अखिलेश दोस्ती का खातिर अपना राजनीतिक भविष्य खतरे में डाल दिया

DMK यानी द्रविड़ मुनेत्र कड़गम ने देश के और अन्य राजनीतिक दलों के साथ मिलकर लोकसभा के स्पीकर ओम बिरला को एक पिटीशन दिया है। जिसमें उन्होंने मद्रास हाई कोर्ट के एक जस्टिस जस्टिस रामास्वामी के खिलाफ इंपीचमेंट की अर्जी लगाई है। उसमें लगभग 100 लोगों ने दस्तखत किए हैं। जिसमें डीएमके के अलावा अन्य राजनीतिक दल हैं। समाजवादी पार्टी है, कांग्रेस है। उसके अलावा राष्ट्रवादी जनता दल शरद पवार वाली इस तरह से आम आदमी पार्टी है। तो इस मामले में देखें तो डीएमके तो समझ में आता है कि यह प्रदेश का मामला है। वहां पर एक मंदिर और मजार का मामला है। लेकिन समाजवादी पार्टी को इसमें कूदने का मामला समझ में नहीं आ रहा है। समाजवादी पार्टी जिसका ना वोट बैंक तमिलनाडु में है ना जिसका कोई आधार वहां पर है। वो इस मामले में क्यों कूदी है और क्यों वो कर रही है इसको लेकर के बहुत रिसेंटमेंट है। विशेष रूप से उत्तर प्रदेश में उनका मतदाता इस बात को लेकर के बहुत नाराज है कि समाजवादी पार्टी इस तरह की से क्यों कर रही है और क्यों हर वैसा मामला जो हिंदू बैशिंग का होता है या हिंदू इंटरेस्ट के खिलाफ जाता है उसमें समाजवादी पार्टी कूद पड़ती है। क्योंकि यहां एक दरगाह का मामला है तो दरगाह का मामला आते ही समाजवादी पार्टी ने अपना इंटरेस्ट शो कर दिया है और पूरे मामले के समर्थन में खड़ी हो गई है। चूंकि मुस्लिम अपीज़मेंट समाजवादी पार्टी की के राजनीतिक विचारधारा का एक हिस्सा है। इसलिए समाजवादी पार्टी इस पूरे मामले मे कूदती हुई नजर आ रही। लेकिन क्या इस मामले का विरोध तमिलनाडु के मुसलमानों ने किया है या बाकी मुसलमानों का इससे कोई लेना देना है। ऐसा बिल्कुल नहीं है। लेकिन निश्चित तौर पर ये वहां के हिंदुओं के इंटरेस्ट के खिलाफ है। इस बात को लेकर के खबरें आ रही हैं कि तमिलनाडु का हिंदू पोलराइज हो रहा है। वहां पर लगभग 88% हिंदू हैं। हालांकि वहां जाति में ज्यादा बटे हुए हैं। उत्तर प्रदेश और बिहार से ज्यादा जाति जातियों में बटे हुए हैं।

अयोध्या मूवमेंट और तमिलनाडु बाबरी मूवमेंट कहना शुरू कर दिया


यह मामला निश्चित तौर पर बहुत हाईलाइट हो रहा है। लोगों तक पहुंच रहा है और यहां तक कि लोगों ने इसको अयोध्या मूवमेंट कहना शुरू कर दिया है। तमिलनाडु का बाबरी मूवमेंट कहना शुरू कर दिया है। लेकिन जो अखिलेश का मामला है, अखिलेश क्यों इस तरह के मामले में कूद पड़े हैं? सिर्फ मुसलमानों को रिझाने के लिए, मुसलमानों को खुश करने के लिए तो अखिलेश इस पूरे मामले में क्यों पड़ गए हैं। सीधे सिर्फ सिर्फ इतना सा मामला है कि अखिलेश को इस मामले में कूदने से उनको उत्तर प्रदेश के मुसलमानों का खुल के समर्थन मिलेगा। 2027 के चुनाव के मद्देनजर इस तरह की क्सरसाइज में या इस तरह के मामले में अखिलेश अपने आप को शामिल करते हुए लग रहे हैं। लेकिन इसका नुकसान अखिलेश को इस स्तर पर हो सकता है क्योंकि वो पहले से ही उनके बारे में ऐसी बात कही जाती है कि वह मुस्लिम अपीज़मेंट करते हैं और मुस्लिम अपीज़मेंट के कारण वो किसी हद तक जा सकते हैं। हिंदू विचारधारा को, हिंदू आइडियोलॉजी को, हिंदू टेंपल्स को, हिंदू प्रतीकों को, हिंदू धर्म ग्रंथों को जिस तरह से उनके नेता और वो आलोचना करते रहे हैं। ये उसी का एक जीता जागता उदाहरण दिख रहा है। अब इसमें क्या वो सचमुच इसका फायदा मुसलमानों के बीच उठा पाएंगे? इसमें कोई दो राय नहीं है। इसलिए कि मुसलमानों के पास उत्तर प्रदेश में कोई और ऑप्शन नहीं है।

UP में ओबीसी हिंदू लगातार समाजवादी पार्टी से दूरी बना रहा है

लेकिन क्या इसको करके वो हिंदुओं का वोट बचा पाएंगे? बहुत बड़ी संख्या में ऐसे ओबीसी हिंदू समाजवादी पार्टी से इन्हीं सब कारणों से लगातार दूरी बनाना शुरू कर दिए हैं। लगातार उनसे दूर जा रहे हैं और अह अभी भी समाजवादी पार्टी इसी गलतफहमी में है कि 2024 के चुनाव में जिस तरह का रिणाम मिला है , वो वैसा उनको विधानसभा में मिल सकता है। लेकिन 2014 की 2024 की परिस्थितियों में और अभी की परिस्थितियों में अंतर है। 2024 में संविधान बदलने और आरक्षण खत्म करने जैसे मुद्दे थे उसको लेकर के बहुत सारी जो मिसगिविंग्स थी जो गलत सूचनाएं थी उसको काउंटर किया जा चुका है और एंटी हिंदू एक नैरेटिव जो समाजवादी पार्टी पर चिपक गया है वो उससे दूर करना मुश्किल होगा। मुसलमानों का वोट तो उनको मिलता ही है और लेकिन वह इस उससे मुक्त होते हुए नहीं दिख रहे हैं। मुसलमान प्रो मुसलमान एपीज़मेंट एंटी हिंदू वाली जो छवि है उसको और मजबूत करते हुए अखिलेश नजर आ रहे हैं। जिस तरह से उन्होंने जस्टिस रामस्वामी के एपीजमेंट के समर्थन में वो खड़े हुए हैं। जो चुनाव में क्या गुल खिलाया गया ये तो आने वाला समय बताएगा। पर लग रहा है दोस्ती की खातिर अखिलेश अपना राजनीतिक भविष्य दांव पर लगा रहे हैं।

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