जानवरों पर होते अत्याचार हर कोई क्यों खामोश है
कभी आपने सोचा है कि आपकी धार्मिक यात्रा को सफलतापूर्वक अंजाम देने वाले हजारों खच्चर और धोडों की जिंदगी बहुत बार आपकी यात्रा खत्म होने के साथ ही खत्म हो जाती है। जी हां उनकी मौत हो जाती है । आइए जानते हैं इसके पीछे कईं दर्दनाक कारणों के बारे में । साथ ही जानते हैं कि विश्वभर में भी जानवरों पर हो रहे हैं कईं तरह के अत्याचार
समय पर नहीं मिलता खाना-पानी
सबसे बड़ा कारण है कि धार्मिक यात्रा पर लगे खच्चरों -धोड़ों की बहुत बार समय पर खाना ना मिलने, पानी की कमी के चलते मौत हो जाती है। कईं बार ये फिसल कर नीचे गिर जाते हैं और तड़प-तड़प कर मर जाते हैं। ये तो आम बात है कि पैसा कमाने के चक्चर में इनके मलिक इन्हें बिना आराम दिए लगातार चक्चर लगवाते रहते हैं और ऐसे में बहुत थकानट, खराब हेल्थ के चलते ये दम तोड़ देते हैं।
यही नहीं हाल ही में वीडियो वायरल भी हुआ जिसमें एक घोड़े को नशे का सेवन करवाया जा रहा था जिससे वह अपने दर्द को महसूस ना कर पाए। ऐसे बहुत से मामले होते हैं लेकिन इक्का-दुक्का ही सामने आ पाता है और इस तरह की प्रेकिटल धडल्ले से चलती रहती है।
जहां हेलीकाप्टर सेवाएं नहीं वहां होता है ज्यादा दुरूपयोग
सबको पता है कि पहाड़ों पर अपने भारी भरकम सामान के साथ धार्मिक यात्रा करना असंभव ही है अगर घोड़ों और खच्चरों का इस्तेमाल ना किया जाए। जाहिर सी बात है कि हर कोई हैलीकापेटर सेवा नहीं कर सकता साथ ही कई जगह ये उपलबध भी नहीं है और बहुत बार खराब मौसम के चलते हेलिकॉप्टर की उड़ान कम हो जाती है। ऐसे में घोड़े, खच्चरों की सेवा का पैसे कमाने के चक्कर में जमकर दुरूपयोग किया जाता है।
चारधाम यात्रा और वैष्णोदेवी की यात्रा पर मरते जानवर
पिछले वर्ष के आंकड़े बताते हैं कि Chardham के दौरान पैदल मार्ग पर लगभग एक हजार घोड़े-खच्चरों की मौत हो गई थी।इस बार भी बड़ी संख्या में इन जानवरों की मौत के मामले सामने आए।
कुछ वर्ष पहले जम्मू के कटड़ा में भूख से नौ घोड़ों कि मौत की न्यूज सामने आई थी जिससे काफी हाहकार मचा लेकिन फिर सब शांत हो गया , जैसे की कुछ हुआ ना हो। वहां जाने वाले लोग जानते हैं कि अभी भी माता की यात्रा करवाने वाले धोड़ों की हेल्थ की कोई ज्यादा सुध नहीं ली जाती । बस पैसा कमाने के लिए पूरे दिन धोड़ों से लगातार काम करवाया जाता है।
खच्चर सबसे ज्यादा मरते हैं
आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि इंसानी हमलों, उसके अत्याचारों के कारण मरने वाले जानवरों में सबसे पहला नंबर खच्चरों का ही आता है।
पहली बार जानवरों की मौत की रिपोर्ट सामने आई
देश में पहली बार फेडरेशन आफ इंडियन एनिमल प्रोटक्शन आर्गेनाइजेशन ने वर्ष 2010 से लेकर 2020 तक पशुओं के खिलाफ हिंसा पर जारी एक रिपोर्ट में इस बात को उजागर किया इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर रोज़ पांच पशु, इंसानों की हिंसा का शिकार होकर मारे जाते हैं। पिछले दस साल में 4,93,910 पशु इंसानों की हिंसा का शिकार हुए हैं। इस रिपोर्ट में बताया गया है
कि दस सालों में तीन लाख 80 हजार खच्चर जान गंवा चुके हैं। मरने वाले धोड़ों की संख्या 21,685 थी जबकि इसी दौरान 54,198 गोवंश जानवर मारे गए और 19472 कुतों की जाने गई।इसमें कईं और पशु और पक्षियों के खिलाफ होने वाले अत्याचारों के बारे में भी बताया गया है। इस रिपोर्ट को तीन श्रेणी में तैयार किया गया जिसमें घर के जानवर, काम करने वाले और सड़कों पर रहने वाले जानवरों को शामिल किया गया था.
इन आंकड़ों में बूचड़खानों, चिड़िया घर, प्रयोगशाला और दुर्घटनाओं में मारे गए जानवरों को शामिल नहीं किया गया हैं।तो समझ सकते हैं कि इंसानों की क्रूरता का शिकार मरने वाले जानवरों की संख्या कितनी ज्यादा होगी। शर्म की बात ये है कि इस दौरान पिछले दस सालों में जानवरों के खिलाफ होने वाले अत्याचार की रिपोर्ट हुए मामलों की संख्या केवल 2,400 है।
चीन, वियतनाम और भारत में जानवरों पर सबसे ज्यादा अत्याचार
वैसे आपको बता दें कि वल्र्ड एनिमल आर्गेनाइजेशन और एनिमलस एशिया की रिपोर्ट बताती है कि सख्त कानूनों की कमी और जानवरों के प्रति लोगों की असंवेदनशीलता के चलते एशियन देशों खासकर चीन, वियतनाम और भारत में भी जानवरों पर सबसे ज्यादा अत्याचार होता है। लेकिन जानवरों पर अत्याचार कौन करता है इसको लेकर भी कईं आस्चर्यजनक स्टडी आई हुई हैं।
दि हयूमेन सोसायटी आफ दि यूनाइटेड स्टेट्स के एक सर्वे से पता चलता है कि घरेलू हिंसा करने वाले 71 फीसदी लोग अपने पालतू जानवरों पर भी अत्याचार करते हैं। जानवरों पर अत्याचार करने वाले 26 फीसदी ऐसे लोग पाए गए जिनके साथ बचपन में दुर्वयवहार हुआ था। रिसर्च से यह भी पता चला कि घरेलू हिंसा में पले-बढे़ बच्चे बाकि बच्चों के मुकाबले तीन गुना ज्यादा जानवरों पर अत्याचार करते हैं।
देश में कईं कानून पर नहीं होता पालन
वैसे हमारे देश में जानवरों को भूखा रखना, ठीक से रहने की जगह ना देना, मारना, बांध कर रखना, लैब परीक्षण, सर्कस , फार्म हाउस आदि में जानवरों पर अत्याचार को रोकने के लिए कईं कानून बने हुए हैं जैसे प्रीवेंशन आफ क्रूएल्टी टू एनिमल एक्ट १९६०, वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन एक्ट, प्रीवेंशन आफ क्रूएल्टी टू एनिमल्स-सलोटरहाउस नियम- 2001, आईपीसी की धारा 428, 429 के साथ सेक्शन 48 ए, 51 ए -जी के तहत भी जानवरों के खिलाफ अत्याचार करने वाले को सजा मिलती है।
लेकिन सच्चाई किसी से छुपी नहीं है कि ये कानून ज्यादातर कागजों में ही सिमटे हुए हैं और बहुत ज्यादा लचर हैं। साथ ही इन्हें लागू करने वाली सरकारी एजेंसियों भी इनको लेकर लापरवाह, असंवेदनशील हैं। ऐसे में लोग भी पैसे, बल के जरिए बड़ी आसानी से किसी भी तरीके से जानवरों को अपना निशाना बना लेते हैं और सजा से दूर ही रहते हैं।
विश्वभर में जानवरों की हालत नाजुक
अगर अब विश्वभर में पशुओं की स्थिति पर बात करें तो वो भी रिपोर्ट आपको दर्द देगी, परेशान करेगी। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि हर साल विज्ञान के नाम पर कुत्तों, बिल्लियों, चूहों, और बंदरों सहित लगभग 115 मिलियन जानवरों के साथ दुर्व्यवहार किया जाता है, बहुत से इस दौरान मर भी जाते हैं।
हैरानी की बात है अपने को सुपर पावर मानने वाले अमेरिका में भी जानवरों की परवाह नहीं है।दि हयूमेन सोसायटी आफ दि यूनाइटेड स्टेट्स की एक रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका में हर साल लगभग एक करोड़ जानवर घरेलू हिंसा का शिकार होते हैं बहुत से तो दम भी तोड़ देते हैं। पीपल फार दि एथिकल ट्रीटमेंट आफ एनिमल्स के अनुसार अकेले अमेरिका में ही लगभग दस लाख जानवर लैब में परीक्षण के लिए कैद करके रखे जाते हैं।
इसके अलावा लगभग दस करोड़ चूहों और माइस को कैद करके रखा जाता है। कनाडा में परीक्षण के लिए लगभग चालीस लाख जानवरों का इस्तेमाल होता है जबकि यूके में ये पचास लाख के लगभग है इनमें से बहुत से जानवर परीक्षण के लिए बहुत ही गंभीर दर्द से गुजरते हैं। ब्रिटेन की बात करें तो यहां पर हर साल लगभग दस लाख जानवरों के साथ अत्याचार होने की खबर आती है जबकि कारवाई एक लाख मामलों में ही होती है।
आस्ट्रेलिया हर साल 55-साठ हजार जानवरों के अत्याचार के मामले सामने आते हैं। चीन में दवा बनाने के लिए ‘बीयर बाइल फार्मिंग’ के लिए बहुत से भालूओं को जिंदगीभर के लिए छोटे से पिंजरे में कैद करके रखा जाता है। पानी और खाने का अभाव ,बीमारी के चलते बहुत से दम तोड़ देते हैं। इसमें भालूओं के लिवर में बनने वाला बाइल जो उसके गोब्लैडर में जमा होता है, उसको दवा बनाने के लिए सर्जरी के जरिए निकाला जाता है।
रिपोर्ट बताती है कि चीन में पांच- से छह हजार टाइगर को हमेशा दवा बनाने के लिए बहुत ही छोटे-छोटे पिंजरों में अमानवीय ढंग से कैद करके रख जाता है। यही नहीं चीन में हर साल एक करोड़ के लगभग कुत्तों और चालीस लाख बिल्लियों को उनके मांस के लिए बेहरमी से काट दिया जाता है।चीन की तरह वियतनाम में भी इस तरह के मामले सामने आते हैं।
आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि हर एक मिनट में एक जानवर अत्याचार का शिकार होता है। सबसे ज्यादा अत्याचार कुतों पर होता है, जो 65 फीसदी के लगभग है। इसके बाद बिल्ली, घोडों का नंबर आता है। विश्वभर में लैब परीक्षण के दौरान लगभग 15 करोड़ जानवरों को तड़पा कर मार दिया जाता है।
इस बीच अच्छी बात ये भी है कि कईं देश जानवरों को लेकर बहुत संवेदनशील हैं। विश्व भर में स्विजरलैंड पहला देश हैं जिसने 1992 में अपने संविधान के अंदर जानवर जीवन को पहचान पहचान दी।इसके अलावा जर्मनी में भी वहां का संविधान जानवरों की रक्षा करता है।डेनमार्क में जिंदा जानवरों को काटा नहीं जा सकता है, इसके लिए सख्त कानून है।
वहीं यूके में जानवरों के सताने पर सीधा 51 सप्ताह की जेल है।नीदरलैंड में चिम्पैंजी को परीक्षण एवं काॅस्मैटिक टेस्टिंग के लिए मनाही है। स्वीडन में जानवरों को बेहोश करके उसे काटा जा सकता है ।हांगकांग में जानवरों के हित में बने कानून तोड़ने पर सीधा दो लाख डालर का जुर्माना है।
बात करते हैं कुछ आंकड़ों के बारे में जो आपको परेशान कर सकते हैं
सभी हिंसक अपराधों में, पशु दुर्व्यवहार लगभग 28% है
हर मिनट एक जानवर दुर्व्यवहार से पीड़ित होता है
1990 से अब तक पशु अत्याचार के कारण 50 मिलियन पशुओं की मृत्यु हो चुकी है
अकेले अमेरिका में 10 मिलियन से अधिक जानवर दुर्व्यवहार से मर जाते हैं
• सभी दुर्व्यवहार किए गए जानवरों में से 65% कुत्ते हैं
• 3 में से 1 मालिक अपने पालतू जानवर के साथ किसी न किसी तरह दुर्व्यवहार करता है
• विश्व स्तर पर 5 मिलियन से अधिक घोड़े मानव उपभोग के लिए मारे जाते हैं
• 29. दुर्व्यवहार और मारे गए सभी जानवरों में से 97% खेत में रहने वाले जानवर हैं
• पिछले दशक में, अकेले फ़्लोरिडा में अवैध दौड़ के परिणामस्वरूप 483 ग्रेहाउंड ड्रग पॉजिटिव हुए
• विदेशी पक्षी व्यापार के कारण तोते की एक तिहाई प्रजातियाँ विलुप्त होने के कगार पर हैं