नीतीश बने उपराष्ट्रपति नाम पर जबरदस्त चर्चा पर पीछे छुपा बड़ा खेला

माना जा रहा है कि उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के बाद बीजेपी चाणक्य यानी अमित शाह का दिमाग तेजी से चल रहा होगा, बिहार में चुनाव हैं और जिस तरह से सर्वे बता रहे हैं कि नीतीश कुमार की लोकप्रियता काफी कम हुई है, फिर बीजेपी के कुछ कद्दावर नेता भी बिहार में अच्छे प्रदर्शन के बाद बीजेपी का मुख्यमंत्री ना बनने पर आजकल मुखर हो रहे हैं और इन सब के बीच चिराग पासवान का बिहार की राजनीती में जबरदस्त एक्टिव होना सबसे ज्यादा नीतीश कुमार के लिए परेशानी खड़ी कर सकता है, अगर बीजेपी बिहार में अपना मुख्यमंत्री बनाती है तो चिराग को उपमुख्यमंत्री पद सौंप कर उन्हें साथ रखा जा सकता है, बिहार में चल रही ये राजनीती उठापठक बीजेपी के लिए कतई ठीक नहीं हैं पर इन सब बढ़ती समस्याओं का हल एक चुटकी में निकल सकता है अगर नीतीश को बिहार से निकालकर उपराष्ट्रपति का पद सौंप दिया जाए और इसकी चर्चाएं भी शुरू हो चुकी हैं जी हां भाजपा विधायक हरिभूषण ठाकुर बछौल ने नीतीश कुमार को उपराष्ट्रपति बनाने की मांग भी कर डाली है , उन्होंने नीतीश का नाम बड़ी मजबूती से उठाते हुए कहा कि नीतीश कुमार के पास केंद्र और राज्य की राजनीति का 20 साल का अनुभव है और वो इस पद के लिए उपयुक्त रहेंगे। अब यह तो समय बताएगा कि यह चाणक्य की एक रणनीती के तहत हो रहा है या अचानक ही ऐसा माहौल बन गया।
Maharashtra —उद्वव ठाकरे जल्द लुढ़क सकते

महाराष्ट्र में एक तरफ भाषा और जाती की आड़ लेकर ठाकरे भाई यानी उद्वव और राज ठाकरे अपनी ठंड़ी राजनीतिक रोटियां गर्म करने की कोशिश कर रहे हैं और दूसरी तरफ एक समय में उद्वव के खास और अब एकनाथ शिंदे के साथ गए संजय निरुपम ने एक बड़ा दावा करते हुए महाराष्ट्र की राजनीती में हलचल कर दी। संजय निरूपम ने कहा कि उद्धव ठाकरे की कार्यशैली से खुद उनके नेता तंग आक चुके हैं और जल्द ही उनके कई विधायक पार्टी को अलविदा कह देंगे। यही नहीं संजय निरूपम ने यह भी बताया कि उद्धव सेना के 70 से 75% सांसद और विधायक पार्टी छोड़ने की तैयारी में हैं। संजय निरूपम लगातार उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे को निशाना बना रहे हैं, संजय ने कहा है कि एक तरफ उद्धव ठाकरे ने सत्ता के लिए कांग्रेस के साथ गठबंधन कर बालासाहेब के विचारों के विरुद्ध कदम उठाया है। वहीं, राज ठाकरे की हिंदी और हिंदुत्व विरोधी भूमिका भी बालासाहेब के मूल विचारों के खिलाफ है और ऐसे में साफ है कि महाराष्ट्र की जनता भी इन दोनों भाईयों को बालासाहेब ठाकरे ब्रांड नहीं मानती है, संजय निरूपम ने एकनाथ शिंदे को ही ठाकरे का वारिस बताया और कहा कि वही बालासाहेब के तेजस्वी विचारों को आगे बढ़ा रहे हैं। लगता है संजय निरूपम पूरी तरह से भरे बैठे थे और हाथ की हाथ आदित्य ठाकरे को भी आड़े हाथों ले लिया और कहा कि विधान भवन की सीढ़ियों पर बैठकर सरकार के मंत्रियों का मजाक उड़ाना ठाकरे ब्रांड नहीं हो सकता।
