Rss का गुस्सा

बीजेपी के शासनकाल में कुछ ऐसे नेता रहे हैं जिन्होनें अपने काम के जरिए अपने राजनीतिक करियर को शिखर तक पहुंचाया पर एक समय के बाद राजनीतिक के शिखर पर चमकने वाले ये सितारे अचानक ही कहां खो गए। इनके बारे में कभी कभार इक्का दुक्का खबरे आ जाती हैं पर मुख्य राजनीति में इनका कोई स्थान नजर ही नहीं आता है और आज हम ऐसे ही तीन नेताओं के बारे में बात करेंगे, जिन्होंनें राजनीति में अपनी गहरी छाप छोड़ी है।

उमा भारती

उमा भारती

सबसे पहले बात करते हैं उमा भारती की। सबको पता है कि अपने समय में उमा भारती की तूती बोलती थी, केंद्रीय नेतृत्व में इनकी बहुत अहम भूमिका रही। भारतीय राजनीति में लंबे समय तक कट्टरवादी हिंदुत्व की छवि रखने वाली उमा भारती के बारे में कहा जाता है कि वह कभी भाजपा के मौजूदा नेतृत्व के खिलाफ झुकी नहीं और यही कारण रहा कि इस समय राजनीति गलियारों में उनकी चर्चा ना के बराबर होती है। वैसे अपने बलबूते पर उम भारती आगामी लोक सभा चुनाव लड़ने को काफी इच्छुक हैं और हाल ही मध्य प्रदेश में विधान सभा चुनावों के प्रचार अभियान के दौरान सुश्री उमा भारती ने इस की मंशा जाहिर भी की थी।

आपको बता दें कि ये उमा भारती ही थी जिनहोने वर्ष 2003 में मध्य प्रदेश में कांग्रेस के दस साल पुराना किले में सेंध लगा कर भाजपा की सरकार गठित की जिसकी वे मुख्यमंत्री बनीं। ये जानना भी जरूरी है कि अपने राजनीतिक सफर के शुरआती दौर में शिवराज चौहान ने राजनीति के गुर संयासिनी उमा भारती से ही सीखे थे। इस कला में चौहान बहुत जल्दी निपुण हो गए और बहुत जल्द अपनी गुरु यानी उमाभारती को साइड लाइन करके मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए और पिछले काफी सालों से वहां राज भी कर रहे हैं।

भाजपा के भीतर सुश्री भारती का स्थान उन गिने चुने नेताओं में शुमार है जिन्होंने हिंदुत्व के साथ साथ जातीय राजनीति की। हिंदुत्व के प्रति उनका समर्पण और ओजस्वी उग्र भाषण क्षमता उनको मोदी से कहीं भी कम नहीं आंकने देती है। इसके अलावा राम मंदिर आंदोलन में उमा भारती का योगदान मोदी के मुकाबले कहीं अधिक है।


भारत की हिंदुत्ववादी दक्षिणपंथी राजनीति में उमा भारती को लाल किशन आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, कल्याण सिंह आदि से कम नहीं आंका जाता। बाबरी मस्ज़िद विध्वंस में भाजपा के उन नेताओं में शुमार होता जिनके खिलाफ मस्जिद ध्वंस करने के आरोप में मुकदमा चलाया गया था।

एक बार भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी को उनके भाषण के दौरान टोकने के कारण उमा भारती को तत्कालीन पार्टी नेतृत्व और आरएसएस की नाराजगी का शिकार होना पड़ा था जिसके फलस्वरूप 2004 में सुश्री भारती को भाजपा से निष्कासित कर दिया गया था। भाजपा से निकलने के बाद भारती ने भारतीय जनशक्ति पार्टी का गठन किया जो नाकाम रहा। इसके बाद 2007 कईं कारणों के चलते उमा भारती की पार्टी में वापसी हो गई।

तीन मई 1959 में जन्मी उमा भारती को भाजपा में शामिल करने श्रेय राजमाता विज्याराजे सिंधिया को जाता है। सिंधिया के आरम्भिक प्रोत्साहन के बाद उमा भारती ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और अपने उग्र भाषणों से पार्टी के शीर्ष नेतृत्व में शामिल हो गईं।
उमा अपने राजनीतिक और संसदीय सफर में 1984 से लेकर 2003 तक लोक सभा सदस्य और कैबिनेट मंत्री रही थीं। तेज तर्रार और जमीन से जुड़ी उमा भारती हमेशा महिलाओं को नौकरियों में 27 प्रतिशतऔर चुनावों में 50 प्रतिशत आरक्षण हिमायती रही हैं

वैसे मोदी और अमित शाह की जोड़ी के रहते भाजपा की राजनीति में उमा भारती की वापसी होती है या नहीं यह तो वक्त बताएगा। पर बदले माहौल में उमा भारती के लिए यह कर पाना टेडी खीर जरूर है।

मुप्पवरप्ले वेंकैया नायडू

बीजेपी की राजनीति में छाए रहने वाले मुप्पवरप्ले वेंकैया नायडू का शुमार भारतीय राजनीतिक पटल में एक बड़ी पारी खेलने वाले उस राजनीतिक योद्धा के रूप में होता है जो बिना किसी खास विवाद के राजनीति से सम्मानपूर्वक
रिटायर हो गए। दक्षिण भारत में बीजेपी को एक उचित स्थान दिलाने में वैकेंया का नाम सबसे पहले आता है।

जिस समय वैंकेया बीजेपी में आए उस समय तक बीजेपी की दक्षिण भारत में कोई खास पकड़ नहीं थी लेकिन जब वैंकया जैसे कुशल राजनितीज्ञ ने बीजेपी में कदम रखा तो उनसे प्रभावित होकर ना केवल बहुत से दक्षिण के नेताओं ने बीजेपी का दामन थामा बलिक दक्षिण भारत जहां क्षेत्रीय पार्टियों के साथ कांग्रेस का ही बोलबाला रहता था , वहां की जनता ने भी बीजपी को पहचाना और बड़ी संख्या में अपनाना शुरू किया।

राजनीतिक गलियारों में बोलचाल की भाषा में उन्हे अभी तक वेंकैया के नाम से जाना जाता है। । वेंकैया नायडू 2002 से 2004 तक भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे। 2022 में भारत के 13वें उपराष्ट्रपति पद छोड़ने के बाद से अभी तक उनका नाम फिलहाल किसी भी राजनीतिक घटनाक्रम से नहीं जुड़ा और वो इन दिनों वो राजनीति से बिलुकल परे हैदराबाद और नई दिल्ली स्थित अपने विभिन्न आवासों में पठन पाठन के साथ शांतिपूर्ण जीवन व्यतीत कर रहे हैं।

अपनी सरलता और साथ ही गंभीरता से वेंकैया हमेशा एक ऐसे लोकप्रिय नेता बने रहे जिन तक पहुंचना बहुत आसान था, फिर चाहे वो आम आदमी हो या पत्रकार। वे संसद और संसद के बाहर अपनी वाकपटुता के लिए भी मशहूर थे। चुटकी लेने से कभी नहीं चूकते थे , मौका चाहे कोई हो।

उपाध्यक्ष के रूप में राज्य सभा में भी वेंकैया का कार्यकाल कुछ अपवादों को छोड़कर सामान्य रहा। कहा जाता है वेकेया भी सरकार की मदद करने के लिए विपक्ष पर बुलडोजर चलाने से कभी भी नहीं चूकते थे।

यूं तो राष्ट्रीय राजधानी में लगभग सभी वरिष्ठ नेता और मंत्री सर्दियों के मौसम में पत्रकारों और राजनीतिक हस्तियों को अक्सर अपने आवास पर लंच पर आमंत्रित करते रहते हैं। परंतु, इस मामले में वेंकैया की मेजबानी हमेशा अव्वल दर्ज की रही थी । उसके लंच भोज में दक्षिण भारतीय व्यंजनों की जो विविधता और स्वाद था वो कही नहीं मिलता था चाहे शाकाहारी हो या मांसाहारी।

आंध्र प्रदेश के एक किसान परिवार में जन्मे वेंकैया नायडू ने 1973 एबीवीपी के एक स्थानीय नेता के रूप में राजनीति में प्रवेश किया और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। 1977 में जनता पार्टी की लहर में वे आंध्र प्रदेश से विधायक बने और 1980 से लेकर 1985 तक प्रदेश विधान सभा में भाजपा विधायक दल के नेता रहे।

इस दौरान पार्टी के राष्ट्रीय स्तर के नेताओं की नजर में चढ़ जाने के कारण उनका राजनीतिक ग्राफ बड़ने लगा और 1990 का दशक आते आते वेंकैया, लाल कृष्ण आडवाणी के करीबियों में शामिल हो गए। इस तरह उनका राष्ट्रीय राजनीति में उत्थान हुआ फिर एक के बाद एक सीढ़ी चढ़ते गए।


भारत का उपराष्ट्रपति बनने से पहले तक वेंकैया राज्य सभा सदस्य होने के कारण पहले प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेई सरकार में सूचना और प्रसारण, और ग्रामीण विकास मंत्री रहे और फिर मोदी सरकार में शहरी विकास मंत्री बने।
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 2017 में वेंकैया का नाम उपराष्ट्रपति पद के लिए पेश किया और 2022 में वह इसी पद से रिटायर हुए , लेकिन कहा जाता है कि जाते जाते उनको एक मलाल रह गया कि वे राष्ट्रपति नहीं बन पाए , बावजूद मोदी और शाह के साथ मधुर संबंध होने के।

सुरेश प्रभु

सुरेश प्रभु

अब बात करते हैं सुरेश प्रभु की । जो शिवसेना छोड़कर बीजेपी में आए थे और आते के साथ ही अपने कामकाज से सबका दिल जीता। सुरेश प्रभु को जब रेलमंत्री का काम सौंपा गया तो उन्हें टीवटर मैन के नाम से ज्यादा पहचाना गया। देखा गया था कि रेल संबंधी कोई भी शिकायत मंत्री को टीवटर पर किसी समय भी मिलती थी वो उसका निदान करवाते थे।

उनकी मानवता और अपने काम के लिेए निष्ठा का एक किस्सा बहुत मशहूर हुआ था। एक बार रेल में एक महिला को अपने बच्चे के लिए दूध नहीं मिला था और इसके बारे में उसने टीवटर पर रेल मंत्री से दूध पहुंचाने की गुहार की थी और रेल मंत्री ने उस गुहार पर चलती ट्रेन के अंदर दूध की व्यवस्था करवाई थी। यह किस्सा बहुत ज्यादा चर्चा का विषय बना था। इसके अलावा भी बहुत से ऐसे किस्से रहे जहां सुरेश प्रभु ने टीवटर पर आई हर समस्या का आगे से आगे बढ़कर समाधान किया।

सुरेश प्रभु को भारतीय राजनीति में एक ऐसे राजनीतिज्ञ के रूप में जाना जाता है जिनकी कोई विचारधारा नहीं थी और इसीलिए वे उद्योग जगत के सबसे चहेते मंत्री माने जाते थे।

प्रभु के बारे में यह राय किसी और की नहीं बल्कि एक समय में उनके अभिभावक कहे जाने वाले बाल ठाकरे ने कायम की थी जो कालांतर में समूचे राजनीतिक गलियारे में सबकी जुबान पर चढ़ गई। एक तरह से सत्ता की राजनीति से सन्यास लेकर प्रभु इन दिनों एक राष्ट्रीय सहकारी नीति का मसौदा तैयार करने में लगे हुए हैं।


यह काम उनको प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गृह मंत्री अमित शाह की सिफारिश पर सौंपा है। मोदी और शाह की सहकारिता क्षेत्र में खासी दिलचस्पी है। दोनों ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत अमूल दूध उत्पादक सहकारी समिति की राजनीति से की थी। इसका उदाहरण मिलता है कर्नाटक में इस जोड़ी द्वारा स्थानीय सहकारिता दूध उत्पाद नंदिनी का अमूल दूध सहकारी समिति में विलय की कोशिश जो चुनाव हारने के कारण नाकाम हो गई।


सुरेश प्रभु पहले अटल बिहारी बाजपेई के नेतृत्व वाली प्रथम एनडीए सरकार में शिव सेना के प्रतिनिधि के रूप में कैबिनेट मंत्री रहे। बाद में नरेंद्र मोदी ने भी उनको अपनी कैबिनेट में बनाए रखा क्योंकि तब वे शिव सेना छोड़कर भाजपा में शामिल हो चुके थे।

उनको शिव सेना इसलिए छोड़नी पड़ी क्योंकि वे उद्योग, रेल, वाणिज्य और ऊर्जा जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालयों में रहते हुए भी पार्टी की बजाय उद्योगपतियों के हित ज्यादा साधते थे। उनके बारे में यह आम राय थी कि वह अपने विभाग में एक सीईओ की तरह काम करते हैं बनिस्बत एक राजनीति होने के।


इसी कमी के कारण ही उनको शिव सेना छोड़नी पड़ी थी और इसके चलते ही मोदी ने भी उनको अपने मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता दिखा दिया था। प्रभु की एक और कमी यह थी की वे जमीन से बिलकुल नहीं जुड़े थे और न ही उनका पार्टी कार्यकर्ताओं से कोई संपर्क था।

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सरकार के दूसरे कार्यकाल के दौरान 2012 में एक ऐसा भी समय आया था जब तत्कालीन कृषि मंत्री और महाराष्ट्र के दिग्गज नेता शरद पवार ने यूपीए गठबंधन से बाहर निकलने के संकेत दिए थे।


तब प्रभु ने शरद पवार और नवीन पटनायक के बीच तीसरे मोर्चे के गठन की संभव तलाशने के आशय से एक बैठक करवाई थी। सोनिया गांधी को समय रहते इसकी जानकारी मिल जाने से वह दाव नाकाम हो गया था।


हालांकि अपने लंबे राजनीतिक सफर में सुरेश प्रभु बिना प्रचार किए काम करने के कारण विवादों में इक्का दुक्का ही घिरे, पर 1996 में एक बार वे एक फर्जी चेक घोटाले में बुरी तरह से फंस गए थे क्योंकि केरल की एक अदालत ने उनके खिलाफ एक गैर जमानती वारंट जारी कर दिया था।

दरअसल, वेस्टर्न इंडिया फाइनेंशियल सर्विसेज नामक जिस कंपनी ने फर्जी चैक जारी किए थे प्रभु उस कंपनी के निदेशकों में शामिल थे। इस मामले को लेकर संसद में खासा हंगामा हुआ था और विपक्ष ने उनके इस्तीफे की भी मांग की थी। प्रभु को इस संकट से शरद पवार ने हो बाहर निकाला था।

ग्यारह जुलाई उन्नीस सौ त्रेपन को जन्मे सुरेश प्रभु महाराष्ट्र के कोंकण इलाके से आते हैं। वाजपाई और मोदी सरकारों में कई महत्वपूर्ण विभाग संभालने वाले प्रभु 1996 से 2009 तक लोक सभा सांसद रहे। उन्होंने 2009 के बाद शिव सेना छोड़ दी और भाजपा में शामिल हो गए। वे 2016 से 2022 तक राज्य सभा सदस्य भी रहे।


पेशे से चार्टर्ड अकाउंटेंट प्रभु ऋषिहुड विश्व विद्यालय के कुलपति भी हैं। वे लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के अथिति प्रोफेसर भी हैं। रेल मंत्री के रूप प्रभु के कार्यकाल के दौरान कई रेल दुर्घटनाएं हुईं जिस कारण उनका तबादला वाणिज्य मंत्रालय में कर दिया गया था। लेकिन अपने राजनीति करियर में इतना सभल रहने वाले सुरेश प्रभु आज राजनीति से बिल्कुल दूर हैं

Read More: विपक्षी एकता बिखरी राज्यों में – लोकसभा चुनाव तक क्या गठबंधन बचा पाएगा – 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Get more stuff like this

in your inbox

Subscribe to our mailing list and get interesting stuff and updates to your email inbox.

we respect your privacy and take protecting it seriously