कर्नाटक RSS के खिलाफ Congrees मुहिम को करारा झटका

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के खिलाफ कांग्रेस हमेशा से नजरें टेढ़ी रखता है  और कांग्रेस की केंद्र सरकार ने अब तक तीन बार RSS   को प्रतिबंधित कर दिया  था। हालांकि तीनों बार कांग्रेस  ने ही उस प्रतिबंध वापस लिया। लेकिन जब कांग्रेस जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपना शताब्दी वर्ष मना रहा है और पूरे देश में बहुत जोर शोर ढंग से मना रहा है। उस समय कांग्रेस के सरकारों द्वारा या ये कह लीजिए विपक्ष की सरकारों के द्वारा संघ पर हमले भी तेज हुए हैं। और उसी हमले का एक हिस्सा ये है कि कर्नाटक की सरकार ने आरएसएस का हालांकि बिना नाम लिए किसी भी संगठन को की 10 से ज्यादा गैदरिंग पर प्रतिबंध लगाया था। वो RSS को टारगेट करके ही लगाया गया था और उस प्रतिबंध को लगाने के लिए जो कर्नाटक सरकार में  मंत्री ,  प्रियंक खड़गे, जो मलिकार्जुन खड़गे, कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष ,  उनके बेटे हैं।  उन्होंने मुख्यमंत्री सीतारमैया को एक चिट्ठी लिखी थी कि संघ की गतिविधियों को या संघ को सरकारी जमीन पर कोई किसी भी एक्टिविटी को करने से रोका जाना चाहिए। इसको लेकर के मुख्यमंत्री सीतारमैया ने चीफ सेक्रेटरी शालिनी रजनीश को एक चिट्ठी लिख करके बोला था।
तमिलनाडू में है RSS के लिए नियम

 ये भी पूछा कि  जिस तरह से तमिलनाडु की सरकार ने संघ को या इस तरह के संगठनों को कोई कार्यक्रम करने रोकने या उसमें एक नियम बना रखा है। उसको किस तरह से कर्नाटक में लागू किया जा सकता है। इस पर अभी शायद बहुत सारी चीजें की जानी है। बाकी है। लेकिन जो कर्नाटक सरकार ने एक इस तरह का एक ऑर्डर जारी किया था। उस आर्डर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जो है वो सरकार के आर्डर के खिलाफ अदालत गया। अदालत में मतलब उस जो सरकार का आर्डर था उसके हिसाब से अगर 10 से ज्यादा लोग बिना पूर्व परमिशन के इकट्ठा होते हैं तो उसको क्रिमिनल ऑफेंस माना जाएगा।  उसको लेकर के संघ हाई कोर्ट गया और हाई कोर्ट ने जो अपना आर्डर दिया उसमें आर्टिकल 19 वन ए और आर्ट वन बी को इनवोक करते हुए फ्रीडम ऑफ स्पीच एंड पीसफुल असेंबली ये इसको जो है सरकार जो है इस पर उसको ओवराइड नहीं कर सकती। सरकार इसको रोक नहीं लगा सकती और इस पर एक अंतरिम आदेश दे दिया गया जो है इस पर इस पर जो है अंतरिम आदेश दे दिया गया और संघ का या लोगों का कहना है कि ये जो है संघ की जो गतिविधियां है वो समाज सेवा के लिए हैं। पीसफुल एक्टिविटीज है तो उस पर केवल एक वेंडेटा के तहत ही यह सारे कार्यक्रम किए जाते हैं। जिसको कोर्ट ने प्रतिबंधित कर दिया।
RSS के खिलाफ Congress लगातार दुष्प्रचार करती रही और मु्ंह की खानी पड़ी

 अब इस तरह का एक और घटना महाराष्ट्र में हुई थी जहां संघ की सदस्यता का अभियान था और उस अभियान का जो काउंटर था उसको जबरदस्ती हटा दिया गया और जो संघ का स्वयंसेवक था उसके साथ बदतमीजी की जिसके बाद वहां पर पुलिस ने दो लोगों के खिलाफ सुमोटो नोटिस लिया जिसके बाद जो छत्रपति शाहू जी महाराज जो औरंगाबाद पुराना औरंगाबाद जिला है वहां का जो हेड क्वार्टर है आरएसएस का उसको घेराव किया गया और विरोध प्रदर्शन किया गया। अब ये वंचित बहुजन आघाड़ी करके एक संगठन है जो प्रकाश अंबेडकर का है उसके द्वारा किया गया। प्रकाश अंबेडकर को अपनी राजनीतिक लेजिटिमेसी खोजनी है। यह वह कर रहे हैं लेकिन  महाराष्ट्र में संघ का स्वयंसेवक मुख्यमंत्री है। देश में संघ का स्वयं सेवक प्रधानमंत्री है। तो यह बात लोगों को समझ में आनी चाहिए और चुनाव जीत करके इस डेमोक्रेटिक प्रक्रिया में आप जाकर के प्रतिबंधित कर सकते हैं। किसी भी संगठन को आप प्रतिबंधित करते हैं। लेकिन उसको यह ध्यान रखना पड़ेगा कि उसके पीछे जो ग्राउंड्स हैं वो उपलब्ध कराने पड़ेंगे
Congress ने तीन बार प्रतिबंध लगाने की कोशिश की तीनों बार असफल

किसी संगठन को प्रतिबंधित करने के लिए। इसलिए कि तीन बार जो संघ पर प्रतिबंध लगाया गया था 1948 में 19 75 में और उसके बाद 1992 में तीनों बार जिन लोगों ने संघ पर प्रतिबंध लगाया उन लोगों को ही मुंह की खानी पड़ी। इसलिए कि उनके पास इन अपने प्रतिबंध को कोर्ट में साबित करने के लिए उस प्रतिबंध को के पीछे जो तर्क होता है किस ग्राउंड होता है कि किस लिए किसी संगठन को प्रतिबंधित किया और उसके पीछे कारण देना पड़ता है वो कारण नहीं दे पाते।सरदार पटेल ने अपनी चिट्ठियों में लिखा कि संघ जो पहले पहला बार प्रतिबंध लगा था उसमें गांधी की हत्या का आरोप था। सरदार पटेल ने नेहरू को चिट्ठी लिख के बोला था कि मैं जिस तरह से इन्वेस्टिगेशन पर नजर रख रहा हूं उसको देख के मैं कह सकता हूं कि संघ का इसमें कोई भूमिका नहीं है। 75 में इमरजेंसी के समय लगा था और 1992 में राम जो बाबरी ढांचा है उसके डिमोलिशन के बाद लगा था। उसके बाद जस्टिस बहेरा कमेटी ने 92 का जो संघ पर प्रतिबंध लगा था जस्टिस बहेरा कमेटी ने उसको अनजस्टिफाइड गैर कानानूनी बताया था। उसके बाद प्रतिबंध हटाया गया था। अब वही काम फिर एक बार हुआ है जब कर्नाटक हाईकोर्ट ने इस पूरे मामले कोपूरे मामले को गलत बताते हुए इसको संविधान के हिसाब से गलत बताते हुए संघ के कार्यक्रम पर प्रतिबंध लगाने से मना कर दिया है। इसके पहले एक बार तमिलनाडु में भी हुआ था जब संघ के मार्च को रोकने रोका था वहां की सरकार ने ये कहते हुए कि जिस रास्ते से संघ गुजर रहा है संघ का मार्च गुजरेगा उसके बहुत सारे इलाके जो हैं वहां पर मुस्लिम विलेजेस या मुस्लिम एरियाज हैं जो कम्युनल रॉइटस का कारण हो सकते हैं जिस पर तब हाई कोर्ट ने यह बोला था कि सड़क जो है वो सरकार की होती है और संघ का जो जूलूस  निकलेगा वो सड़क पर निकलेगा। इस देश में कोई भी मुस्लिम मेजॉरिटी हिंदू मेजॉरिटी एरिया नहीं है। ये देश सबका है और उसके बाद सरकार को अलऊ करना पड़ा था तमिलनाडु की सरकार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मार्च को। अब वैसा ही मार्च एक बार फिर आयोजित किया जा रहा था जिस पर ये रोका गया। अह अब इसमें जो चाहे प्रियांक खड़गे हो या सीधा रमैया के एमएलसी सुपुत्र हो जिन्होंने आरएसएस को टेररिस्ट ऑर्गेनाइजेशन के बाद जो के उस तरह से जोड़ने की कोशिश की थी लेकिन इन सब के बावजूद ऐसा हो नहीं पाया। कर्नाटक सरकार ने 2013 का एक सर्कुलर बताने की कोशिश की। अदालत को बताने की कोशिश की। लेकिन अदालत ने उसको अस्वीकार कर दिया। कुल मिलाकर के जो स्थिति है उन उन परिस्थितियों में किसी भी संगठन को जो पीसफुल तरीके से काम करता है जो समाज सेवा का काम करता है उसकी गैदरिंग को आप अनावश्यक रूप से प्रतिबंधित नहीं कर सकते और तब जब इसके पीछे आपके अल्टीरियर मोटिव्स हो आपका अपना एजेंडा हो और कांग्रेस लगातार इस तरह के काम करती रही है।
अब तक RSS को जितना Target किया वो उतना ही Grow करा

 कांग्रेस के बड़े नेता राहुल गांधी से लेकर के मल्लिकार्जुन खड़गे और उसके अलावा बाकी जो कांग्रेस के छोटे-मोटे नेता हैं, वह सब भी संघ को टारगेट करते हैं और जितना संघ को टारगेट करते हैं, संघ उतना ग्रो करता है। और तो और दिग्विजय सिंह जैसे नेताओं ने तो जो 2611 था उसको आरएसएस की साजिश बता दिया था। अजीज बरनी नाम के एक जर्नलिस्ट ने उर्दू के जर्नलिस्ट हैं। उन्होंने एक किताब भी लिखी थी और यही कांग्रेस के लोग हैं जिन्होंने सैफरन टेरर का एक एजेंडा चलाया था। वो एक बड़ी डिबेट है। लेकिन कुल मिलाकर के जो संघ पर संघ पर संघ के कार्यक्रमों को प्रतिबंधित करने की कोशिश थी। उस पर एक बार फिर कांग्रेस को मुंह की खानी
इंदिरा गांधी ने सरकारी कर्मचारियों को संघ के कार्यक्रमों में भाग लेने से मना किया, मोदी ने आदेश खत्म किया

एक और मसला है 1964 में इंदिरा गांधी ने सरकारी कर्मचारियों को संघ के कार्यक्रमों में भाग लेने से मना किया था। जिसको नरेंद्र मोदी सरकार ने निरस्त कर दिया है। अब कुल मिलाकर के जो इस मामले में विपक्ष की सरकारें हैं वो अपना एजेंडा चला रही हैं और उस एजेंडे के पीछे ज्यादा सक्रियता इसलिए भी है क्योंकि इस बार यह rss  100 वां  साल है।
                        
                        
	                                          
 
 