RSS और BJP में फिर खिंची तलवारें
सरना कोड यानी सरना विधि संहिता को लेकर एक बार फिर BJP और RSS में तलवारें खिच सकती हैं, क्योंकि इस तरह का माहौल बनना शुरू हो गया है। दरअसल झारखंड में आदिवासियों को रिझाने के लिेए सोरेन सरकार ने सरना को धर्म मानने का प्रस्ताव पहले ही विधानसभा में पारित कर दिया था। तब BJP इसके पक्ष में नहीं थी, पर अब चुनावों के माहौल में जिस तरह से बीजेपी के बयान सामने आ रहे हैं उससे साफ लग रहा है कि वह भी सरना धर्मकोड लागू करने के पक्ष में है।
पर दूसरी तरफ RSS इसके बिल्कुल खिलाफ है संघ और उससे जुड़ा विश्व हिंदू परिषद, धर्म जागरण मंच तथा और संस्थाएं – सभी कह रहे हैं कि कि आदिवासी किसी भी समूह के हों, उनकी जाति जो भी हो, वे सभी हिंदू धर्म के ही अंग हैं। सरना अलग धर्म नहीं हो सकता। वैसे केवल संघ ही नहीं, आदिवासियों से जुड़े मुद्दों पर काम करने वाले तमाम लोग और खुद आदिवासियों का एक बड़ा तबका भी सरना को अलग धर्म मानने के पक्ष में नहीं रहा है। इनका मानना है कि हिंदू धर्म से अलग करने के लिए अंग्रेजों ने जनगणना में सरना धर्म कोड का अलग से कॉलम दिया था, जिसे 1951 में खत्म कर दिया गया था आपको बता दें कि झारखंड, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, बिहार और ओडिशा के छोटा नागपुर क्षेत्र के आदिवासियों का सरना एक पारंपरिक पूजा स्थल है। ग्रामवासी अपने उत्सवों में यहां जुटते हैं, अनुष्ठान करते हैं।
एकनाथ शिंदे को गुस्सा क्यों आया
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को बहुत ही नरम और शांत स्वाभाव का नेता माना जाता है। शायद ही कोई घटना सामने आई होगी जो लोगों ने एकनाथ शिंदे को गुस्सा करते हुए देखा। पर हाल ही में महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के बीच कुछ ऐसा हो गया कि एकनाथ शिंदे अपना आपा खो बैठे और उन्हें जबरदस्त गुस्सा आ गया। दरअसल मुंबई में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे का काफिला चांदीवली विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस के नेता नसीम अहमद खान के दफ्तर से बाहर से निकला तो कुछ कार्यकर्ताओं ने गद्दार-गद्दार कहकर नारेबाजी शुरू कर दी है। बस फिर क्या था शांत रहने वाले शिंदे को इस नारेबाजी से जबरदस्त गुस्सा आ गया। उन्होंने किसी बात की परवाह नहीं की और काफिले को रोककर सीधे ही कुछ ही दूरी पर स्थित कांग्रेस नेता के दफ्तर में पहुंच गए। सीएम एकनाथ शिंदे ने कांग्रेस के नेता नसीम खान के दफ्तर में मौजूद नेताओं से कहा कि क्या आप अपने कार्यकर्ताओं को यही सिखाते हैं। इस पूरी घटना का वीडियो भी सोशल मीडिया पर सामने आया है।
पता यही चला है कि नसीम खा के कार्यालय के बाहर मौजूद उद्धव ठाकरे के कार्यकर्ताओं ने एकनाथ शिंद के खिलाफ नारेबाजी की थी । यही नहीं संतोष काटके नाम के युवक ने मुख्यमंत्री के खिलाफ अभद्र भाषा का भी प्रयोग किया था। पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर छोड़ भी दिया , पर उसे अपनी हरकत पर कोई शर्मिंदगी नहीं दिखी और छोड़े जाने के बाद भी वह कहने से बाज नहीं आया की क्या शिंदे को गद्दार कहना कोई गुनाह है?
क्या राजनीतिक दल खत्म कर रहे हैं Opinion Poll बजट
लगता है कि ओपिनियन पोल के दिन लद्द गए हैं , छन छन कर खबरें बाहर आ रही है कि लगभग सभी दल ओपनियिन पोल पर होने वाले अपने खर्च और बजट में जबरदस्त कटौती कर रहे हैं। हाल ही में एक गठबंधन की मीटिंग में जब चुनावी रणनीतिकारों ने कद्दावर नेताओं के सामने पोल के नंबर रखने शुरू किए तो नेताओं ने उन्हें तुरंत टोक दिया और कहा कि अब इसपर भरोसा नहीं आप सिर्फ चुनावप्रचार की रणनीति पर फोकस करें वैसे यह ठीक भी लगता है जिस तरह से पिछले कुछ समय से ओपिनियन पोल के नतीजे गलत साबित हो रहे हैं राजनीतिक दलों का इस पर से विश्वास उठ गया है।इसकी विश्वसनीयता को लेकर भी प्रश्न उठने लगे हैं कि क्या ये राजनीतिक और व्यावसायिक लाभ से ज्यादा प्रेरित होते हैं। हाल ही की बात करें तो हरियाणा के चुनाव इसका जीता जागता उदाहरण है सभी पोल कांग्रेस को जिता चुके थे पर बीजेपी ने बाजी मार ली, इससे पहले भी सभी पोल नतीजों ने छतीसगढ में कांग्रेस की सरकार बना दी थी पर बनी बीजेपी की सरकार। सबसे बड़ी बात लोकसभा चुनाव में ज्यादातर पोल मोदी सरकार को अच्छी खासी सीट दे रहे थे पर सरकार बनाने के लिए भी मोदी सरकार को अनय् दलों का सहारा लेना पड़ा