके भाई की पार्टी की मौज हो गई। जी हां पता चला है कि करीब 6 सीटों पर राज ठाकरे के उम्मीदवारों ने करीब 6 हजार वोट हासिल किए और इसी कारण शिंदे सेना के कैंडिडेट कुछ हजार वोटों के अंतर से चुनाव हार गए। ऐसा ही हाल चार अन्य सीटों पर रहा, जहां राज ठाकरे के उम्मीदवारों को पड़े वोटों ने महाअघाडी गठबंघन के उम्मीदवारों की जीतने में मदद कर दी। राज ठाकरे ने ने मुंबई की 36 में से 25 सीटों पर कैंडिडेट उतारे थे। पार्टी ने बीजेपी के खिलाफ 10 और शिंदे सेना के खिलाफ 12 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे । यही माना जा रहा है कि शायद एक प्लानिंग के तहत ऐसा किया गया क्योंकि एकनाथ शिंदे और राज ठाकरे दोनों ने ही हिंदुत्व और मराठी मानुस पर दांव खेला था और राजठाकरे के भगवा प्रेम से शिवसेना-बीजेपी को नुकसान हुआ।