अखिलेश यादव यूपी के राजा ही हैं जो लोगों के दिलों में बसते हैं
उतरप्रदेश में अखिलेश यादव ने जिस तरह से कमबैक किया हैं वो काबिले तारीफ ही है। पहले उन्होंने दलितों की मसीहा मायावती के वोट बैंक काफी हद तक अपने फेवर में किए , उसके बाद उन्होंने बीजेपी और खासतौर पर योगी सरकार को अच्छी खासी टक्कर देकर यूपी में अपना दबदबा फिर स्थापित किया और अब होने वाले उपचुनावों में उन्होनें यूपी कांग्रेस के नेताओं से लेकर कांग्रेस आलाकमान को भी अच्छी तरह से समझा दिया की यूपी में वही राजा हैं और उनकी ही चलती है। वैसे कम ही लोग यह जानते होंगे कि विदेश में इंजीनियरिग करके लौटे अखिलेश शुरू से ही जुझारू, कुछ अलग करने वाले और अपनी बात पर अड़ने वाले नेता रहे हैं।
अपने Luv के लिए पिता मुलायम सिंह से भी बगावत कर ली
उन्होंने अपने पिता मुलायम सिंह यादव का सूरज चढ़ते हुए भी देखा और उतरते हुए ही भी। राजनीतिज्ञ पिता की विरासत उन्होंने एक परिपक्व नेता के रूप में संभाली और अपने बलबूते पर ही डूबती, पारिवारिक विवादों में घिरी, बिखरी समाजवादी पार्टी को भी नया जीवन दिया। घर में उन्होंने अपने कद्दावर चाचा और तमाम और नेताओं को अपने साथ करने के लिए पूरी राजनीति खेली है और दूसरी तरफ अपनी मर्जी की जीवनसंगनी चुनने के लिए वो अपने पिता उस समय के सबसे बड़े नेता मुलायम सिंह यादव से भी भिड़ गए थे। अखिलेश और डिंपल की प्रेम कहानी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है। डिंपल और अखिलेश की मुलाकात एक कॉमन फ्रेंड के जरिए हुए थी, जिसके बाद दोनों अच्छे दोस्त बन गए। दोनों की जब पहली मुलाकात हुई तो अखिलेश उस वक्त इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे तो डिंपल स्कूल में पढ़ रही थी।इसपर उन्होंने अपने घर में डिंपल को लेकर बात की तो पिता मुलायम सिंह यादव नाराज हो गए, पर अखिलेश यादव अड़े रहे और अंत में पिता की इजाजत पर 24 नवंबर, 1999 को दोनों शादी के बंधन में बंध गए।
BSP का सुपड़ा साफ किया-पार्टी को फिर से जिंदा किया बने मुख्यमंत्री
वैसे अखिलेश यादव का कालेज दिनों में राजनीति के क्षेत्र में कोई रूझान नहीं था और उन्होंने कभी छात्र संघ के चुनाव तक नहीं लड़े थे वह काफी शर्मीले स्वभाव के थे पर 2000 में राजनीति में सक्रिय हुए अखिलेश को सबसे पहले उत्तर प्रदेश समाजवादी पार्टी का अध्यक्ष बनाया गया। अखिलेश ने तब से ही प्रदेश में पार्टी की सरकार वापस लाने के लिए प्रयास शुरु कर दिए।पांच साल विधान सभा से लेकर सड़कों तक तत्कालीन सत्तारूढ़ बसपा का विरोध सिर्फ सपा ने ही किया। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष 38 साल के अखिलेश ने खुद लाठियां खाईं। अखिलेश ने सितंबर 2011 से रथयात्रा शुरू की। चुनाव की घोषणा होने तक वे आधे से ज्यादा विधानसभा क्षेत्रों में घूम चुके थे। लगभग नौ हजार किलोमीटर। बाकी आधी सीटें चुनाव के दौरान घूमे।मायावती सरकार का भ्रष्टाचार। धन का दुरुपयोग। विकास के कार्यो की जगह अपनी मूर्तियों और स्मारकों पर अरबों रुपए खर्च। अखिलेश ने इन मुद्दों को जमकर उठाया। और सबसे मजबूत विकल्प बनकर उभरे।उन्होंने लोगों को भविष्य के सपने दिखाए। हम सत्ता में आए तो क्या करेंगे? कैसे बदलेंगे प्रदेश की तस्वीर? मुफ्त पढ़ाई। मुफ्त इलाज। मुफ्त लैपटॉप। मुफ्त टैबलेट। किसानों का कर्ज माफ। बुनकरों का कर्ज माफ। रोजगार के अवसर। युवाओं को बेराजगारी भत्ता। उनके इन वायदों के कारण जनता। ने समाजवादी पार्टी को टूट कर वोट दिए।
अपनी मर्जी से टिकट दिए अपनी मर्जी से सरकार चलाई
लखनऊ में एक विरोध प्रदर्शन में अखिलेश के एक सहयोगी को डीआईजी डीके ठाकुर द्वारा लातों से मारने की फोटो खूाब चर्चा में रही। ऐसे लोग जो अखिलेश के एक इशारे पर पार्टी के लिए सड़कों पर संघर्ष करने को तैयार थे उनका एक संगठन तैयार किया और यही नहीं बल्कि अधिकतर सीटों पर टिकट भी उन्हीं की मर्जी से दिए गए को अधिकतर उन्हीं की तरह युवा थे
परिवारिक कलह को बहुत ही समझदारी से निपटाया सबको साथ लेकर आगे चले
वे 2012 से 2107 तक उत्तर प्रदेश की सत्ता पर काबिज रहे । अखिलेश यादव 2012 से 2017 तक भले ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हो, लेकिन वह विधानसभा का चुनाव नहीं लड़े थे। वह अपने पहले कार्यकाल में विधान परिषद के जारी विधानसभा पहुंचे थे। उन्होंने 2022 में मैनपुरी के करहल विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा था और भारी मतों से जीत हासिल की। अखिलेश यादव को 2017 चुनाव से पहले परिवार के बीच की कलह ने खूब सुर्खियां बटोरी थी। चुनाव में समाजवादी पार्टी को इसकी कीमत भी चुकानी पड़ी थी। इसके बाद शिवपाल और अखिलेश के रास्ते अलग-अलग हो गए, लेकिन साल 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में शिवपाल ने अपनी पार्टी प्रसपा का सपा में विलय कर दिया और विधानसभा का चुनाव सपा की सीट पर लड़ा।
राजनीति में चाहे बहुत तेज पर पूरी सादगी, सरलता है
अपनी सादगी, सरलता, समरसता और सफगोई जैसी खासियतों के कारण ही अखिलेश यादव का शुमार देश की पहली पंक्ति के राजनेताओं में होता है।