अंदर ही अंदर समाजवादी पार्टी कांग्रेस से नाराज
चर्चाएं गर्म हैं कि कांग्रेस और समाजवादी पार्टी की राहें बिल्कुल अलग हो चुकी हैं, उपर से चाहे दोनों दल दिखा रहे हों कि सब ठीक है पर अंदर ही अंदर समाजवादी पार्टी कांग्रेस की एकला चलो की नीती से बिल्कुल नाराज दिख रही है। लोकसभा चुनाव में जिस तरह से India alliance का हिस्सा बने उत्तर प्रदेश में कांग्रेस और समाजवादी ने मिलकर चुनाव लड़ा था और बड़ी सफलता मिली थी। जिस तरह से सीटें जीती लग रहा था कि कुछ बड़ा बदलाव होगा । पर उल्टा ही हो रहा है।
Rahul का संभल अकेले जाने के फैसला-सपा को नागवार
जिस तरह से संभल जाने के लिए राहुल गांधी ने अकेले निर्णय किया और अकेले जाने के लिए निकल पड़े हालांकि वह जा नहीं पाए लेकिन जो उनका अकेले का निर्णय था उसको लेकर के समाजवादी पार्टी में नाराजगी है समाजवादी पार्टी के महासचिव राज्यसभा सांसद राम गोपाल यादव ने तो खुल के कह दिया कि राहुल गांधी का या कांग्रेस का वहां जाने का मनसा ही नहीं थी वह सिर्फ एक नाटक कर रहे थे दिखावा कर रहे थे अगर वह इस मामले को लेकर के सीरियस होते तो यह मामला पहले संसद में उठाया जाता संसद में कोई इस मामले में नोटिस दिया जाता लेकिन इसके पीछे समाजवादी पार्टी की असली खीज यह है कि उत्तर प्रदेश जहां पर जूनियर पार्टनर है कांग्रेस और समाजवादी पार्टी अपने आप को सीनियर पार्टनर कहती है। और बहुत सारे निर्णय इस तरह के करती है जो यह बताते हैं या उन निर्णयों के माध्यम से बताने की कांग्रेस को कोशिश की जाती है कि आपको हमारे निर्णय को फॉलो करना पड़ेगा और उनको मानना पड़ेगा । लेकिन उसके अलग जब कांग्रेस के नेता राहुल गांधी जो नेता प्रतिपक्ष है और बड़ा नेता प्रतिपक्ष का होता है वह अगर इस तरह के निर्णय लेते हैं तो खीज या नाराजगी तो होगी और वही समाजवादी पार्टी को हो रही है लेकिन उनके नेता उसको दूसरे ढंग से निकाल रहे हैं।
संविधान की दुहाई राहुल- प्रियंका का सिग्नेचर स्टाइल हो गया
पर लगता है कि इस पूरे एपिसोड़ का प्रभाव एलायंस पर भी दिखेगा अब जो मसला है कि संभल किसी को नहीं जाने दिया गया और 10 दिसंबर तक वहां जाने पर सबको प्रतिबंधित किया गया है अब जब सबको प्रतिबंधित किया गया है तो समाजवादी पार्टी का डेलिगेशन नहीं जा पाया। कांग्रेस के स्टेट नेता अजय राय समेत किसी को नहीं जा जाने दिया गया। राहुल गांधी को गाजियाबाद में रोक दिया गया गाजीपुर बॉर्डर पर । वह और उनकी बहन जो अभी वायनाड से चुनाव जीत करके आई हैं दोनों ने बयानबाजी की संविधान दिखाया। संविधान की जो प्रति है और उनका आजकल इन दोनों का सिग्नेचर स्टाइल हो गया है व उन्होंने दिखाया और यह दुहाई दी कि हम यह हमारा संवैधानिक अधिकार है और हमको जाने नहीं दिया जा रहा है वो तो पुलिस के साथ जाने के लिए तैयार थे खैर लेकिन जो असली बात है कि जिस तरह से विधानसभा के चुनाव में समाजवादी पार्टी ने एक तरफा नाम घोषित कर दिए अपने कैंडिडेट का और उसके बाद कांग्रेस के लिए बहुत कम स्कोप छोड़ा या बहुत कम संभावनाए छोड़ी कि वह लोग विधानसभा के चुनाव में जो बाय इलेक्शन खत्म हुए हैं उन विधानसभा चुनाव में अपनी कोई इस तरह की प्रेजेंस दिखा पाए तो नौ में से नौ सीटों पर समाजवादी पार्टी लड़ी लेकिन जिस तरह के रिजल्ट आए हैं वह समाजवादी पार्टी के लिए बड़े उत्साहजनक तो नहीं है बल्कि उनके लिए बड़ा खराब परिणाम रहा नौ में से सात सीटें हार गई समाजवादी पार्टी और उनमें एक ऐसी सीट हार गई जो मुस्लिम बाहुल्य है जहां पर लगभग 62 पर के आसपास मुसलमान है , यह मामला जो है वह समाजवादी पार्टी को नागवार गुजर रहा है और इस बात को समझते हुए कांग्रेस जो है अपने आप को असर्ट कर रही है कांग्रेस अपने आप को बताने की कोशिश कर और यही कारण है कि शायद मतलब यह कारण हो सकता है कि कांग्रेस के नेताओं ने के लोगों ने समाजवादी पार्टी को इस उसमें नहीं गया नहीं जोड़ा लेकिन अगर दोनों राजनीतिक दल आई एनडीआईए के तौर पर जाते हैं।
MLA-MP की बीच की लड़ाई बनी बड़ा Issue
India alliance में पहले से ही आम आदमी पार्टी अलग चुनाव लड़ रही है, तृणमूल कांग्रेस ने किसी बैठक में आते नहीं है समाजवादी पार्टी भी अपनी बातें जो है वह अलग ही रख रही है चुनाव को लेकर के कोई सहमति नहीं बनी थी लोकसभा चुनाव की बात छोड़ दिए तो अभी जो उपचुनाव हुए उनमें कोई सहमति नहीं बनी थी और अब जब संभल कांड हुआ जिसमें पांच लोगों की मौत हो गई है और एक दूसरे ने दंगाइयों ने पुलिस पर हमला किया पुलिस को फायर फायरिंग करना पड़ा और इसमें एक और महत्त्वपूर्ण बात है महत्त्वपूर्ण बात यह है कि वहां के जो संभल के लोकल एमपी औरएमएलए मतलब जो बर्क है सफीक रहमान बर के ग्रैंड सन उनके और लोकल जो एमएलए है उसके बीच की रस्सा कसी भी एक बड़ा कारण बन रही है उसका कारण यह है कि जो वहां का लोकल एमएलए है वो वहां का लोकसभा टिकट चाहता था , लेकिन जब समाजवादी पार्टी ने बर्क सफीर रहमान बर के पोते को टिकट दे दिया तो उसके बाद से दोनों में खींचा तनी है और दोनों वहां पर कौन बड़ा नेता है इसको साबित करने के लिए वहां पर अभी भी खराब माहौल पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं अपनी बयान के अपने बयान के थ्रू और उसी बयानबाजी के कारण उनके खिलाफ दोनों के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुआ है कि उनको जब माहौल पहले से ही इस तरह का हो जहां हिंसा वाली बात हो गई हो तो उनको इस तरह के बयानबाजी से बचना चाहिए लेकिन वैसा नहीं हो रहा है ।
सब Minorities Voters को लुभाने का खेल
अब इन सबके बीच माइनॉरिटी वोट्स को लेकर के कांग्रेस की दावेदारी हमेशा से रही है । दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी जो है वह माइनॉरिटी का या
माइनॉरिटी वोट बैंक का या माइनॉरिटी कम्युनिटी को अपना मसीहा मानता है। इसलिए समाजवादी पार्टी और कांग्रेस दोनों इस बात को लेकर के टसल थे किजो उत्तर प्रदेश में हुआ है इसमें माइलेज कैसे लिया जाए अब समाजवादी पार्टी का तो सारा का सारा प्रभाव क्षेत्र उत्तर प्रदेश है लेकिन कांग्रेस के लिए इसके और भी मायने हो सकते हैं कांग्रेस के लिए इसका इसके मायने उत्तर प्रदेश से बाहर हो सकते हैं जैसे पश्चिम बंगाल हो सकता है तेलंगाना हो सकता है कर्नाटका हो सकता है और भी जो इस तरह के राज्य हैं वहां जम्मू कश्मीर हो सकता है य यह सारे मायने उनके लिए हैं।
उपचुनाव समाजवादी पार्टी हारी तो कांग्रेस की पूरी की पूरी कोशिश है कि राहुल गांधी ही इस पूरे प्रक्रिया में या इस पूरे जो डिस्टरबेंस हुआ है संभल वाली संभल वाला जो संभल की जो घटना हुई है उस घटना को राहुल गांधी अपने ढंग से या कांग्रेस ही उसका मेन बेनिफिशियरी दिखाने की कोशिश करें कि नहीं मुसलमानों के लिए जितना संवेदनशील या मुसलमानों के इंटरेस्ट के लिए मुस्लिम कॉज के लिए जिस तरह से कांग्रेस सक्रिय है लड़ती है अग्रेसिव है वैसा समाजवादी पार्टी का दृष्टिकोण समाजवादी पार्टी के आइडिया समाजवादी पार्टी का कार्यक्रम नहीं है। इसीलिए जो काम दोनों को मिलकर के या India का एक संयुक्त डेलिगेशन वहां जाना चाहिए था और उसके लिए प्रॉपर जो प्रक्रिया है उस प्रक्रिया को फॉलो करना चाहिए था वह नहीं किया गया।
कांग्रेस देश भर में मुसलमानों का मसीहा बनना चाहती है
तो इसमें दो चीजें हैं एक तो यह कि India गठबंधन में बिखराव है इसलिए कि आईएनडी में बहुत सारे राजनीतिक दल हैं उनमें शरद पवार का भी दल हो सकता था उसमें शिवसेना को भी शामिल किया जा सकता था उसमें तृणमूल कांग्रेस को शामिल किया जा सकता था उसमें डीएमके के नेता को शामिल किया जा सकता तो चूंकि पार्लियामेंट सेशन में है तो ज्यादातर बड़े नेता इन सभी राजनीतिक दलों के दिल्ली में हैं तो ये किया जा सकता था, लेकिन नहीं किया गया तो यह जो नहीं किया गया उसके पीछे सारा का सारा मसला यही है कि कांग्रेस देश भर में मुसलमानों का मसीहा बनना चाहती है और उत्तर प्रदेश में वह जगह समाजवादी पार्टी के लिए उनको उपलब्ध नहीं है खाली नहीं है ।