Parliament ठप—– एक बार फिर Tax Payer की कमाई का मजाक

एक बार फिर संसद का शीतकालीन सत्र हंगामे का शिकार हुआ और ज्यादातर ठप रहा और एक बार फिर tax payer आदमी की कमाई मजाक बना दी गई, ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि एक दिन संसद को चलाने में करोड़ो रूपए लगते हैं और जब उस दिन कोई काम नहीं होता तो वह पैसा मिट्टी में मिला समझो। पूरे सत्र में विपक्ष ने अडानी, संभल हिंसा, मणिपुर हिंसा, बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हमले और बाबासाहेब आंबेडकर के कथित अपमान जैसे मुद्दे उठाए । मुद्दे उठाने गलत नहीं थे लेकिन उनपर चर्चा ना करके हंगामा करना वो गलत लगा। 18वीं लोकसभा का तीसरा सत्र ज्यादातर हंगामे की भेंट चढ़ गया और 26 दिनों में सिर्फ 20 बैठकें हुईं और केवल 62 घंटे ही काम हुआ। लोकसभा में 12 दिन ऐसे रहे, जब 10 मिनट से कम समय चला प्रश्न काल आपको बता दें कि इस समय सांसद सरकार से नीतियों और कार्यक्रमों पर सवाल पूछते हैं, जो दिश के के हित के लिए बहुत जरूरी भी है। पर इसका परवाह शायद किसी को नहीं । दूसरी तरफ राज्यसभा में भी काम का बुरा हाल रहा। चर्चा केवल 43 घंटे 27 मिनट तक हो सकी और उत्पादकता लगभग 40% रही, बस अच्छी बात यही रही कि एक बिल ‘एक देश, एक चुनाव’ के साथ सरकार कईं और महत्वपूर्ण विधेयक पारित करने में सफल रही। साथ में यह सत्र इसलिए भी महत्वपूर्ण रहा, क्योंकि सदन में पहली बार इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग हुई।पर कुल मिलाकर एक तरफ राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने इस तरह काम ठप कम होने पर निराशा जताई, वहीं लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने सीधे तौर पर कहा कि संसद की गरिमा और मर्यादा बनाए रखना सभी सदस्यों की जिम्मेदारी है। संसद में धरना, प्रदर्शन करना उचित नहीं है।। वैसे दोनों इससे ज्यादा कुछ और कर भी नहीं सकते ये तो हंगामा करने वाले सांसदों को देखना होगा और समझना होगा कि कोई कुछ करे या ना करें जनता अपने वोट के अधिकार से बहुत कुछ कर सकती है।

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