बिहार में राजनीती दिलचस्प होती जा रही है क्योंकि केंदीय मंत्री और लोकजनशकित पार्टी के मुख्यिा चिराग पासवान ने घोषणा कर दी है कि उनकी पार्टी बिहार में होने वाले विधानसभा चुनावों में बढ़चढकर लेगी और इसके साथ ही चर्चाओं का बाजार गर्म है कि जिन सीटों पर चिराग चुनाव लड़ने का मन बना रहे हैं वह बिना JDU यानी नीतीश कुमार के सहयोग से ना लडी जा सकती है ना जीती जा सकती हैं। आपको बता दें कि 2020 मे चिराग पासवान ने 137 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे और केवल नौ सीटों पर पार्टी के उम्मीदवार दूसरे नंबर पर रहे थे और चिराग पासवन इस बार इन्ही सीटों पर लड़ने का मन बना रहे हैं , पर पेंच यही फंसा है क्योंकि इनमें से ज्यादाचर सीटों पर JDU के उम्मीदवार उतरते हैं ऐसे में जाहिर है कि बिना नीतीश कुमार की सहमति के ये सीटे चिराग पासवान की पार्टी को मिल नहीं सकती और जोर लगाकर ले भी ली तो बिना JDU कार्यकर्ताओं के सहयोग से जीतने की संभावना भी जीरो ही रहेगी , अब देखना यही है कि क्या नीतीश कुमार चिराग पासवान को ये सीटे देते हैं या नहीं , वैसे चर्चाएं ये भी है कि पहले नीतीश के कट्टर दुश्मन माने जाने वाले चिराग बीजेपी गठबंधन का हिस्सा बनने के बाद नीतीश कुमार से नजदीकियां बढ़ाने की लगातार कोशिश कर रहे हैं और इसका परिणा यही निकाला जा रहा है कि चुनाव लडने और इन सीटों को पाने की खिचडी बहुत पहले से ही पकनी शुरू हो गई थी।

लालू यादव अचानक क्यों मेहरबान हुए औवेसी पर

कांग्रेस के साथ बिहार में rjd यानी लालू की पार्टी का कुछ ठीक नहीं चल रहा है, दोनों दलों के नेता जिस तरह से एक दूसरे के खिलीफ बयानबाजी करते रहते हैं उससे लगता है कि दोनों दलों का आपस में विश्वास ख्तम हो गया है और इसकी बड़ी वजह है वोटर्स का इधर-उधर होना। जहां पहले बिहार में यादव और मुसिलम वोटर्स पर rjd का पूरा कंट्रोल रहता था वहीं अब मुस्लिम वोट बिखर कर कुछ कांग्रेस खेमे में जा पहुंचा है और प्रशांत किशोर की पार्टी भी इन्हें रिझाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रही। और चर्चाएं हैं कि इसी कारण rjd बिहार में एआइएमआइएम के साथ गठबंधन करने की फिराक में है , इससे दोनों को ही फायदा होगा लेकिन सीटों के बंटवारे को लेकर कहीं ना कहीं बात फंसी लगती है। आपतो बता दें कि बिहार की 40 सीटों पर मुस्लिम मतदाता उम्मीदवार को जीताने में निर्णायक भूमिका अदा करते हैं। दूसरी तरफ मुस्लिम वोटर्स को लुभाने के लिए कांग्रेस के पास इस समय दो मुसलमान सांसद भी हैं जिसपर कांग्रेस जरूरत से ज्यादा भरोसा कर रही है। और माना जा रहा है इसी कारण महागठबंधन में बड़े भाई की भूमिका निभाने वाली rjd काफी विचलित हो चुकी है और अंदर ही अंदर औवैसी के साथ गुपचुप कर रही है। आपको बता दे कि पिछले विधानसभा चुनाव में rjd को सीमांचल में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी के कारण बहुत नुकसान हुआ था यह बात अलग है कि बाद में उनके पांच विधायको में से चार को rjd ने तोड़ लिया था। एआइएमआइएम के एकमात्र विधायक अख्तरूल ईमान हैं , जो पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भी हैं। वही rjd के साथ मिलकर लड़ने के लिए काफी जोर लगा भी रहे हैं।

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