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केरल की बात करना बहुत जरूरी है क्योंकि केरल में पहली बार ऐसा हुआ है कि बीजेपी का मेयर चुना गया है त्रिवेंद्रम से और सबको पता है कि त्रिवेंद्रम में एमपी कौन है? एमपी है शशि थरूर और सब मान रहे हैं कि कहीं ना कहीं एक बड़ा खेला हुआ है और कहीं ना कहीं शशि थरूर का इसमें सहयोग रहा है। तमिलनाडु में भी राजनीती गर्म है, इन्ही पर चर्चा कर रहे हैंवरिष्ठ पत्रकार विनोद शुक्ला जी से

Ques – केरल में बीजेपी की ऐतिहासिक जीत क्या इसको शशि थरूर के सहयोग से जोड़ कर देखा जा सकता है?

Ans – शशि थरूर भारतीय जनता पार्टी जॉइन करते हैं या नहीं करते हैं यह तो अभी पूरी तरह से कहना ठीक नहीं होगा लेकिन जिस तरह की वो उनकी बातें हैं उनकी गतिविधियां है उसको देख के लग रहा है कि उनका भारतीय जनता पार्टी के साथ नजदीकियां बढ़ रही है। यहां तक कि जो अभी लोकल बॉडी इलेक्शंस हुए हैं उसमें जो तिरुवनंतपुरम जिसको ट्रेंडम भी कहते हैं, वहां कुल 110 एक सीटें हैं काउंसिल की उसमें भारतीय जनता पार्टी को 50 सीटें मिली हैं। केरल में ये पहली बार ऐसा होगा कि किसी काउंसिल में भारतीय जनता पार्टी का कोई बड़ा रोल होगा। बड़ी भूमिका होगी और मेयर की भूमिका बड़ी भूमिका होती है। तो इसमें कहा यह जा रहा है कि इस पूरे बदलाव में शशि थरूर की भूमिका भी है। उसके अलावा वहां की लोकल पॉलिटिक्स है। लोकल पॉलिटिक्स में जिस तरह से बातें हो रही है, बहुत सारी चीजें निकल कर के आ रही है। अब इसमें केवल ऐसा नहीं है कि केवल ट्रेंडम में ही भारतीय जनता पार्टी ने बढ़िया परफॉर्म किया है। दो तीन और बड़े शहर है जहां पर भारतीय जनता पार्टी या तो सेकंड रही है या कुछ बहुत अच्छा कर पाई है तो लेकिन ट्रिवेंड्रम में क्लियर कट मेजॉरिटी है इसलिए ट्रिवेंड्रम की चर्चा हो रही है, फिर यहां कांग्रेस जो कमजोर थी मजबूत होती हुई दिख रही है लेफ्ट कमजोर हुआ है तो ये ये कुल मिलाकर के पहले दोनों में आपस में बंटवारा हो जाता था। लेकिन एक बार थर्ड प्लेयर के रूप में बीजेपी का आना वो न्यूज़ बना है,

ques – क्या लग रहा है कि South में BJP अपने पंख फैला रही है , तमिलनाडु में अन्ना मलाई बहुत ही अग्रेसिव होकर काम कर रहे हैं, वहां पर सीट नहीं मिली फिर भी बीजेपी का वोट शेयर काफी बढ़ा , उसके ऊपर जो ये जो नया मुद्दा सामने आ गया है स्वामीनाथन का इससे लग रहा है कि हिंदू लॉबी जो है वहां पे एकजुट हुई है और जो आने वाला इलेक्शन है उसमें बीजेपी को बहुत फायदा होगा?

Ans – केरल और तमिलनाडु लगभग एक जैसी पॉलिटिक्स होती है। लेकिन डेमोग्राफी का बड़ा अंतर है। जैसे केरल में अगर डेमोग्राफी के दृष्टि से देखें तो हिंदू लगभग 55% के आसपास है। मुस्लिम 24% के आसपास है। 18% किश्चन है, तो भारतीय जनता पार्टी को चुनाव में जीतने के लिए और सपोर्ट चाहिए होगा और इसीलिए वहां पर भारतीय जनता पार्टी क्रिश्चियन पॉलिटिक्स क्रिश्चियंस को भी जोड़ने का काम करती है। तमिलनाडु में उल्टा मामला है। तमिलनाडु में लगभग 88% हिंदू है। ये अलग बात है कि वहां पर जाति के नाम पर डिवीजन है। आरोप ये लगता है कि नॉर्थ के लोग ही जाति के नाम पर डिवाइड है। यूपी, बिहार पर सबसे ज्यादा लगता है कि यहां पर जाति की राजनीति होती है। लेकिन यहां से ज्यादा जाति जो है वो तमिलनाडु में है। बावजूद इसके कि वहां 88% हिंदू हैं। वहां पर हिंदू के नाम पर राजनीति नहीं होती है और ये जो पॉलिटिक्स डीएमके वाली होती है एंटी नॉर्थ इंडियन एंटीआरएन इस तरह की एक राजनीति वहां की जाती है। अब ये जो मामला है जस्टिस जे आर स्वामीनाथन वाला जिनके खिलाफ इंपीचमेंट का मोशन दिया गया है लोकसभा में तो अब इसको लेकर के राजनीति हो रही है। डीएमके उनके मंदिर को लेकर दिए गए एक फैसले का विरोध कर रही है पर दूसरी तरफ खुद dmk चीफ एक हज हाउस के उद्घाटन में पहुंच जाते हैं, मुख्यमंत्री का बेटा लगातार सनातन के सर्वनाश की बात करता है। दूसरी तरफ़ वहां पर बीजेपी जो पहले के चुनाव में यहां 2- 3% वोट पाती थी पर अकेले लड़कर यही 3% वाला वोट बढ़कर 12% हुआ है। 12% वोट साइज़बल नंबर होता है। बहुत सारे जगहों पर भारतीय जनता पार्टी 12% वोट से सीटें जीती रही है अलायंस में। तो एक बार फिर अमित शाह ने वहां अलायंस किया है और अगर ये 12% वोट बढ़ाने में ये कामयाब हो जाते हैं और जिस तरह से वहां हां हिंदू जागृत होता दिख रहा है कास्ट बैरियर वहां टूट रहा है वो एक नई राजनीति वहां दिख रही है और ऐसा दिख रहा है और अगर इसी तरह की गतिविधियां गतिविधियों में कांग्रेस क्योंकि वहां अलायंस पार्टनर है डीएमके के साथ इन्वॉल्व रहती है तो कहीं ऐसा ना हो कि तमिलनाडु भी जो विपक्ष तथाकथित है उसके हाथ से निकल जाए। वहीं कर्नाटक में जो हिंदू मतदाता है या आरएसएस है वो बहुत मजबूत है। वहां दो बार तीन बार सरकार बन चुकी है। पर अपने बूते पर नहीं बना पाई यह बात अलग है पर सिंपल मेजॉरिटी से एक-दो सीट कम रही है। वहीं तेलंगाना में लगभग आधा वोट आधी-आधी सीट कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के बीच बंटवारा हुआ है। मतलब तेलंगाना में भारतीय जनता पार्टी मजबूत स्थिति में है। आंध्र प्रदेश में अलायंस के साथ सरकार में है। और आंध्र प्रदेश में अह जिस तरह से वहां के उपमुख्यमंत्री लगातार हिंदुत्व की बात कर रहे हैं। तो साउथ का जो पूरा का पूरा इलाका है वहां पर हिंदुत्व की राजनीति बहुत जोरों से हो रही है और उसको लोग एक्सेप्ट कर रहे हैं। इन चारों प्रदेशों में उड़ीसा में बीजेपी की ऑलरेडी सरकार हो गई। हालांकि हालांकि उड़ीसा को साउथ नहीं ईस्ट में ज्यादा माना जाता है। तो अगर इस पूरी की पूरी राजनीति देखें तो south के राज्यों में बीजेपी का दबदबा लगातार बढ़ा है।

Ques – अब हम बात करते हैं वेस्ट बंगाल की और वेस्ट बंगाल की जब बात करते हैं तो एक चर्चा जो चल रही है उसका ज्यादा जिक्र नहीं हुआ कि नितिन नबीन जी को चुनकर के प्रेसिडेंट बनाया गया। बहुत सारे इसके पीछे रीज़ंस दिए गए हैं।पर कायस्थ जाती पर चर्चा नहीं हुई , बिहार-यूपी में कायस्थ 1% से भी कम है। लेकिन पश्चिम बंगाल में 13 फीसदी के लगभग है तो क्या पश्चिम बंगाल में इलेक्शन को देखते हुए एक कायस्थ को सामने लाया गया है?

 

Ans  – नितिन नबीन के सिलेक्शन का एक बड़ी प्रक्रिया थी 20 इस तरह के लोगों को छांटा गया था 20 में से पांच के शॉर्ट लिस्ट हुए पांच में से इनको सिलेलेक्ट किया गया बाकायदा एक प्रक्रिया के तहत वो हुआ वो बीजेपी संघ करती रहती है अब समझिए कि उत्तर प्रदेश में 8% वाला यादव और 12% वाला ब्राह्मण डोमिनेट करता है पॉलिटिक्स। 14% वाला यादव बिहार की पॉलिटिक्स होता है और वही मुख्यमंत्री बनता रहा है लालू प्रसाद। 13% वाला जो कायस्थ है क्या वो डोमिनेट करेगा या उसकी क्या भूमिका होगी ये बहुत महत्वपूर्ण है उसको समझने की जरूरत है और मुझे लगता है कि इसको ध्यान इसको भी ध्यान में रखा गया है और बहुत सारे reasons भी हैं पर ये कदम ममता बनर्जी को तोड़ बन सकता है। ममता बनर्जी हमेशा घूम फिर करके बंगाली आइडेंटिटी पर आती है और वो इमोशनल कार्ड खेलती है। अबकि वहां चुनाव जीतना है तो बीजेपी को कोई ना कोई ऐसा रास्ता निकालना होगा कि उनके जो इमोशनल कार्ड है पश्चिम बंगाल के लोगों को जिस तरह से वो हां उसका कोई काउंटर खोजना होगा। तो नितिन नबीन का सरनेम सिन्हा है। सिन्हा पश्चिम बंगाल में भी बहुत लोगों का सरनेम होता है।तो कुल मिलाकर के कहने के लिए ये बहुत ऐसा लगेगा कि नही इसका कोई प्रॉब्लम लेकिन इस तरह की चीजें मैटर करती है। लोग आइडेंटिफाई करते हैं तो नितिन नबीन का लाना , यह एक सोचा समझा प्लान है।

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