अभी कुछ समय पहले ही खबरे आई थी कि नीतिश ने बिहार के लगभग 20 लाख युवाओं को लुभाने के लिए उन्हें Trainig देने और फिर उसके जरिए नौकरी देने की योजना शुरू की है और अब खबर मिल रही है कि रक्षा मंत्रालय बिहार में पूर्व सैनिकों को रोजगार देने के लिए रोजगार मेले का आयोजन कर रहा है। बिहार के मोतिहारी में 7 मार्च को इस जॉब फेयर का आयोजन चर्चा का विषय बन गया है और बनना भी है क्योंकि बिहार में जल्द चुनाव आने वाले हैं और हर कोई जिसमें एनडीए भी शामिल है यह जानता है कि इस बार बिहार का चुनाव जीतना इतना आसान नहीं होगा क्योंकि एक तरफ कांग्रेस बहुत ज्यादा एक्टिव हो गई है और दूसरी तरफ लालू तेजस्वी की जोडी -जाती वोट बैंक से कुछ हटकर विकास की बात कर रही है और ऐसे में बीजेपी और JDU ने इसका तोड़ खोज निकाला है। सबको पता बिहार की सबसे बड़ी समस्या है Unemployment । यह बात बीजेपी और उसका सहयोगी JDU अच्छी तरह से जानते हैं और दोनों ही रोजगार के बहाने अपने वोट बैंक को साधने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। कोशिश की जा रही है कि इस रोजगार मेले में नौकरी पाने की प्रक्रिया में कोई परेशानी ना हो। जिससे पूर्व सैनिक आसानी से नौकरी पा सकें और नीतीश सरकार की ओर आकर्षित हों।

परीसीमन से क्यों धबरा रहे दक्षिण राज्य-हिंदी भाषी राज्य के साथ अन्याय दूर होगा

 

देश में परिसीमन को लेकर नार्थ और साउथ राज्यों में एक तरह से कोल्ड वार शुरू हो गया है, दक्षिण के राज्यों को डर सता रहा है कि परिसीमन के बाद से उनकी कम जनसंख्या वृद्धि का नुकसान उनको चुनावों में उठाना होगा तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और डीएमके प्रमुख स्टालिन परीसीमन को लेकर सबसे ज्यादा परेशान दिख रहे हैं वह लगातर आरोप भी लगा रहे हैं कि इसके जरिए हिंदी बेल्ट के राज्यों को लोकसभा की ज्यादा सीटें मिलेंगी और उनका घाटा होगा, दक्षिण के कम सांसद लोकसभा पहुंच पाएंगे। पर चर्चाएं यही हैं कि स्टालिन को इससे ज्यादा तमिलनाडु में होने वाले चुनाव की ज्यादा चिंता सता रही है और वहां लोगों को उलझाने के लिए हिंदी और परीसीमन का मुद्दा उठा रहे हैं। पता चला है कि स्टालिन को इस बार अपनी कुर्सी बचाना भारी लग रहा है क्योंकि एक तरफ उन्हें एक्टर विजय की नई पार्टी तमिलग वेट्री कजगम से चुनौती मिल रही है। और दूसरी तरफ बीजेपी के कईं नेता स्टालिन को कड़ी टक्कर देने को तैयार हैं जिसमें अन्नामलाई का नाम प्रमुख है। पिछली बार चुनावों में बीजेपी को चाहे एक भी सीट ना मिली हो पर उसका वोट प्रतिशत बढ़ा था और यही बात डीएमके को परेशान कर रही है क्योंकि वोट बैंक का बढ़ना जीत का तरफ बढ़ती सीढी है।

कर्नाटक के CM भी हो रहे मुखर

वैसे स्टालिन अकेले नहीं है कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया भी उनका साथ दे रहे हैं क्योंकि कर्नाटक में उनकी गद्दी को भी बीजेपी लगातार चुनौती दे रही है। इन दोनों ने केंद्र से अधिक टैक्स हिस्सा देने की मांग को भी एक और मुद्दा बनाया हुआ है।

अब तक हिंदी भाषी लोगों के साथ हो रहा अन्याय

वैसे परीसीमन के बाद हिंदी भाषी राज्यों के साथ जो भेदभाव हो रहा है उसे कम करने की कोशिश है कि जैसे कि अभी कईं राज्यों को उनकी आबादी के हिसाब से कम सांसद मिलते हैं। जैसे की केरल का एक सांसद औसतन 18 लाख लोगों का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि राजस्थान का एक सांसद 33 लाख लोगों का। साफ है कि यह लोकतंत्र खिलाफ है, हर मतदाता की आवाज बराबर होनी चाहिए।

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