सिर्फ victory ही victory राजनाथ सिंह क्यों कहा जाता Bjp का संकटमोचक                                             

मौजूदा रक्षा मंत्री और भाजपा के दिग्गज नेता राजनाथ सिंह की गिनती देश के उन नेताओं में होती है जो अभी तक कोई चुनाव नहीं हारे हैं और शायद यही कारण है राजनाथ सिंह को भाजपा का संकटमोचक भी कहा जाता है और पार्टी में उनको एक विशेष सम्मान प्राप्त है।जिस टकराव की राजनीति के दौर से इस समय संसद गुजर रही है, उसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अक्रमक विपक्ष के बीच अगर कोई ज्वलंत मुद्दे पर कोई सहमती बना सकता है तो वो केवल राजनाथ सिंह हैं क्योंकि विपक्ष उनकी बात सुनता या मानता है
राजनाथ सिंह का सम्मान इसलिए भी किया जाता है क्योंकि वे उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से चुनकर आते हैं जहां मुस्लिम सुमुदाय के मतदाता बहुमत मुख्य हैं। आपको बता दें पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेई के बाद राजनाथ सिंह ऐसे अकेले नेता हैं जो लखनऊ से लगातार तीन बार से अधिक निर्वाचित हुए हैं, वैसे कम ही लोग ये जानते होंगे कि राष्ट्रपति चुनाव से लेकर हाल में हुआ लोकसभा अध्यक्ष चुनाव के दौरान सरकार और विपक्ष के बीच आम सहमति का काम भी राजनाथ सिंह ने ही किया था,

मोदी सरकार जब भी कोई संकट आता है तब तब राजनाथ सिंह ही पार्टी और सरकार की नैय्या पार लगाते है। यह बात बहुत है मशहूर

अपनी प्रारंभिक शिक्षा राजनाथ सिंह ने अपने गांव से पूरी की औऱ आगे की पढ़ाई करते हुए गोरखपुर विश्वविद्यालय से एमएससी फिजिक्स में डिग्री हासिल की है , उन्हेने मिर्जापुर जिले के पोस्ट ग्रैजुएट कॉलेज में बतौर फिजिक्स लेक्चरर का पद भी संभाला था राजनाथ सिंह शिक्षा के दौरन ही भाजपा के छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े और बाद में आरएसएस से जुड़ गए, लेकिन उनका राजनीतिक करियर 1977 में हुआ जब वे उत्तर प्रदेश विधान सभा के सदस्य चुने गए। इसके खराब राजनाथ सिंह ने पीछे मुड़कर नहीं देखा, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में मुख्य पार्टी का राष्ट्रीय स्टार पर विस्तार किया गया तथा पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ मिलकर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का कुशल पूर्व संचालन किया गया।

 

राजनाथ सिंह का ही कमाल केंद्र सरकार द्वारा प्रायोजित 54,000 करोड़ रुपये की 50 से अधिक विकास परियोजनाएं लखनऊ में आई                                                                                                     

2003 – 24 मई, 2003 को उन्होंने केन्द्रीय कृषि मंत्री एवं खाद्य सुरक्षा का भार संभाला। इस दौरान उन्होंने किसान कॉल सेंटर और फसल आय सुरक्षा स्कीम जैसी योजनाओं पर काम किया।उन्होंने महंगाई, किसानों के मुद्दों और यूपीए सरकार की कई नीतियों पर प्रहार किया। पिछले एक दशक में राज्य या केंद्र सरकार द्वारा प्रायोजित 54,000 करोड़ रुपये की 50 से अधिक विकास परियोजनाएं लखनऊ में आई हैं । राजनाथ सिंह 2014 से लखनऊ के सांसद हैं लोगों के लिए तमाम काम कराने के साथ साथ राजनाथ सिंह का मृद व्यबहार भी उनके सिर हर बार जीत का ताज पहनाने का एक बड़ा कारण है

महाराष्ट्र की Baramati seat क्यों सालों से कब्जा है शरद पवार के परिवार का

                       

महाराष्ट्र की बारामती संसदीय सीट जहां से एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार 6 बार, उनकी बेटी सुप्रिया सुले दो बार और उनके भतीजे अजीत पवार एक बार सांसद रहे चुके हैं और अगर कहा जाए कि यहां की जनता पवार परिवार को दिलों जान से चाहती है उनके किए गए कामों को सरहाती है तो कुछ गलत नहीं होगा। तभी यहां से पवार परिवार लगभग 27 सालों से जीतता आ रहा है।

 

शरद पवार मराठा राजनीती में पूरा प्रभाव                             

आज से लगभग सत्ताइस साल पहले जब मराठा क्षत्रप और राजनीतिक पुरोधा शरद पवार ने महाराष्ट्र की बारामती लोक सभा सीट से पहली बार भारतीय संसद में पैर रखने के लिए चुनाव लडा था तभी यह तय कर लिया था कि यह क्षेत्र उनकी एक ऐसीचुनावी रणभूमि रहेगी जिसे शायद ही कोई भेद पाए और हाल में संपन्न हुए संसदीय चुनाव में उनकी बेटी सुप्रिया सुले की जीत ने मराठा राजनीति के धुरंधर के दावे को सही साबित कर दिखाया जबकि मुकाबला परिवार के दो महत्वपूर्ण सदस्यों यानी ननद और भाभी के बीच में था और तरह तरह के कयास लगाए जा रहे थे।
पर नतीजा वही निकला जो शरद पवार पहले से जानते थे। ननद अर्थात शरद पवार की बेटी सुप्रिया ने अपनी भाभी को आसानी से मात दे दी।

 

अपने कामों से जनता के बीच जगह बनाई

 

बारामती अपने गन्ने के बागानों के लिए भी मशहूर है…जहां भी चले जाइए खेतों में गन्ने आपको दिख ही जाएंगे। इसी वजह से यहां की सियासत में किसान की भूमिका अहम है। खुद शरद पवार भी इसी के दम पर न सिर्फ बारामती बल्कि प्रदेश और देश की सियासत में भी दम रखते हैं ।बारामती और शरद पवार यूं कह लीजिए पवार फैमली एक दूसरे की पूरक है। दरअसल बारामती में लहलहाते गन्ने की फसल के पीछे बहुत हद तक शरद पवार का योगदान है। क्योंकि साल 1960 तक बारामती सूखाग्रस्त क्षेत्र था। यहां मामूली ही बारिश होती थी और गन्ने की खेती के लिए कम से कम 600 mm बारिश की आवश्यकता होती है। ऐसी स्थिति में साल 1971 में शरद पवार ने एग्रीकल्चर डेवलपमेंट ट्रस्ट की नींव रखी।यह ट्रस्ट आज 15 लाख किसानों को कम क़ीमत में अपनी उपज बढ़ाने की अलग-अलग तरह से ट्रेनिंग दे रहा है। बारामती के कृषि विज्ञान केंद्र भी इस इलाके में खेती को बढ़ाने में अहम योगदान देता है। शरद पवार और उनके परिवार को ताकत इन्हीं किसानोंसे मिलती ह शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले के कंधे पर पवार परिवार की राजनीती राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले के कंधे पर पवार परिवार की राजनीतिक विरासत को आगे ले जाने की जिम्मेदारी है। माइक्रो बायोलॉजी से बीएससी करने वाली सुप्रिया की शादी 1991 में इनकी शादी सदानंद भालचंद्र सुले से हुई। शादी के बाद वे कई साल तक विदेश में रही और वहां नौकरी भी की। वे 2006 में पहली बार राज्यसभा सांसद बनीबारामती लोकसभा सीट पर एनसीपी के गठन से लेकर अब तक इसी का कब्जा है। पिछले चार दशकों से बारामती की सियासत शरद पवार के आस-पास घूमती रही है।बारामती को शरद पवार की वजह से राज्य की हाई प्रोफाइल सीट माना जाता है। महाराष्ट्र की सियासत में शरद पवार को साहेब के नाम से जाना जाता है। बारामती लोकसभा सीट 1957 में अस्तित्व में उस समय अस्तित्व में आई जब देश में पहला चुनाव उसी साल हुआ लेकिन साल 2024 में हालात बदल गए बताए जा रहे थे जो गलत साबित हुए।साल 2014 में मोदी की आंधी भी एनसीपी के इस गढ़ को नुकसान नहीं पहुंचा सकी। 2009 की परफॉरमेंस को दोहराते हुए शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले यहां से सांसद बनी।दरअसल, अजीत पवार की पत्नी के जरिए भाजपा बारामती में पिछले दरवाजे से प्रवेश करना चाह रही थी। लेकिन, उसे पता नही था कि वहां शरद पवार रूपी एक मजबूत ताला लगा हुआ है                                 

 

कांग्रेस में शामिल ना होने की कसम तोड़ी

      

बारामती लोक सभा सीट में 6 व‍िधानसभा आती हैं। इनमें दो सीट पर एनसीपी, एक-एक पर कांग्रेस, भाजपा, शिवसेना और राष्ट्रीय समाज पक्ष के व‍िधायक हैं। वैसे 1957 से 1977 तक ये सीट कांग्रेस के कब्जे में रही थी।करीब 3-4 दशक पहले शरद पवार ने ऐलान किया था- अगर जरूरत पड़ी तो वे अपने शरीर पर राख लगाकर हिमालय चले जायेंगे लेकिन इंदिरा कांग्रेस में कभी शामिल नहीं होंगे। हालांकि उसके कुछ सालों बाद यानी 1986 में उन्होंने उन्हीं इंदिरा गांधी के बेटे राजीव गांधी की मौजूदगी में औरंगाबाद में अपनी पूरी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया।लेकिन ज्यादा वक्त नहीं गुजरा था कि शरद पवार ने सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे पर कांग्रेस से नाता तोड़कर जून 1999 में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी नाम से अपनी नई पार्टी बना ली

बारामती का इतिहास है रोचक                                             

बारामती शहर का लगभग 400 वर्षों का लंबा इतिहास है। यहां दो पुराने मंदिर हैं जिनका निर्माण 750 ईस्वी के आसपास हुआ था। उनमें से एक श्री काशीविश्वेश्वर का है और दूसरा सिद्धेश्वर मंदिर। दोनों ही मंदिरों की वास्तुकला बेहद उम्दा है।प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ.शेजवलकर के मुताबिक निजाम शआह ने साल 1603 में बारामती को मालोजीराजे भोंसले को उपहार में दिया गया था। बाद में ये इलाका छत्रपति शिवाजी महाराज के अधीन आ गया। उस समय इसका प्रशासन दादोजी कोंडदेव द्वारा किया जाता था।

चलते -चलते इस लोकसभा सीट के अंदर 6 विधानसभा सीटें आती हैं। फ़िलहाल इनमें से दो सीटों पर एनसीपी, एक-एक सीट पर कांग्रेस, बीजेपी, शिवसेना और राष्ट्रीय समाज पक्ष के व‍िधायक काबिज हैं।

2 thoughts on “जनता के दिलों पर राज करते ये नेता तभी सालों से पहने जीत का ताज”

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