Bihar -अमित शाह का एक दौरा सबने Surrender किया -बनाया जीत का माहौल
आज देशभर में बिहार चुनाव को लेकर चर्चा हो रही है, पता चला है कि महागठबंधन में 12 ऐसी सीटें हैं जहां पर महागठबंधन के दल आपस में ही लड़ेंगे और उससे साफ पता चलता है जो कलह है जो अंदरूनी एक तालमेल की कमी थी वो बिल्कुल बिल्कुल खुल करके सामने आ गई है चाहे जितना भी पर्दा डालने की कोशिश की गई हो।कांग्रेस हो चाहे वो तेजस्वी यादव हो जो बयानबाजी कर रहे थे कि सब ठीक है सब ठीक है लेकिन कुछ भी ठीक नहीं है 12 सीट बहुत होती है और इन सीटों पर छह सीट ऐसी हैं जहां पर कांग्रेस और आरजेडी यानी तेजस्वी यादव और राहुल की पार्टी आमने-सामने भिड़ रही हैं। चार सीटें ऐसी हैं जहां पे सीपीआई और कांग्रेस आपस में भिड़ रही हैं और दो सीटों पर मुकेश साहनी की पार्टी और आरजेडी जो है उसके उम्मीदवार आपस में एक दूसरे के खिलाफ लड़ेंगे।
10 सीटों पर अमित शाह का Magic चल गया -बागियों को बैठा दिया

लेकिन इन सब के बीच अमित शाह ने बिहार दौरा किया, और जो चाणक्य नीति अपनाई जिस तरह से उन्होंने डैमेज कंट्रोल किया और साफ लगा कि पूरी बाजी उन्होंने पलट दी और एक तरह से एक खेला कर डाला। पता चला है कि 10 से ज्यादा सीटें ऐसी थी जहां जो बीजेपी के बागी नेता थे जिनको टिकट नहीं मिला था वो निर्दलीय लड़ रहे थे। इस तरह से कई और सीटें ऐसी थी जहां पर निर्दलीय उम्मीदवार खड़े हुए थे। लेकिन अमित शाह ने उन सब से बात की पर्सनली जाकर और 10 से ज्यादा सीटें ऐसी थी जहां पर उन उम्मीदवारों ने अपने नामांकन वापस ले लिए। कई सीटें तो ऐसी थी, कई उम्मीदवार तो ऐसे जो ढोल बाजे के साथ चलने लगे थे नामांकन भरने के लिए लेकिन एन टाइम पर एक मैसेज गया, बातचीत हुई और उन्होंने नामांकन अपना वापस ले लिया या भरा ही नहीं। अमित शाह का एक दौरा सिर्फ बिहार का हुआ और यह खेला हो गया और यही कारण है कि कहते हैं ना अमित शाह को कि चाणक्य नीति है उनकी और वो जहां भी जाते हैं बाजी पलट देते हैं वैसे एनडीए में भी बहुत ज्यादा घमासान चल रहा था सीटों को लेकर, बागी उम्मीदवार सामने खड़े हो गए थे नामांकन भर दिया था कुछ ने कुछ तैयारी कर रहे थे लेकिन अमित शाह के एक दौरे ने सब खत्म कर दिया और कुछ सीटें ऐसी हैं जहां बहुत ज्यादा चर्चा में है जहां पर अमित शाह ने बकायदा पर्सनली बात करिए।
BJP के बागी नेताओं को भी समझा दिया

जैसे कि पटना की सीट, पटना की जो मेयर हैं उनकी जो मेयर सीता जी हैं उनका बेटे शिशिर ने टिकट निर्दलीय उम्मीदवार के लिए टिकट भरा। लेकिन अमित शाह ने बात करी। उन्होंने अपना नामांकन वापस ले लिया। इसी तरह गोपालगंज की सीट थी जहां पर बीजेपी की विधायक कुसुम देवी हैं , उनके बेटे चुनाव लड़ना चाह रहे थे निर्दलीय। लेकिन अमित शाह ने बात की और उन्होंने चुनाव लड़ने से मना कर दिया। इसी तरह बक्सर और भागलपुर में भी इसी तरह से बातचीत करी और अमित शाह ने नामांकन नहीं होने दिया। इसी तरह से पूर्व मंत्री सुरेश शर्मा और एक और मंत्री जो चुनाव लड़ना चाह रहे थे लेकिन अमित शाह ने बात की और उन्होंने चुनाव लड़ने से मना कर दिया।तो जितनी चर्चाएं चल रही थी कि चिराग नाराज है, नितीश नाराज हैं। सीटों को लेकर मांझी नाराज हैं। बागी उम्मीदवारों ने जो टिकट थे, नामांकन भर दिए थे। अमित शाह ने सिर्फ एक विजिट की और सब ठीक कर दिया।
जनसुराज पार्टी ने लगाए आरोप

इन सबके बीच जन स्वराज पार्टी के जो मुखिया हैं प्रशांत किशोर उन्होंने आरोप भी लगा दिया कि उनके तीन उम्मीदवारों को अमित शाह और धर्मेंद्र प्रधान है जो बिहार के चुनाव प्रभारी हैं , उन्होंने दबाव डाला और उन्होंने टिकट वापस ले लिया अपना नामांकन वापस ले लिया और इनमें से डॉ शशि शेखर की जो है काफी बात हो रही है गोपालगंज की थी क्योंकि इन्होंने चुनाव प्रचार अपना धड़ल्ले से शुरू कर दिया था लेकिन एंड टाइम पर यह प्रचार प्रसार से गायब हो गए और अपना नामांकन वापस ले लिया। इसी तरह अखिलेश कुमार एक है, डॉक्टर सत्य प्रकाश तिवारी की भी बात कर रहे हैं।इसके पीछे वजह क्या रही? क्या प्रलोभन दिए गए? ये सब बातें तो अंदर छुपी रहती है। सामने नहीं आती। लेकिन हां इतना जरूर है कि अमित शाह के जाने पर गेम चेंज हुआ।
अमित शाह तो अमित शाह हैं कोई नहीं कर सकता बराबरी

अब फर्क की बात करें कि क्या फर्क है। तेजस्वी यादव एक तरह आरजेडी की कमान संभाल रहे थे और दो बड़ी पार्टी यानी कांग्रेस दोनों ही बड़ी पार्टी है। दोनों महागठबंधन में इंपॉर्टेंट भूमिका थी। लेकिन उनका रोल क्या रहा? तेजस्वी यादव तो बिल्कुल फ्लॉप हो गए। वो मना नहीं पाए। सब लोगों ने अपने हिसाब से वहां सीट डिक्लेअर कर दी। वो कांग्रेस तक को कन्वेंस नहीं कर पाए। और उसका हल क्या निकला? कुछ हल नहीं निकला। और यह भी देखा गया कि तेजस्वी यादव ने जब अपना नामांकन पत्र दाखिल किया तो कोई भी महागठबंधन का लीडर उनके साथ नहीं था। बड़ा लीडर चाहे वो कांग्रेस हो, चाहे वो सीपीआई हो, चाहे वो और कोई दल हो। तो इससे साफ लगा कि कहीं ना कहीं मतभेद है। और दूसरी तरफ हम राहुल गांधी की बात कर रहे हैं। बहुत ज्यादा दौरे किए थे बिहार में और बहुत कह रहे थे कि राहुल गांधी बहुत ज्यादा जोर लगा रहे हैं यहां पर। और बिहार में कुछ करना चाहते हैं और कुछ होगा। लेकिन एंड टाइम पर सब टाइम टाइम फेस हो जाता है। जो अभियान चलाते हैं राहुल गांधी या उन्होंने एक तरह से बिल्कुल डिस्टेंस बना लिया बिहार से और कहते हैं कि वो मैदान छोड़ के भाग गए। विशेषज्ञ कहते हैं कि राहुल गांधी ने देखा कि उनसे बात नहीं बनने वाली है। तो यहां से साइड लाइन ही हो लो नहीं तो सारा जो हार का ठीकड़ा भी होगा सब उनके सर पर आएगा। पहले बिहार में जिस तरह से राहुल गांधी ने चुनावी माहौल बनाया था, यात्रा की, खूब सारे दौरे किए, एंड टाइम पर बिल्कुल एक दूरी बना ली। या तो उनको आभास हो गया कि जो अंदरूनी कला चल रही है उसको वो मतलब ठीक तरह से निपटा नहीं पाएंगे, सेटिस्फाई नहीं कर पाएंगे। तो उन्होंने अपने आप को एक दूरी बना ली , दूसरी तरफ अमित शाह ने एक दौरा किया और सब कुछ वहां पे ठीक कर दिया ।
अशोक गहलोत क्या करेंगे अब

इन सबके बीच खबरें यह भी आ रही है कि कांग्रेस ने बकायदा अशोक गहलोत जैसे अनुभवी नेता को कांग्रेस नेता को तुरंत बात करने के लिए तेजस्वी यादव से बिहार रवाना किया है। कहा है कि आप बिहार जाइए और 12 सीटें हैं उसको लेकर बात चल रही है। कहा यही जा रहा है कि 12 सीटों पर चुनाव लड़ा जा रहा है आमने सामने तो एक फ्रेंडली चुनाव है ये इसमें कोई बड़ी बात नहीं तो यह फर्क है अमित शाह में और इन नेताओं में। अमित शाह जहां जाते हैं वहां हारी हुई बाजी जो है जीत में बदल देते हैं और जो ये तेजस्वी यादव कहो राहुल यादव राहुल गांधी सॉरी इन्होंने एक माहौल तैयार किया था बिहार में अच्छा माहौल बन गया था काफी सारी यात्राएं हुई थी तेजस्वी यादव ने भी की राहुल गांधी ने भी की बहुत सारी स्पीचेस दी यंगस्टर्स जुड़ने लगे थे लेकिन एंड टाइम पर लग रहा है कि जो थोड़ी जीत की बाजी थी वो हार में बदल गई है। मतलब अपने आप ही सरेंडर जैसे होता है ना वैसा लग रहा है कि कांग्रेस ने वहां कर दिया। अब इसके पीछे कारण क्या है? ये तो डेफिनेटली कांग्रेस के बड़े नेता ही जान पाएंगे। खुद राहुल गांधी जान पाएंगे कि बिहार क्यों छोड़ दिया ऐन वक्त पर। और बाकी तो डेफिनेटली जो भी होगा रिजल्ट के बाद ही सामने आएगा कि जो रणनीति थी अमित शाह की कितनी कामयाब रही बिहार में।
