country need water more or do they need beer

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Water Cricis – देशवासियों को WATER की ज्यादा जरूरत या उन्हें चाहिए Beer

पानी की ज्यादा जरूरत है या Beer की: कितनी अजीब बात है कि देश में एक तरफ बाढ़ से तबाही मची हुई है दूसरी तरफ दिल्ली जैसे महानगर और देश के अन्य कईं राज्य पानी की कमी से जूझ रहे हैं और इन सब के बीच एक और ध्यान देने वाली बात है कि देश में Beer पीने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है

अब आपको सोच रहे होगे कि पानी की कमी से Beer का क्या संबंध है , संबंध है और बहुत गहरा संबंध है जिसके बारे में विस्तार से चर्चा होगी और आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि बाहर के कईं देश अपने यहां पानी की कमी को कैसे पूरा कर रहे हैं , यहां भी बियर बन रही है लेकिन किस चीज से यह जानेंगे तो चौक जाएंगे।

एक लीटर Beer बनाने में 160 लीटर तक पानी की खपत

एक चौकाने वाली बात ये हैं जिसके बारे में कम ही लोग जानते होंगे कि एक लीटर Beer बनाने में 160 लीटर तक पानी लगता है, इस भयंकर गर्मी में प्यास बूझने के लिए चाहे लोगों को पानी नहीं मिल पा रहा पर Beer पीने वाले मजे से इसे खरीद रहे हैं और ये हर जगह उपलब्ध भी है। ऐसे में ये सवाल उठना वाजिफ है कि लोगों को पीने के लिए पानी चाहिए या Beer। जाहिर तौर पर पानी की जगह कोई नहीं ले सकता है । आज दुनिया भर में पानी का संकट बढता जा रहा है और एक लीटर बियर बनाने में अधिकतम 155 से 160 लीटर तक पानी लगता है।

अब हमें यह तय करना है कि मानव जीवन के लिए बियर जरूरी है या पानी। 2009 के सर्वेक्षण से पता चला है कि लंदन स्थित SABMiller Brewery एक लीटर बीयर बनाने के लिए 155 लीटर पानी की खपत करती थी। भारत में एक लीटर बीयर बनाने में पानी की कितनी खपत होती है यह आंकड उपलब्‍घ नहीं है। लेकिन SABMiller Brewery के आंकडे से अनुमान लगाया जा सकता है। इसी तरह आधा लीटर सोडा बनाने में 170 से 310 लीटर या 45 से 82 गैलन पानी लगता है,

साफ पानी की कमी से निपटने के लिए Beer का इस्तेमाल

यह आश्चर्य की बात है कि पुराने जमाने में जब लोगों को साफ – सुरक्षित पानी पीने को नहीं मिल पाता था तो वह बियर पीते थे और बियर के अविष्कार के पीछे भी यही कहा जाता है कि आवश्‍यकता, अविष्कार की जननी है।बीयर की उत्पत्ति 7,000 साल से भी ज़्यादा पुरानी है

यह उन जगहों पर विकसित की गई जहां पीने को साफ पानी बहुत मुशिकल से पहुंचता था या था ही नहीं। शुरुआती रूप में शराब बनाने वालों ने अनाज के प्राकृतिक फर्मेंटेशन से ऐसा पेय बनाया जो संभावित रूप से दूषित स्थानीय जल स्रोतों की तुलना में पीने के लिए सुरक्षित था और जिससे सेहत को भी खतरा नहीं था और धीरे-धीरे बियर आनंद का मुख्य साधन बन गया और उन स्थानों पर एक महत्वपूर्ण दैनिक पेय बन गया जहां शुद्ध पेयजल दुर्लभता से मिलता था।

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वास्तव में Beer की उत्‍पत्ति कब कैसे और कहां हुई

बहुत से लोग जर्मनी की प्रसिद्ध शराब पीने की संस्कृति को बीयर के जन्मस्थान से जोड़ते हैं। यह सच है कि आधुनिक समय की बीयर शैलियाँ ज़्यादातर यूरोप (खासकर जर्मनी) में विकसित हुई थीं। लेकिन शोध के ज़रिए पता चलता है कि बीयर का सबसे पहले आनंद प्राचीन मेसोपोटामिया में लिया गया था।

जर्मन लोग अपनी बीयर पसंद करते हैं, लेकिन असल में यह पहली बार वहां नहीं बनी थी।एक थ्‍योरी यह भी है कि बियर बनाने का काम गोडिन टेपे बस्ती (जो अब आधुनिक ईरान में है) में 10,000 ईसा पूर्व से ही शुरू हो गया था, जब इस क्षेत्र में पहली बार कृषि का विकास हुआ था। यूफ्रेट्स और टिगरिस नदियों के बीच की भूमि में रहने वाले लोग बीयर को अपने आहार का एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा मानते थे। इसके नशीले प्रभाव के कारण वे इसे “ दिव्य पेय ” कहते थे।

Beer का उत्पादन शुद्ध पानी की कमी कर रहा है

अजीब बात है कि पहले जहां साफ पानी ना मिलने के कारण बियर का उत्पादन और इसे पिया जाता था आज बियर के कारण काफी हद तक साफ पानी का संकट सामने रहा है क्योंकि इसके उत्पादन में काफी पानी लगता है उससे भी ज्यादा आश्चर्य तो तब होता है जब सरकार खुद जल का संकट बढता देख रहा धान की खेती को नियंत्रित कर फसलों के विविधीकरण की बात कर रही है पर बियर के उपर कोई फैसला नहीं लिया जा रहा।

धान पैदा करने पर विविधीकरण पर Beer के उतपादन पर खामोशी

आंकड़े बताते हैं कि एक किलो धान पैदा करने में अधिकतम 4000 लीटर पानी लगता है। और धान से निकले एक किलो चावल से दो लीटर महंगी राइस बियर तैयार होती है। वैसे बीयर मुख्‍य रूप से जौ से तैयार की जाती है और मक्‍के से भी बनाई जाती है। उत्‍पादन बढाने के लिए फसलों का विविधीकरण जरूरी है, इसमें कुछ भी गलत नहीं है। लेकिन, अगर पानी की अधिक खपत के कारण धान की फसल को हतोत्‍साहित किया जा रहा है तो बियर को क्‍यों नहीं। उसमें भी तो पानी का उपयोग बहुतायत में किया जाता है। बियर में 95 फीसद पानी होता है।

Beer पर पाबंदी मतलब सरकार को भारी नुकसान

दरअसल, बीयर पर प्रतिबंध लगाने का मतलब है सरकार को कमाई में भारी नुकसान। मद्यनिषेध एवं आबकारी विभाग के अनुसार साल 2023-24 में शराब पर टैक्‍स से सरकार को 45 हजार करोड रुपये से अधिक की कमाई हुई। जो साल 2022-23 से 1,734 हजार करोड़ अधिक है। यह कमाई सिर्फ बीयर पर नहीं है बल्कि, शराब के कुल कारोबार पर वसूला गया टैक्‍स है। राज्‍यों को अपने कुल राजस्‍व का 10 प्रतिशत शराब पर टैक्‍स से मिलता है।

जबकि, किसी भी अन्‍य फसल की तरह सरकार को धान 2200 रुपये प्रति क्विंटल की दर से खरीदना पडता है। मतलब, एक तरफ सरकार को कमाई है तो दूसरी तरफ खर्च। तो सरकार बीयर पर प्रतिबंध लगाकर कमाई कैसे छोड सकती है। यहां सरकार यह कह सकती है कि वसूले गए टैक्‍स से ही तो फसल खरीदी जाती है। तो यहां सवाल यह भी विचारणीय है कि बीयर जरूरी है कि जल।

देश में लगातार बढ़ती Beer की खपत मतलब सीधे तौर पर पानी की कमी

2022 में भारत में दो अरब लीटर से अधिक बीयर की खपत हुई। अनुमान है कि 2025 तक देश में बीयर की खपत करीब 3.4 अरब लीटर तक पहुँच जाएगी। 2017 से 2025 तक बीयर की खपत में करीब तीन प्रतिशत की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर का अनुमान लगाया गया है। राजस्‍व कम होते ही सरकारों की चिंता इसी से पता चलती है कि 2023 में महाराष्‍ट्र में बीयर की कम होती बिक्री और उसके कारण घटते राजस्‍व ने राज्‍य सरकार को चिंता में डाल दिया था। राज्‍य सरकार के मुताबिक, बीयर पर एक्साइज ड्यूटी बढ़ने के बाद बीयर की बिक्री कम हो गई थी।

खेतों में पानी नहीं पर Beer फैक्टरियों में पानी ही पानी

महाराष्‍ट्र का मराठवाडा क्षेत्र प्राय: पानी की कमी के कारण सूखे से जूझता रहता है। किसान आत्‍महत्‍या तक कर लेते हैं। लेकिन Beer उद्योग को पानी की आपूर्ति जारी रहती है। Beer उद्योग को पानी की आपूर्ति तब तक बंद करने के बारे में सोचा तक नहीं जाता जब तक पेयजल का संकट न खडा हो जाए। भारत की Beer राजधानी कहे जाने वाले औरंगाबाद में किंगफिशर, फोस्‍टर, कार्ल्‍सबर्ग और हेनेकेन जैसे ब्रांड्स की शराब बनाने की फैक्ट्रियां हैं। इन फैक्ट्रियों में सालाना करीब 1800 लाख लीटर Beer बनाती हैं, जो महाराष्ट्र की कुल शराब बनाने की क्षमता का करीब 70% है।

छत्रपति संभाजीनगर में शराब और बीयर बनाने में 12 कंपनियां शामिल हैं। वित्तीय वर्ष 2023-24 में इन कंपनियों ने 3,778.28 बल्क लीटर Beer का निर्माण किया गया।समस्या तब आती है जब बीयर उद्योग के लिए पानी का एकमात्र स्रोत, जयकवाड़ी बांध बारिश न होने के कारण सूखने लगता है। 2012 में यही हुआ। महाराष्ट्र राज्य जल संसाधन विभाग के अनुसार, बांध में वर्तमान में अपनी कुल उपयोग योग्य क्षमता का केवल 2% ही बचा था और यह पानी मराठवाड़ा क्षेत्र की राजधानी औरंगाबाद और उसके आसपास के क्षेत्रों में पीने, सिंचाई और उद्योगों के लिए आपूर्ति का मुख्य स्रोत है।

महाराष्ट्र औद्योगिक विकास निगम (एमआईडीसी) के 2012 के आंकडे बताते हैं कि औरंगाबाद और उसके आसपास स्थित विभिन्न औद्योगिक इकाइयां उस समय प्रतिदिन लगभग 550 लाख लीटर पानी की खपत करती थीं। इसमें से लगभग 350 लाख लीटर शराब बनाने वाली कंपनियों द्वारा उपयोग किया जाता था।

गन्ने की उगाई दोषी पर Beer पर आंच नहीं

राज्य विधानसभा में इस बात पर खूब चर्चा हुई कि क्या लातूर में चीनी मिलों द्वारा गन्ने की पेराई के लिए पानी का उपयोग करना सही है, जबकि इस क्षेत्र में पानी की कमी है। गन्ना किसानों को ड्रिप सिंचाई की ओर रुख करना चाहिए। राज्य में पानी के दुरुपयोग के लिए गन्ने को बहुत लंबे समय से दोषी ठहराया जाता रहा है, जबकि औरंगाबाद में बीयर उद्योग, जिसमें फोस्टर, कार्ल्सबर्ग और हेनेकेन जैसे प्रमुख ब्रांड हैं, वर्तमान में अपने पानी के उपयोग के लिए जांच के दायरे में है।

Beer उद्योग में पानी के उपयोग को तार्किक स्‍तर तक कम करने के लिए तकनीक और सामग्री में काफी विकास हुआ है। लेकिन पेयजल की कीमत पर बीयर बनाया जाना किसी भी स्थ‍िति में स्‍वीकार नहीं किया जा सकता।

नाली के पानी और यूरिन से Beer बनाकर पानी की बचत

आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि सिंगापुर जैसे विकसित देश में पानी की कमी से बचने और गंदे पानी को रिसाइकल करने का एक अनोखा तरीका ढूंढा है। एक लोकल बीयर कंपनी के साथ मिलकर यहां की नेशनल वॉटर एजेंसी नाली के पानी और यूरिन से Beer बना रही है। जिसका नाम ‘न्यूब्रू’ बताया जा रहा है। और यह भी अच्छा है कि इस बियर का प्रचार दुनिया की सबसे इको फ्रेंडली बीयर के रूप में किया जा रहा है। न्यूब्रू को निवॉटर से बनाया जा रहा है जिसे नाली के पानी को रिसाइकल और फिल्टर कर तैयार किया जाता है। बैसे बियर कंपनियों का दावा है कि बीयर न्यूब्रू में 95% निवॉटर ही मिला हुआ है।

सिंगापुर पानी की कमी से लगातार जूझ रहा है

भारत की तरह सिंगापुर भी कईं सालों से पानी की कमी से जूझ रहा है क्योंकि यह देश चारों ओर समुद्री पानी से घिरा है और यहां की सरकार इस कमी को पूरा करने के लिए कई सालों से नए-नए तरीकों का इस्तेमाल कर रही है। देश में बारिश के पानी को भी इकट्ठा किया जाता है। इस सबके बावजूद यहां केवल 50% पानी की जरूरत ही पूरी होती है।

कहा जाता है कि 2060 तक सिंगापुर की आबादी बढ़ जाएगी, जिससे यहां पानी की मांग दोगुनी हो जाएगी। ऐसे में लोगों के पास निवॉटर और समुद्री पानी को साफ पानी में बदलने के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचेगा।

सिंगापुर ने पानी की कमी के लिए रास्ता निकाला भारत में क्यों नहीं होते ऐसे प्रयोग

यह बात साफ है कि आने वाले समय में पूरी दुनिया वॉटर क्राइसिस से जूझ सकती है। ऐसे में बहुत से समझदार देशों ने पानी की कमी से बचने के लिए कड़े कदम उठाने शुरू कर दिए हैं। सभी को पता है कि Beer को बनाने में बहुत सारे पानी की जरूरत होती है, ऐसे में सिंगापुर के लोगों ने नाली के पानी से बनी बियर का तहे दिल से स्वागत किया है।

समय आ गया है कि भारत समते तमाम देश पानी की कमी से बचने के लिए उन चीजों के उत्पादन पर ध्यान दें जो बहुत ज्यादा पानी की खपत करते हैं। पानी की कमी से बचना है तो विकल्प तो ढंढने होंगे।

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