Modi देश में कम विदेश में ज्यादा रहते हैं-ये कहने वालों के कैसे हो गए मुंह बंद
भारत पाकिस्तान के बीच तनाव और युद्ध के बनते हालात के बीच तमाम मुस्लिम देशों ने भारत को आतंक के खिलाफ लड़ने के लिए अपना समर्थन दिया है, यही नहीं कल तक जो देश पाकिस्तान के पक्ष में खड़े दिख रहे थे पहलगाम हमले के बाद उन्होंने भी या तो चुप्पी साध ली है या भारत के साथ खड़े दिख रहे हैं और इन सब के बीच चर्चाओं का बाजार गर्म है कि मोदी की विदेश कूटनीती का ही परिणाम है कि आज पाकिस्तान के साथ युद्ध के कगार पर खड़े भारत को कोई भी मुस्लिम देश विरोध तो क्या भारत को कुछ या मोदी को कुछ समझाने कि लिए भी सोच समझकर कदम उठा रहा है.और यह सब देश में उन सब नेताओं और विपक्ष का मुंह बंद करने के लिए काफी हैं जो कल तक मोदी को ताना मारते नहीं थकते थे कि देश के pm भारत में कम बाहर ज्यादा समय बिताते हैं। आज मोदी की तमाम मुस्लिम और गैर मुस्लिम देशों में की गई यात्रा का परिणाम है कि विश्व भर के ज्यादातर देश पहलगाम हमले के बाद पाकिस्तान से मुंह मोड़कर भारत के साथ खड़े हैं।
Modi की कूटनीती का ही परिणाम पाकिस्तान बिल्कुल अलग पड़ा
मोदी की विदेशी कूटनीती का ही परिणाम था कि बहुत सो मुस्लिम देशों ने अपने सर्वोच्च सम्मान से मोदी को नवाजा है। दूसरी एक बड़ी वजह जो मुस्लिम देशों को पाकिस्तान की बजाय भारत के साथ खड़ा करने को मजबूर कर रहे हैं वो है व्यापार के क्षेत्र में इन देशों की भारत पर बहुत ज्यादा बढ़ती निर्भरता । एक्सपर्ट मानते हैं कि पिछले कुछ समय में यूएई और कतर और सऊदी अरब जैसे खाड़ी देश अब व्यापार, ऊर्जा निर्यात और श्रम के लिए भारत पर बहुत ज्यादा निर्भर हो चुके हैं। दूसरी तरफ वहां आने वाले और वहां बसे पाकिस्तानी नागरिकों के साथ इन देशों का अनुभव भी ठीक नहीं हैं, हिंसा की वारदात को अंजाम देते रहते हैं। ऐसे में माना यही जा रहा है कि अब सिर्फ इस्लाम के नाम पर ये देश पाकिस्तान का समर्थन नहीं करेंगे.।
अब इस्लाम-इस्लाम खतरे में चिल्लाकर इस्लामिक देशों की सहानुभुति या मदद हासिल नहीं
पाकिस्तान का डर भी इसी बात को लेकर है कि वो समझ रहा है कि अब इस्लाम-इस्लाम खतरे में चिल्लाकर इस्लामिक देशों की सहानुभुति या मदद हासिल नहीं की जा सकती। ये देश इस्लाम राजनीती से हटकर अब बदलते समय में जियो-पॉलिटिक्स पर विश्वास करने लगे हैं। अब देखा यही जा रहा है कि ज्यादातर मुस्लिम बहुल सरकारें, धार्मिक एकजुटता के बजाय भू-राजनीतिक और आर्थिक हितों को अपनी प्राथमिकता देती हैं और ऐसे में भारत के बड़े बाजार, विकास की ओर बढ़ते तमाम, नई नई तकनीक और ताकत को कोई भी देश नजरअंदाज नहीं करना चाहता , मतलब बिगाड़ना नहीं चाहता है।
ईरान और तुर्की भी लाइन पर आ गए
ईरान की ओर से पहलगाम आतंकी हमले के फौरन बाद, जिस तरह से दोनों देशों के बीच मध्यस्थता करवाने का प्रस्ताव रख दिया , वह मोदी की ही विदेशी कूटनीती का असर है कि एक कट्टरवार मुस्लिम देश ने पाकिस्तान के समर्थन में कुछ नहीं बोला। इससे पहले भी जब जम्मू-कश्मीर में 370 हटाया गया तो भी ईरान चुप ही रहा था, दूसरी तरफ पाकिस्तान सऊदी अरब को अपना सगा बताता फिरता है पर सऊदी और भारत के बीच काफी मजबूत संबंध के कारण ही यह देश भी भारत के साथ खड़ा दिख रहा है, अगर कतर की बात करें तो उसने भी खुलकर पाकिस्तान का समर्थन नहीं किया है। दूसरे खाड़ी देशों की तरह वह भी भारत से संबंध बिगाड़ने से बच रहा है और निंदा करने से परहेज किया। माना जा रहा है कि कतर के लिए पाकिस्तान की अहमियत काफी कम हो चुकी है। देखा जाए तो तुर्की और भारत के बीच कारोबार तेजी से बढ़ रहा है और ऐसे में वह भी भारत को नाराज नहीं करेगा और खुले तौर पर पाकिस्तान का समर्थन नहीं करेगा।
