Rahul की बिहार यात्रा कहीं हरियाणा जैसा रिजल्ट ना लाए

राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा 16 दिनों में 23 जिलों को कवर किया और 1300 किलोमीटर से अधिक की यात्रा की है। यह बात तो सब जान ही गए हैं लेकिन इस यात्रा में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण क्या था उसपर किसी का ध्यान नहीं गया है, जी हां राहुल ने इस यात्रा में कुछ ऐसा रूट लिया, ऐसे इलाके कवर किए जहां पहले वोटर कांग्रेस को वोट करते थे पर पिछले कुछ सालों से कांग्रेस को छोड़ दूसरे दलों को अपना लिया था, तो राहुल ने एक सही रणनीती के तहत पूरे जोशीले, आक्रामक अंदाज में इन वोटर से सीधा संवाद किया और पूरी कोशिश की ये वोटर इस बार वापस कांग्रेस को ही वोट करें। इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण है राहुल ने अपनी यात्रा के दौरान उन विधानसभा क्षेत्रों में अपना संवाद और संदेश जनता तक पहुंचाया जहां पर आधे से अधिक पर अभी एनडीए का कब्जा है।यानी यहां पर बीजेपी, jdu और चिराग पासवान पार्टी के नेताओं का राज है। यही नहीं राहुल ने अपने भाषणों में कांग्रेस के परंपरागत वोट बैंक यानी अल्पसंख्यक, अनुसूचित जाति, स्वर्ण वर्ग के साथ साथ पिछड़ा वर्ग पर भी विशेष ध्यान दिया क्योंकि बिहार में इन सभी जातियों का combination ही जीत का रास्ता तय करता है,। इन सभी बातों को देखते हुए साफ है कि राहुल ने अपनी यात्रा एक बहुत ही सोची समझी रणनीती के तहत शुरू और खत्म की है, जिसका मकसद एनडीए के मजबूत किले में सेंध लगाना था। और माना भी यही जा रहा है कि इस यात्रा से बिहार में कांग्रेस के नेताओं से लेकर कार्यकर्ताओं में एक नया जोश आ गया है और बरसों से शांत , साइड लाइन हुई congress पूरे जोश से मैदान में उतरने की कोशिश कर रही है। पर इसके बाद राजनीती गलियारों में बड़ी चर्चा बन रही है कि क्या राहुल की यह यात्रा सचमुच कांग्रेस के बिखरे वोटर को दोबारा एकजुट कर पाएगी या बिहार का अंजाम भी हरियाणा की ही तरह होगा, क्योंकि कुछ समय पहले ही राहुल के साथ प्रियंका ने भी हरियाणा में जमकर यात्रा की थी लोगों से face to face मिले और उनकी सभाओं में भीड़ की भीड़ उमडी पडी देखी गई लेकिन जब परिणाम आए तो ना केवल कांग्रेस के लिए बड़ी निराशा थी बलिक राहुल के लिए भी बड़ी embarrassment क्योंकि माना यही गया जो भीड़ उनकी सभाओं में इक्टठी हुई वो सिर्फ राहुल को देखने पहुंची , राहुल को ना उन्होंने सीरियसली लिया और ना ही उनके चेहरे को देखकर वोट किया और शायद यही वड़ी वजह रही हरियाणा में उत्साहित कांग्रेस को जबरदस्त हार का सामना करना पड़ा। अब हरियाणा जैसे हालात बिहार में भी बन रहे हैं, राहुल को सुनने उनसे मिलने -देखने के लिए तमाम भीड़ इकट्ठी तो हो रही है पर क्या यह भीड़ वोटों में तबदील होगी यह आने वाला समय ही बताएगा और बिहार की हार या जीत राहुल की पर्सनल हार-जीत मानी जाएगी।
क्यों हर दल की नजरें हैं Bihar की इन सीटों पर

बिहार चुनाव सिर पर आ ही गए हैं और तमाम पार्टियां यहां पर जीत हासिल करने कि लिए जोर शोर से मैदान में उतर चुकी हैं और इन सब के बीच कुछ सीटों को लेकर तमाम दल बहुत ज्यादा मेहनत कर रहे हैं क्योंकि ये वो सीटे हैं जो किसी भी दल को जीत के करीब ले जा सकती है, जी हां आपको बता दे कि पिछले विधानसभा चुनावों में तीन दर्जन से अधिक वो सीटें थी जहां पर हार जीत का मार्जन बहुत ही कम अंतर यानी तीन हजार और उससे भी कम था। वोटों के अंतर से हुआ। और आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि सबसे कम 12 वोटों के अंतर से हिलसा में JDU नेता कृष्ण मुरारी शरण जीते थे, इसी तरह सिमरी बख्तियारपुर सीट पर विकासशील इंसान पार्टी के मुकेश सहनी केवल 1759 वोटों से हार गए थे, यह लिस्ट काफी लंबी है और इस लिस्ट में महागठबंधन के 17 नेता एक निर्दलीय और एनडीए के 19 नेता शामिल हैं जो बहुत ही कम वोटों से हारे या जीते थे । इसलिए इस बार इन सीटों पर हर पार्टी बहुत ज्यादा ध्यान दे रही हैं चूंकि हार जीत का अंतर बहुत कम रहा था इसलिए हर दल को उम्मीद है कि जरा सी ज्यादा मेहनत इन सीटों पर उन्हें विजय दिलवा सकती है।
