सबको पता है कि गुजरात के विधानसभा चुनाव होने में अभी पूरे तीन साल बाकी हैं पर राहुल गांधी इस समय जबरदस्त जोश में दिख रहे हैं और उन्होंने गुजरात में मोदी और BJP को हराने के लिए अभी से रणनीति बनानी शुरू कर दी है, पता चला है कि राहुल जल्द ही गुजरात का दौरा करने वाले हैं और यहां पर राहुल गांधी का पार्टी के बड़े नेताओं , ब्लॉक अध्यक्षों और पूर्व उम्मीदवारों से मिलने का पूरा प्लान तैयाक कर लिया गया है। अब जाहिर है राहुल गुजरात में मोदी को हराने की बात कर रहे हैं तो चर्चा तो बनेगी ही , पर इसके पीछे कारण ढूंढे जा रहे हैं क्योंकि सबको पता है कि हाल फिलहाल में हरियाणा, दिल्ली और काफी हद तक महाराष्ट्र चुनाव में राहुल काफी सक्रिय थे पर कोई रिजल्ट नहीं दे पाए तो अब उन्हें गुजरात की कैसे याद आ गई जो मोदी का गढ़ है और यहां कांग्रेस को एक एक सीट जीतने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। तो पता यही चला है कि कांग्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन जल्दी होने वाला है और यहां राहुल को अपना रूतबा दिखाने या बढ़ाने के लिए एक ठोस मुद्दा चाहिए जो उन्होंने गुजरात के रूप में ढूंढ लिया है , गुजरात में कांग्रेस की जमीन को टटोलने के बाद राहुल अधिवेशन में गुजरात पर जीत की रणनीति बनाने पर ही पूरा जोर लगाने की सोच रहे हैं, चलिए अब देखते हैं कि राहुल की इतने पहले शुरू की गई तैयारी, गुजरात चुनाव में कांग्रेस की झोली में कुछ सीट डालने में कामयाब हो पाती है या नहीं।
प्रशांत किशोर खेल रहे डबल Play

बिहार चुनाव जैसे जैसे पास आ रहे हैं प्रशांत किशोर खुलकर के नीतीश कुमार के खिलाफ बोल रहे हैं, पीके ने हाल ही में एक सार्वजनिक सभा में दौबारा यह यह बात दोहराई की बिहार सीएम मानसिक रूप से बीमार हैं और उनकी medical invstigation report सार्वजनिक की जाए। वहीं पीके ने बीजेपी और jdu के relation पर भी सवाल खड़े कर दिए। उन्होनें रहा कि विधानसभा चुनाव में अगर एनडीए जीतती है तो वह किसी कीमत पर (नीतीश को मुख्यमंत्री नहीं बनाएगी। और अगर ऐसा नहीं हुआ तो वो राजनीती ही छोड़ देंगे , आपको बता दें इससे पहले पीके ने यह भी कहा था कि नीतीश की memory weak हो चुकी है और उन्हें अगर अपने मंत्रियों के नाम याद हैं तो वह एनडीए को support कर देंगे। अब पीके की इस रणनीती के पीछे क्या खेला चल रहा है चाहे आम जनता को समझ में नहीं आ रहा पर राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि पीके बहुत ही सोच समझ कर बिहार में काम कर रहे हैं वो नीतीश से तो बिगाड़ रहे हैं पर बीजेपी के खिलाफ ज्यादा कुछ नहीं बोल रहे और ऐसा करके वो एक दरवाजा खुला रखना चाहते हैं कि किसी कारण विधानसभा चुनाव में उन्हें सफलता नहीं मिली तो बीजेपी के साथी बनकर एनडीए में शामिल हो सकते हैं और नीतिश की absence में उन्हें कुछ अच्छा पद , रूतबा मिल सकता है और शायद यही कारण है कि वो बिहार नें बीजेपी और केंद्र की बुराई करने से बच रहे हैं।
BJP क्यों नहीं हो रहा अध्यक्ष पद का नाम घोषित
क्या कारण है कि जनवरी में भाजपा को मिलने वाला नया अध्यक्ष अब नहीं मिलेगा और जेपी नड्डा साहिब को अध्यक्ष पद की कुर्सी का फायदा मिलता रहेगा। जी हां पहले तय हुआ था कि जनवरी में बीजेपी के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष की घोषणा कर दी जाएगी पर अब यह आगे टाल दी गई है। इसके पीछे कईं तरह की चर्चाएं चल रही हैं पहला कि मार्च में बेंगलुरू में आरएसएस की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा होने जा रही है और उसपर नए अध्यक्ष के नाम पर चर्चा हो सकती है और सभा के बाद अप्रैल में इसकी घोषणा कर दी जाए। दूसरा यह भी कहा जा रहा है कि अध्यक्ष के चुनाव में देरी के लिए एक तर्क हिंदू नववर्ष का दिया जा रहा है। हिंदू नववर्ष की शुरूआत 30 मार्च से हो रही है और इसके बाद ही अधयक्ष पद का चुनाव होगा। लेकिन छन छन कर यह भी खबरें आ रही हैं कि अध्यक्ष पद की दौड़ में कईं जाने माने नेताओं के नाम शामिल हैं और उन नामों के लिए rss और मोदी में अभी सहमति नहीं बन पाई है जिससे यह चुनाव लगातार टल रहा है, और इसको लेकर कांगेस समते तमाम विपक्ष बीजेपी पर तंज कस रहे हैं कि अनुशासित और सबसे बड़ी पार्टी होने का दम भरने वाली बीजेपी अपने अधय्क्ष का नाम तक तय नहीं कर पा रही हैं।
