is Any protest-strike hampers citizens right-दिल्ली में रोजाना होते हैं लगभग 23 धरने-प्रदर्शन-बंद
लोकसभा चुनाव पास हैं और पार्टियों ने टिकट बांटने शुरू कर दिए, राजनीति सरगर्मियां जोरों पर हैं और इन सब के बीच किसान आंदोलन बिल्कुल साइड लाइन सा होता दिख रहा है, लगता है ना तो सरकार को इसको चिंता है और ना ही किसानों को इस बात की परवाह। लेकिन इन सब के बीच आम जनता पूरी तरह से पिस रही है, खासतौर पर वो लोग जो अभी भी किसान आंदोलन के चलते घंटों-घंटों जाम में फंसे रहते हैं ।
आज कुछ ऐसी बातों पर चर्चा करते हैं जो देश के आम नागरिक हमारे किसानों और सरकार से जुड़ी हुई हैं और जिन पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया।
कोई भी आंदोलन आम आदमी के मौलिक अधिकारों का हनन है क्या ?
सबसे पहले आंदोलन के कारण देश के नागरिक को होने वाली परेशानियों की बात करते हैं। कम ही लोगों को यह पता होगा कि देश की राजधानी दिल्ली में रोजाना लगभग 23 धरने, प्रदर्शन, बंद, रैलियों या राजनीतिक बंद का आयोजन होता है ऐसे में समझा जा सकता है कि सड़कों पर कहीं ना कहीं यातायात की समस्या रहती है । और इससे परेशान होने वाले सिर्फ दिल्लीवासी नहीं बलिक सैंकड़ों-हजारों वो लोग भी होते हैं जो दिल्ली के आसपास रहते हैं ,
दिल्ली में नौकरी करते हैं या व्यापार करने आना पड़ता है। यही नहीं बंद, प्रदर्शन के कारण वो लोग भी सफर करते हैं जिन्हें किसी जरूरी काम से जाना है, स्कूल जाना है , अस्पताल जाना है या नौकरी के लिए कोई मीटिंग पर जाना है, कहने का मतलब है कि एक वर्ग चाहे वो कोई भी हो जब हड़ताल करता है, बंद करता है तो कईं तरह से उसका खामियाजा आम नागरिक को ही भुगतना पड़ता है और ऐसे में यदि यह कहा जाए कि किसी भी तरह का बंद आम आदमी के आसानी से बाहर निकलने, काम पर जाने, शिक्षा स्वास्थय की सेवाएं लेने के मौलिक अधिकार का हनन करता है तो क्या गलत है।
क्या है msp और किसान और सरकार का क्या है तर्क
अब किसान आंदोलन का सबसे बड़ा मुद्दा है msp यानी minimum support price के लिए कानून बनने । देश में msp को वर्ष 1965-66 में लाया गया, इसका मकसद था किसानों को देश में अन्न की कमी पूरी करने के लिए कुछ फसलों को उगाने के लिए प्रोतसाहित करना।
सरकार का तर्क है कि यदि किसान की पूरी उपज सरकार msp पर खरीदे तो सलाना 10 लाख करोड़ रूपए खर्च करने होंगे अभी 23 फसलों को msp के दायरे में रखा हुआ है जिपपर सलाना 2 लाख 28 करोड़ का खर्च आता है। यदि इसे बढ़ाया जाता है तो राष्ट्रीय कोष पर दबाव बढ़ेगा, शिक्षा, स्वास्थय पर बजट कम करना पड़ेगा।
यही नहीं अनाज रखने के लिए भंडारों की व्यवस्था नहीं हुई तो बहुत सा अनाज बरबाद होगा, किसान msp के कारण एक ही फसल उगाएगा और भूमि का उर्वरकता पर असर पड़ेगा। यही नहीं सरकार का यह भी कहना है कि अगर msp कानून बनता है तो अचानक महंगाई बढ़गी और देश की जनता को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा।
सरकार का यह भी कहना है कि अब देश अनाज के उत्पादन में बहुत ज्यादा आत्मनिर्भर है, पहले जैसी स्थिति नहीं है और msp अब प्रेकिटकल नहीं है।
दूसरी तरफ msp के पक्ष में किसानों के अपने तर्क हैं कि खेती बहुत जोखिम का काम हो गया है, मौसम की मार, फसल खराब होना, बेचने में समस्या के चलते इसपर फिक्स मूल्य होना चाहिए। सबसे अहम खेती किसानों के लिए फिक्स आय नहीं देता इसलिए सरकार को किसानों को पूरा सपोर्ट देना चाहिए, इसके अलावा भी किसानों का कहना है कि जब देश के 54 फीसदी लोग किसी ना किसी रूप में खेती पर निर्भर हैं तो सरकार को खेती को सुरक्षित और संरक्षित करना ही पड़ेगा।
किसानों का यह भी कहना है कि आजादी के बाद 77 फीसदी आबादी खेती पर निर्भर थी और gdp में खेती को योगदान 51 फीसदी है , अब 54 फीसदी लोग खेती पर निर्भर हैं पर gdp में योगदान 15% ही रह गया है। साफ है कि खेती में बढ़ते खतरों के चलते युवाओं का धीरे-धीरे खेती से मोहभंग हो रहा है और ऐसे में खेती को प्रोत्साहित करने के लिए भी msp का होना जरूरी है।
स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें क्या हैं
जिसे लोग स्वामीनाथन आयोग के रूप में जानते हैं वो असल में राष्ट्रीय किसान आयोग था। इसके पहले अध्यक्ष बीजेपी के सोमपाल शास्त्री थे, पर जब 2004 में bjp लोकसभा का चुनाव हार गई तो इसका दोबारा गठन हुआ और एम एस स्वामीनाथन अघ्यक्ष बने। आयोग ने बहुत सी सिफारिशें दी थी पर दो प्रमुख थी , पहली किसानों को कम समय के लिए लोन दिए जाएं और दूसरी संपूर्ण लागत से 50 फीसदी ज्यादा msp तय की जाए। संपूर्ण लागत में किसानों की फैमिली लेबर और जमीन का किराया भी शामिल किया गया था। कानून बनने के बाद कोई भी msp से कम कीमतों पर फसल नहीं खरीद पाएगा।
एक्सपर्ट का msp को लेकर क्या कहना है
वैसे स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों में msp को लागू करने की बात कही गई है, इसपर कई एकसपर्ट भी मानते हैं कि किसानों से बात हो और जब तक सरकार तमाम अनाज को भंडार करने की सुविधा नहीं बना पाती किसानों को खुलकर इस बारे में बताया जाए क्योंकि बिना तैयारी के msp लागू नहीं किया जा सकता है।
एक्सपर्ट का कहना है कि अमेरिका जैसे देश में msp का concept सबसे पहले आया और आजतक लागू है इसलिए यह तर्क बेकार है कि अगर उसे लागू किया गया तो अर्थव्यवस्था बिगड़ जाएगी। हमारे देश में भी ये अच्छे से चल सकता है और सबसे बड़ी बात इससे बिचौलिए खत्म होंगे, छोटे और बड़े किसानों के बीच की खाई खत्म होगी , महंगाई थोड़े समय आएगी पर लंबे समय में इसके अच्छे परिणाम होंगे।
उत्पादकता क्षमता बांग्लादेश से भी नीचे -किसानों को खेती के पूरे संसाधन मिले
एक्सपर्ट का यह भी मानना है कि कृषि के क्षेत्र में सरकार को किसानों की मूलभूत समस्या को समझकर उसका निदान करना चाहिए, अच्छे बीज, खाद, पानी की पूरी व्यवस्था, खेती करने के तमाम आधुनिक उपकरण किसानों को मिलने चाहिए जिससे किसानों की उत्पादन करने की क्षमता बढ़ेगी ।
अभी हाल ये है कि चाहे चीन के बाद हमारे देश में धान का फसल सबसे ज्यादा होती है पर आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि उत्पादकता के मामले में हमारे किसान बांगलादेश से भी पीछे हैं। एक हैक्टर जमीन पर चीन में 6.5 फीसदी धान उगाया जाता है, वियतनाम में यह प्रतिशत 5.2 , इंडोनेशिया में 4.9 और बांगलादेश में 4.2 फीसदी है पर भारत में एक हैक्टर जमीन पर सिर्फ 3.1 फीसदी धान उगाया जाता है और इसके पीछे सरकार की लापरवाही और गरीब किसानों की दुर्दशा ही बड़ा जिम्मेदार माना गया है।
कांग्रेस कर रही है msp पर राजनीति अपने गिरेबान में झांकने की जरूरत
Msp पर लगातार राजनीत की जा रही है , हैरानी की बात ये है कि रीहुल गांधी जीतने पर msp लागू करने की बात करते हैं और स्वामीनाथन की पूरी रिपोर्ट वर्ष 2006 में सरकार के पास आ गई थी पर पूरे 8 साल कांग्रेस की ही सरकार रही उसने इसे लागू नहीं किया। यही नहीं 2010 में कांग्रेस के कृषि मंत्री ने राज्यसभा में कहा था कि msp लागू नहीं की जा सकती क्योंकि इससे बाजार पूरी तरस से बिगड़ जाएगा और अब कांग्रेस किसानों को भड़काने का काम कर रही है और इस आंदोलन को सपोर्ट भी कर रही है।
क्या किसान आंदोलन के पीछे बाहरी ताकतों का हाथ है
यह एक बड़ा प्रशन है जो इस समय चर्चा का विषय है कि क्या किसान आंदोलन अपने मुद्दे से भटक गया है , क्या किसान फसलों पर एमएसपी मिनिमम स्पोर्ट प्राइज की आपनी मूल मांग से हटकर अब अपनी लड़ाई सीधे तौर पर सरकार से लडना चाहते हैं क्या इस आंदोलन का मतलब मोदी की लोकप्रियता को कम करना है। क्या यह आंदोलन खालिस्तानी सपोर्ट करने वाले नेता बाहर बैठे देशों से चला रहे हैं। और कई कारणों से इन सवालों का जन्म हुआ है जिसपर आज हम चर्चा कर रहे हैं,
सबसे पहले तो यही बात संदेह पैदा करती है कि जब सरकार ने किसानों की आय बढ़ाने के लिए एक नहीं दों नहीं पांच फसलों पर msp फिक्स करने का प्रस्ताव दिया तो बहुत ही अच्छे तरीके से किसान नेताओं को यह समझ में आया, वो खुश भी थे और कहा गया था कि वो दो दिन में इसका जवाब देंगे।
लेकिन दों दिन के अंदर किसानों का सटीक जवाब आता है कि वो इसके पक्षमें नहीं उनका आंदोलन जारी रहेगा, इससे लगता है कि इस आंदोलन को चलाने-भडकाने की हवा कहीं पीछे से ही आ रही है दबे स्वरों में आवाजें उठ ही रही हैं कि विदेशों में बैठे खालिस्तान समर्थक नेता इस आंदोलन को लंबें चलाने के पूरे मूड में हैं। जिस तरह से यह आंदोलन सिर्फ पंजाब के किसानों का आंदोलन बनकर रह गया है , उससे कहीं ना कहीं कुछ सच्चाई नजर भी आ रही है। सबको पता है कि देश में अराजकता की सिथति बनाने के लिए खालिस्तानी नेता हर संभव कोशिश कर रहे हैं .आंदोलन के दौरान भिंडरवाला और अमृतपाल को हीरो बनाकर उनके पोस्टर लहराने से ये शक और गहरा हो जाता है।
आंदोलन की टाइमिंग को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं।
इसकी टाइमिंग को लेकर भी सवाल पैदा हो रहे हैं कि लोकसभा चुनाव से ठीक पहले इसका मकसद सरकार के लिए मुशिकलें पैदा करना तो नहीं , कहीं उसके पीछे मोदी विरोधी ताकतें तो काम नहीं कर रही हैं। जिस तरह से किसान किसी भी तरह से सरकार के साथ एक मंच पर बैठकर बात करने को तैयार नहीं है उससे यह भी लग रहा है कि इस समय सरकार को दबा कर अपनी मांगे पूरी करवाने की तैयारी है।
पंजाब के किसान ही क्यों कर रहे हैं आंदोलन
अब बात करते हैं कि यह आंदोलन सिर्फ और सिर्फ पंजाब के किसानों का आंदोलन बनकर क्यों रह गया है और यदि पंजाब के किसान वकैया परेशान हैं और अपनी आय ज्यादा करना चाहते हैं तो उन्होनें सरकार की पांच फसलों पर msp वाली बात क्यों स्वीकार नहीं की इससे उनकी आय एकदम बढ़ जाती
पंजाब के किसान क्यों उगाते हैं सिर्फ msp वाली फसलें
हम आपको समझाते हैं, इस समय पंजाब के किसाब 85 फीसदी जमीन पर गेहूं और धान की पैदावार करते हैं जिसपर सरकार की ओर से एमएसपी दी जाती है। सरकार ने अपने प्रस्ताव में कहा था कि किसान पांच और फसल जिसमें मसूर, उडद और अरहर की दाल के साथ मक्का और कपास भी पैदा करें और सरकार सभी पर एमएसपी देगी , किसानों को ये बात स्वीकार नहीं हुई इससे बड़ा सवाल खडा होता हैं कयोंकि अगर दो की बजाय पांच फसल उगाएगें तो उन्हें दो की बजाय पांच फसलों पर msp मिलेगा, और उनकी आय भी बढेगी।
किसानों की हठ के चलते पंजाब में भूजल स्तर बहुत कम
दूसरा आपको बता दें कि गेहूे और धान उगाने में बहुत ज्यादा पानी लगता है और इसी कारण पंजाब में भूजल स्तर बहुत नीचे पहुंचता जा रहा है क्योंकि यहां सबसे अधिक गेहूं और धान ही उगाया जाता है।
अगर पंजाब के किसान गेहुं धान के अलावा और फसले उगाने की बात मान लेते तो ना केवल आय बढती बलिक पंजाब में लगातर सामने आने वाली पानी की समस्या भी कम हो जाती। इसके साथ देश में जहां बहुत ज्यादा दाले बाहर से मंगवाई जाती है अगर पंजाब में दाले उगानी शुरू हो जाती हैं तो देश को बाहर से ज्यादा दाले मंगवाने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। दालों का उतपादन बढने से पूरे देश को ही इसका लाभ मिलेगा.
आपको बता दें कि पंजाब में लगभग 17 लाख परिवार खेती बाडी करते हैं , नई फलसे उगाने से इन परिवारों की आय पर सीधा फर्क पडेगा , पर साफ लगता है कि आंदोलन करने वाले कुछ नेताओं को इससे कुछ लेना देना नहीं , किसान आंदेलन आय बढ़ाने को लेकर नहीं बलिक कुछ और मकसद के साथ चलाया जा रहा है।
किसानों को पांच फसल उगाने पर msp की बात कोई नेता समझाने की कोशिश नहीं कर रहा बलिक किसान नेता इस प्रस्ताव को ही घुमा-फिरा कर अपने आंदोलन को जारी रखे हुए हैं। दुख की बात यही है कि गरीब और भोले किसानों को गुमराह करके कोई और ही गर्म तव पर अपनी रोटियां सेकना चाहता है।