क्या अब अलीगढ़  मुस्लिम विश्वविद्यालय माइनॉरिटी स्टेट्स खत्म होगा

सुप्रीम कोर्ट ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के माइनॉरिटी स्टेटस पर एक जजमेंट दिया हालांकि उस जजमेंट में कुछ बात साफ नहीं हो पाई है कि वह माइनॉरिटी स्टेटस रहेगा या नहीं रहेगा, इसलिए कि पूरा का पूरा मामला अब एक तीन जजों की बेंच को दे दिया गया है। यह बैंच  उसकी  स्थापना को और किन लोगों ने उसको स्थापित किया,  और कौन से लोग उसको फंड करते हैं,   माइनॉरिटी उस पर  कितना पैसा खर्च करती है इस आधार पर उसके माइनॉरिटी स्टेटस के डिसाइड करने की बात हुई।  वही तीन जज की बेंच वह इस पर निर्णय लेगी ।

कांग्रेस सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बदला 

अब कांस्टिट्यूशन बेंच ने अपने निर्णय में यह कह दिया कि जो 1967 का एस अजीज पाशा वर्सेस यूनियन ऑफ इंडिया मतलब भारत सरकार और अजीज पाशा के बीच का जो था जिसमें अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को माइनॉरिटी इंस्टिट्यूशन मानने से मना कर दिया था जिसको बाद में संविधान जो एएमयू एक्ट है , कांग्रेस की सरकार के द्वार उसमें बदलाव करके उसको माइनॉरिटी  स्टेटस दे दिया गया था। मतलब फैसले को पलट दिया था।  जो पाशा वर्सेस यूनियन सरकार के केस में दिया गया था ।

सुप्रीम कोर्ट ने क्यों कहा की आर्टिकल 30 संविधान का हनन हुआ

अब उसको सुप्रीम कोर्ट ने बदल दिया है और  बोला है कि यह जो है निर्णय वह आर्टिकल 30 संविधान का है उसको डाइल्यूट करता है । कोर्ट का आर्गुमेंट यह भी है कि कोई भी संस्था  बनाई गई,  बाद में उस पर कानून बनाना और उसको  स्थापित करना,  किसने बनाया था और बाद में उसको कानून उस पर बना देना यह दोनों अलग अलग मामले हैं । इसमें महत्त्वपूर्ण  बात बोली गई  कि किन लोगों ने इसको स्थापित किया और वह वह ज्यादा महत्त्वपूर्ण है और माइनॉरिटी इंस्टिट्यूशन जो है वह ऐसा नही है कि केवल माइनॉरिटी केलिए लिए होता है ,उसके फायदे सबको होने चाहिए । इस तरह की बात सुप्रीम कोर्ट ने की है और इस मामले को लेकर  यह मेजॉरिटी डिसीजन था सात जजों की बेंच में से चार का पक्ष एक तरफ था तीन का पक्ष एक तरफ था, उन्होंने इस निर्णय को दिया।

योगी सरकार जांच करा रही अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविधालय की फंडिंग की

अब इसमें इसमें जो महत्त्वपूर्ण बात यह है कि क्या इस पर अब क्या हो सकता है किस तरह की बात आएगी माइनॉरिटी इंस्टिट्यूशन है कि नहीं है सेंट्रल फंडिंग जो लेते हैं वह माइनॉरिटी इंस्टिट्यूशन कैसे हो सकते हैं और यह कि कौन लोग ने इसको स्थापित किया था किन लोगों ने इसके लिए पैसे खर्च किए थे यह सब महत्त्वपूर्ण है। इसलिए कि अभी कुछ दिन पहले 2018 में इस तरह की बात आई थी जब राजा महेंद्र प्रताप सिंह जो एक जाट राजा थे एजाइल गवर्नमेंट अफगानिस्तान में बना था उसमें उनके  लोगों ने यह दावा किया था कि लगभग तीन साढ़े तीन एकड़ जमीन उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को इस विश्वविद्यालय के लिए दान की थी जो उस समय मोहन एंगलो ओरिएंटल कॉलेज हुआ करता था।  तो  जमीन दान की या तो वापस की जानी चाहिए थी या उसके बदले पैसा दिया जाना चाहिए और अगर नहीं तो एक जो विद्यालय है वहां पर उसको राजा महेंद्र प्रताप के नाम से किया जाना चाहिए। इसकी जांच के लिए उत्तरप्रदेश सरकार ने एक इंक्वायरी भी गठित की थी अब इसमें जो मामला है कि किस तरह से इस पूरे मामले को देखा जाएगा और सरकार इस पूरे मामले को किस तरह से डील करेगी इसमें जो प्रोविजन है वो कैसे होंगे , कौन मतलब किस आधार पर अब यह जो तीन जजों का वह है व किस आधार पर इसको डिसाइड करेगी कि यह माइनॉरिटी इंस्टिट्यूशन है कि नहीं है । इसमें जो बात सुप्रीम कोर्ट ने कही , सुपीम कोर्ट ने इस्तेमाल किया कि इनकॉरपोरेशन और एस्टेब्लिशमेंट किसने स्थापित किया और बाद में इसको किस तरह से इनकॉरपोरेट किया गया मतलब जोड़ा गया तो यह यह एक विषय था जिसको लेकर के सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यह इस तरह से नहीं हो सकता है लेकिन इसमें जो बाद की बात है कि एडमिनिस्ट्रेशन जो है वह जरूरी नहीं है कि माइनॉरिटी इंस्टिट्यूशन का है या केवल माइनॉरिटी के बेनिफिट के लिए हो और यह भी जरूरी नहीं है कि जो एडमिनिस्ट्रेशन है वह पूरा का पूरा माइनॉरिटी के द्वारा रन किया जाए और सेकुलर एजुकेशन भी दिए जाने की बात कही ।

तीन जजों की बेंच निर्णय लेगी की विश्वविधालय  माइनॉरिटी स्टेटस नहीं 

तो यह जो मसला है इसमें जो दो तीन विषय जो निकल के आए कि अजीज केस को एक तो ओवर रूल कर दिया गया है और उसके बाद जो माइनॉरिटी स्टेटस है अब वह इस बात पर डिसाइड होगा कि सब लोगों को जो भी इसमें पार्टीज है उन्हें  तीन जजों की बेंच होगी उनको बताना पड़ेगा कि क्या उनके पक्ष में है और किन लोगों ने को स्थापित किया और यह किस तरह से माइनॉरिटी इंस्टिट्यूशन है और किस तरह से नहीं है। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को की स्थापना में किन लोगों ने मुहिम चलाई थी कौन से लोग इसके पीछे थे वही इनके कैरेक्टर को डिसाइड करेगा इसमें और एक जो महत्त्वपूर्ण बात है कि कोई भी इंस्टिट्यूशन वह माइनॉरिटी इंस्टिट्यूशन कैसे अपने आप को क्लेम कर सकता है वह वह इस फैक्टस पर डिसाइड होगा यह डिसाइड इस बात पर डिसाइड होगा कि उसको किन लोगों ने स्थापित किया है इस बात पर नहीं डिसाइड होगा कि  उसको कानून के तहत माइनॉरिटी का दर्जा  कब मिला।

शिक्षा संस्थान पर सबका हक सिर्फ अल्पसंख्यकों का नहीं 

लेकिन इसमें जो सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है जिस पर कोर्ट का वह मानना था कि कोई भी संस्था जो सेंट्रल यूनिवर्सिटी है वह माइनॉरिटी इंस्टिट्यूशन नहीं हो सकत है। इसमें महत्त्वपूर्ण बात यही थी कि अंडर आर्टिकल 30 जो अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी है वह माइनॉरिटी इंस्टिट्यूशन हो सकती है लेकिन उसका कैरेक्टर उनके स्थापित करने वाले लोगों और माइनॉरिटी की फंडिंग्स पर डिसाइड किया जाएगा ।

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